राजनीति

कुरमियों ने CM से मिलकर अनुसूचित-जन-जाति का मांगा दर्जा, आदिवासियों का कड़ा विरोध

जब राज्य के आधे से अधिक विधायकों ने कुरमियों को अनुसूचित-जन-जाति का दर्जा दिलाने के लिए  हामी भर ही दी। जब सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के सामान्य और आदिवासी विधायक भी चाहते हैं कि कुरमियों को अनुसूचित-जन-जाति में शामिल कर ही लिया जाय तो फिर दिक्कत कहां आ रही है? क्योंकि बताया जा रहा है कि राज्य के 42 विधायक और दो सांसदों ने कुरमियों को अनुसूचित-जन-जाति में शामिल  करने के लिए समर्थन दे दिया है, जिनमें नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन, विधायक चंपई सोरेन, योगेश्वर महतो, योगेन्द्र प्रसाद, जय प्रकाश भाई पटेल, कुणाल षाड़ंगी,  साधु चरण महतो, जगन्नाथ महतो, नागेन्द्र महतो, इरफान अंसारी, जीतू चरण राम, अमित कुमार, विकास मुंडा, निर्भय शाहाबादी, जय प्रकाश वर्मा, दशरथ गगराई, अनन्त ओझा, नारायण दास, रवीन्द्र महतो, ताला मरांडी, चंद्र प्रकाश चौधरी, निर्मला देवी, शशि भूषण, विरंची नारायण, प्रकाश राम, प्रदीप यादव, कुशवाहा शिव पूजन मेहता, पी सी मंडल, राज सिन्हा, आलोक चौरसिया, गणेश गंझू, राजकुमार यादव के नाम शामिल है, और दो सांसद हैं – राम टहल चौधरी तथा विद्युत वरण महतो।

कल ही पूर्व सांसद शैलेन्द्र महतो के नेतृत्व में मुख्यमंत्री रघुवर दास से कुरमी संघर्ष मोर्चा का प्रतिनिधिमंडल मिला था तथा उन्हें 42 विधायकों और दो सांसदों को हस्ताक्षरित ज्ञापन सौंपा, जिसमें 42 विधायकों ने इस बात का समर्थन किया है कि कुरमियों को अनुसूचित-जन-जाति का दर्जा मिलना चाहिए। विधायकों के इस समर्थन तथा इनमें भाजपा, कांग्रेस, झाविमो, झामुमो तथा अन्य दलों के समर्थन पर कुरमी नेता व भाजपा नेता राजा राम महतो ने कहा कि जब सभी दलों की सहमति बन ही गई तो फिर कुरमियों को अनुसूचित-जन-जाति में शामिल करने में देर नहीं होना चाहिए। इधर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कार्मिक विभाग की प्रधानसचिव निधि खरे को बुलाकर, दिशा निर्देश दिया तथा इस प्रस्ताव को टीआरआइ को भेजने को कहा।

इधर विधायकों ने शैलेन्द्र महतो के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किया और ये बाते जल्द ही आग की तरह पूरे झारखण्ड में फैल गई और जो होना था वहीं हुआ। आदिवासियों का दल आज राजधानी रांची के अलबर्ट एक्का चौक पर आकर राज्य सरकार का पुतला फूंका तथा अपना विरोध दर्ज करा दिया। इनका कहना था कि अगर राज्य सरकार ने कुरमियों को अनुसूचित-जन-जाति में शामिल किया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे, आदिवासी समुदाय इसे कभी बर्दाश्त नहीं करेगा, क्योंकि आदिवासी और कुरमियों को मिलान हो ही नहीं सकता।

इधर कुछ दिन पहले मोराबादी मैदान में कुरमियों की विशाल जनसभा द्वारा स्वयं को अनुसूचित-जन-जाति में शामिल करने की मांग और इधर कुरमियों को अनुसूचित-जन-जाति में शामिल करने का विरोध स्पष्ट कर रहा है कि राज्य में एक बार फिर जातीय उन्माद फैलाने की कोशिश हो रही है, जिससे विभिन्न दलों को का तो कुछ नहीं जायेगा, पर झारखण्ड का अहित जरुर हो जायेगा। देखने में आ रहा है कि जिस प्रकार गुजरात और राजस्थान में जातिगत आरक्षण को लेकर बावेला मचा और  जिस कारण इन दोनों राज्यों का जो नुकसान हुआ, वह नुकसान अगर झारखण्ड को हुआ तो फिर झारखण्ड कभी खड़ा नहीं हो पायेगा, इसलिए सभी राजनीतिक दलों से अनुरोध है कि वे आग से न खेलें, इसे बुझाने का प्रयास करें, क्योंकि स्थिति गंभीर होने की संभावना बलवती हो रही हैं।