अपनी बात

तो क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी ही बातों पर स्वयं अमल नहीं करते?

तो क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी ही बातों पर स्वयं अमल नहीं करते? उनकी हर बातें दूसरों के लिए होती हैं? अगर ऐसा है तो ये तो गलत परंपरा की शुरुआत हो रही हैं, क्योंकि गंगा की सफाई करनी हो, तो हमें पटना या वाराणसी में ही सिर्फ गंगा को साफ नहीं करना होगा, उसकी सफाई गंगोत्री से भी 18 किलोमीटर दूर गोमुख से इसकी सफाई सुनिश्चित करनी होगी, क्योंकि लोगों ने अपनी हरकतों से गंगा को काफी प्रदुषित कर दिया, जिसके कारण अब उसका जल आचमन तो दूर, नहाने लायक तक नहीं रहा।

कोई ज्यादा दिनों की बात नहीं, कुछ महीने पहले अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि विभिन्न ओकेजनों पर जब हम अपने प्रियजनों से मिलते हैं तो उन्हें हम ‘बुके’ देते है, हमें करना ये चाहिए कि ‘बुके’ कि जगह ‘बुक्स’ देने की  परंपरा की शुरुआत करें, पर कल ही पूर्व उपप्रधानमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी को उन्होंने जन्मदिन की बधाई दी, तब उस वक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों में ‘बुक्स’ देने की जगह ‘बुके’ थी, इसका मतलब क्या है? इसका मतलब हुआ कि चाहे तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं द्वारा दूसरे को दिये गये उपदेशों को भूल गये, अथवा वे चाहते है कि दूसरे इस बात पर अमल करें और उन्हें अमल करने की कोई जरुरत नहीं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मालूम होना चाहिए कि वे जिस प्रांत से आते है, वह प्रदेश महात्मा गांधी और सरदार पटेल की जन्मभूमि है, जिनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं था, अतः अपनी न सहीं कम से कम इन महापुरुषों का लाज रखे, और वहीं कहें, जो कर सकते हैं, बोलने के पहले दस बार याद करें, चिन्तन करें कि वे स्वयं इसे अपने उपर लागू कर सकते हैं या नहीं, अगर नहीं कर सकते तो उसे प्रण के रुप में न लें और न दूसरों को उपदेश दे, क्योंकि उपदेश देने से अच्छा है कि व्यक्ति कर के दिखाए।

राजद नेता लालू प्रसाद यादव ने अपने ट्वीट में ठीक ही कहा कि आपने ‘मन की बात’ में ‘बुके’ की जगह ‘बुक्स’ देने की बात कही थी। अमल होना चाहिए अन्यथा वह ‘बेबात की बात’ कहलाएंगी। क्या प्रधानमंत्री चाहेंगे कि उनकी ‘मन की बात’, ‘बेबात की बात’ कहलाये।