अपनी बात

जुम्मा चुम्मा दे दे, जुम्मा चुम्मा दे दे चुम्मा, झामुमो नेताओं के सामने हुई चुम्बन प्रतियोगिता

कौन कहता है कि झारखण्ड प्रगति नहीं कर रहा हैं, प्रगति के बारे में झारखण्ड में हर दल, यहां तक की हर नेता का अपना-अपना दृष्टिकोण है। झारखण्ड के अति पिछड़े इलाके पाकुड़ के डुमरिया मैदान में चुम्बन प्रतियोगिता के आयोजन ने उन सारे मिथकों को तोड़ा है कि आदिवासी अब वो आदिवासी नहीं रहे, उनकी सोच बदली है, वे भी अब नये माहौल में जीना चाहते है, जहां हर प्रकार की स्वच्छंदता है, हालांकि कई लोग इस प्रतियोगिता पर अंगूली उठा चुके हैं, पर जो आयोजक हैं, जो नेता इस आयोजन में शामिल है, जिन्होंने चुम्बन प्रतियोगिता में भाग लिया है, जो चुम्बन प्रतियोगिता को देखने आये दर्शक है, उन्हें इसमें कुछ भी बुरा नहीं दीखता। इस चुम्बन प्रतियोगिता का हर व्यक्ति अपने-अपने ढंग से आनन्द लिया है, जिसमें सभी शामिल है।

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इसमें कोई दो मत नहीं कि झारखण्ड में काफी परिवर्तन आया है, इस प्रकार के परिदृश्य रांची के हर पार्कों में मिल जायेगा, जहां स्वच्छंदता को अपना चुके युवा-युवतियां इस प्रकार के कार्यों में लिप्त है और उनमें इसमें कोई दोष नहीं दीखता, जब कोई दोष नहीं दीखेगा, तो कालांतराल में ये सब भी दीखेगा, जो कल पाकुड़ के डुमरिया मैदान में दीखा।

कुछ लोग और दल इसके लिए झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के साइमन मरांडी और स्टीफन मरांडी को दोषी ठहरा रहे हैं, पर सच्चाई यह है कि उनके द्वारा दोषी ठहराये जाने के बाद भी जहां ये चुम्बन प्रतियोगिता आयोजित हुआ, वहां के लोग किसी भी प्रकार से साइमन मरांडी और स्टीफन मरांडी को दोषी मानने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि वे इसे गलत नहीं मानते। जहां ये चुम्बन प्रतियोगिता आयोजित हुआ है, लोग बताते है कि यहां हर साल मेले का आयोजन होता है, जिसमें पहाड़िया नृत्य, गीत, लांगड़े नाच का बराबर आयोजन होता है, जिसमें लोग बड़ी संख्या में जुटते हैं, इस बार नया यह हुआ कि इसमें चुम्बन प्रतियोगिता भी रखा गया, जिसमें लोग शामिल हुए और बहुत बड़ी तादाद में लोग इस चुम्बन प्रतियोगिता को देखने के लिए जुटे।

विदेशों में ये सब चूंकि आम होता है, इसलिए वहां ये मुद्दा नहीं बनता, पर भारत में अभी तक ऐसी प्रतियोगिता खुले स्तर पर नहीं होता, अगर कहीं हुआ भी होगा तो ये छुपे तौर पर हुआ हो, पर झारखण्ड में इस प्रतियोगिता ने नये युग की शुरुआत कर दी है, कल ये पाकुड़ से निकलकर खूलेआम राजधानी रांची में आयोजित हो, और आपके बच्चे भी इस प्रतियोगिता में शामिल होकर गौरवान्वित महसूस करें तो हैरान मत होइयेगा, क्योंकि इसकी शुरुआत तो हो चुकी, अब आप रोक नहीं पायेंगे, ये नई संस्कृति है, अपनाइये या मत अपनाइये, दस्तक दे चुकी है, इसके खतरे को भी भांपिये। इसके खतरे आपको सोने नहीं देंगे, आपके जीवन को हैरान और परेशान कर देंगे, और उस वक्त आप कुछ कर सकने की स्थिति में नहीं होंगे।

याद करिये फिल्म ‘हम’ जिसमें अमिताभ बच्चन, किमी काटकर को कह रहे हैं, गीत के बोल है – जुम्मा चुम्मा दे दे, जुम्मा चुम्मा दे दे चुम्मा। वह पर्दे पर था, आज पर्दे से बाहर निकल आया है, कल के पर्दे पर की जुम्मा और चुम्मा की तस्वीर बहुत अच्छी लगती थी, आप भी कभी गुनगुनाया करते थे, अब चूकि पाकुड़ के डुमरिया मैदान में खूलेआम हुआ, झामुमो नेताजी के सामने हुआ तो चिल्लम पो करने की कोई जरुरत नहीं, बस सावधानी बरतिये।