एक साल पूरे होने को आये, रघुवर सरकार बताएं कि 28 एलइडी स्क्रीन कहां-कहां लगे?

12 नवम्बर 2016, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग का कार्यालय, राज्य के 28 स्थानों पर एलइडी स्क्रीन लगाने के लिए एक वित्तीय निविदा खुल रही है। सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग का एक अधिकारी, सबेरे-सबेरे भगवती की विशेष पूजा-अर्चना करके चला है, कि उसी कंपनी को टेंडर मिले, जिस कंपनी से उसके मधुर संबंध आज-कल में स्थापित हुए हैं। लीजिये वहीं हुआ, भगवती सुन ली। वह प्रसन्न है, माथे पर तिलक लगाकर, गर्व से माथा ऊंचाकर, सीना तानते हुए कार्यालय से निकल रहा है, गदगद है। वह जिसे चाहता था, उसी व्यक्ति को टेंडर प्राप्त हुआ।

अब जरा देखिये, उक्त अधिकारी ने जिसको टेंडर दिलाने के लिए उछल-कूद मचाया था, उछल-कूद मचाने के क्रम में, उसे जिसे-जिसे संतुष्ट करना था, संतुष्ट किया और जब उसकी मनोकामना पूर्ण हो गई, तब उससे राज्य को क्या फायदा हुआ? या बेचारा मुख्यमंत्री रघुवर दास जो अपना चेहरा चमकाने के लिए 28 स्थानों पर एलइडी स्क्रीन लगाने की सोची थी, उसकी इच्छा पूरी हुई, उत्तर है – नहीं। आखिर क्यों?  इसका जवाब सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के वरीय अधिकारी से लेकर स्वयं मुख्यमंत्री रघुवर दास तक के पास नहीं हैं।

ये किसी को भी भूलना नहीं चाहिए कि यह विभाग भी स्वयं मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपने पास रखा है। जिस दिन दिल्ली के कंपनी को ये टेंडर मिला, उस कंपनी ने 60 दिनों के अंदर 28 जगहों पर एलइडी स्क्रीन लगाकर,  उसे चालू कर देने का वायदा किया था, पर सच्चाई यह है कि एक साल पूरे होने आये 60 दिनों में 28 स्थानों पर एलइडी स्क्रीन चालू करने का दावा करनेवाली कंपनी और सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के अधिकारियों से पूछिये कि क्या ऐसा संभव हुआ? तो वे उत्तर देने की स्थिति में नहीं है और न ही मुख्यमंत्री रघुवर दास की ताकत है कि उस व्यक्ति या उक्त अधिकारी को वे दंडित भी कर सकें, कि उसने ये काम समय पर क्यों नहीं किया।

आम तौर पर ये एलइडी स्क्रीन सरकार द्वारा चलाये जा रहे विकास कार्यक्रमों को जन- जन तक पहुंचाने और उन्हें बेहतर ढंग से बताने के लिए लगाये जाने थे। जिसके लिए एक एलईडी स्क्रीन पर करीब 17 से 18 लाख रुपये खर्च होने थे। पर ये काम भगवान भरोसे चल रहा है। आश्चर्य यह भी है कि जिन जगहों पर, एलइडी स्क्रीन लगे भी है, तो वे काम नहीं कर रहे है, पर उसका भुगतान आराम से हो रहा है, जैसे जमशेदपुर रेलवे स्टेशन परिसर पर लगे एलइडी स्क्रीन को रेलवे ने विद्युत आपूर्ति रोक दी है, जिससे जमशेदपुर रेलवे स्टेशन परिसर पर लगा एलइडी स्क्रीन चल ही नही रहा, पर सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के अधिकारियों को इससे कोई मतलब नहीं, इनका मतलब सिर्फ सरकार से वेतन लेना और मस्ती काटना तथा बिना काम के अपना चेहरा चमकाते हुए, सरकार से अच्छा होने का सर्टिफिकेट लेते रहना है।

ऐसे में समझते रहिये कि इस राज्य का मुख्यमंत्री रघुवर दास के जिम्मे रहनेवाला विभाग सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग किस हाल में चल रहा है? क्यों, हैं न आश्चर्य, एक साल हो गये टेंडर मंजूर किये, कंपनी क्या कर रही है?  न तो सरकार को पता है, और न सरकार के अधिकारियों को, देखियेगा कहीं ऐसा नहीं कि बिना काम के, उक्त कंपनी को पैसे भी मुहैया करा दिया जाये और भ्रष्ट अधिकारी उस कंपनी के साथ मिलकर अपना कमीशन भी प्राप्त कर लें, क्योंकि झारखण्ड में तो ये सब सामान्य बात है, नहीं तो सरकार बताये कि एक साल होने को आये, 28 स्थानों पर लगनेवाला एलईडी स्क्रीन कहां-कहां लगा हैं? या वो खँभा ही गिना दें, जिस पर एलईडी स्क्रीन को खड़ा करना हैं।