दुमका और राजमहल में गुरुजी और JMM की बल्ले-बल्ले, गोड्डा में JVM मजबूत, महागठबंधन ने BJP की बढ़ाई धड़कनें

पीएम मोदी की कल ही देवघर में सभा हुई हैं, पर वो सभा का असर गोड्डा में देखने को नहीं मिल रहा, यादव और मुस्लिम मतदाताओं की गोलबंदी निशिकांत दूबे के लिए परेशानी का कारण बनता दिख रहा है। राजनैतिक पंडितों की मानें तो 2014 में मोदी लहर के बावजूद गोड्डा से भाजपा प्रत्याशी निशिकांत दूबे की जीत वोट बंटने के कारण हुई थी, क्योंकि उस वक्त जेवीएम प्रत्याशी प्रदीप यादव वोटकटवा के रोल में थे, अगर जेवीएम के प्रत्याशी प्रदीप यादव उस वक्त कैंडिडेट नहीं रहते और उन्होंने कांग्रेस के फुरकान अंसारी को सहयोग दे दिया होता, तो बीजेपी के निशिकांत दूबे की उस वक्त बोलती बंद थी, यानी वे हार चुके रहते।

इस बार माहौल ही बदल गया हैं, काग्रेस ने इस बार फुरकान अंसारी को नहीं उतारा, बल्कि यह सीट जेवीएम को दे दी, जेवीएम से इस बार फिर प्रदीप यादव किस्मत आजमा रहे हैं और इस बार उनकी किस्मत तेज भी दिख रही हैं, गोड्डा के यादव व मुस्लिम मतदाता उनके पक्ष में गोलबंद हो रहे हैं, दूसरी ओर कांग्रेस, जेएमएम, राजद तथा अन्य पार्टियों द्वारा उन्हें समर्थन दे दिये जाने से उनकी ताकत और बढ़ गई हैं।

ऐसे भी संथाल इलाके में अडानी प्रकरण भी एक बहुत बड़ा मुद्दा हैं, जिसको लेकर जेवीएम के प्रदीप यादव और जेएमएम के नेताओं ने एक बड़ा आंदोलन भी खड़ा किया था, स्थानीय लोगों का गुस्सा भी इस बात को लेकर भाजपा सरकार से हैं, जिसके कारण भाजपा की इस इलाके में इस बार खटिया खड़ी होती दिख रही हैं, हालांकि भाजपा के केन्द्र व राज्य के हवा-हवाई नेता भी निशिकांत को जीताने में लगे हैं, पर ऐसा माहौल दिख नहीं रहा, इधर भाजपा में हो रही भितरघात भी निशिकांत दूबे के लिए परेशानी का कारण बनती दिख रही हैं, यानी कुल मिलाकर गोड्डा में महागठबंधन के प्रत्याशी प्रदीप यादव की जीत का पलड़ा भारी दिख रहा हैं।

इधर राजमहल और दुमका में झामुमो की बल्ले-बल्ले हैं। इन इलाकों में भाजपा का लहर उतना नहीं दिख रहा, जितना जेएमएम का लहर हैं, शहरों में भाजपा के झंडे दिख जाते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में गुरुजी यानी शिबू सोरेन और तीर-धनुष का ही दबदबा हैं। लोग सुनते है कि नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन की सभा होनेवाली हैं तो लोग बड़ी संख्या में बिना किसी प्रबंध के ही जुटते हैं, और हेमन्त सोरेन को सुनते हैं।

यहीं हाल गुरुजी यानी शिबू सोरेन का हैं, दुमका के कई इलाकों में आज भी उनकी उपस्थिति ही लोगों को ताकत दे देती हैं, लोग कहते है कि यहां जब भी इलेक्शन होगा, गुरुजी ही जीतेंगे, क्योंकि गुरुजी संथाल आंदोलन से जुड़ें हैं, उन्होंने झारखण्ड को नई दिशा दी है, उन्होंने हमेशा समाज को कुछ न कुछ दिया है, ऐसे में वे लोग गुरुजी के खिलाफ कुछ भी सुनना नहीं पसन्द करते हैं।

दुमका और राजमहल के कई आदिवासी बहुल इलाकों में लोग राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास से नाराज दिखते हैं, उनकी नाराजगी का मूल कारण सीएनटी-एसपीटी एक्ट में राज्य सरकार का दखल होना तथा दिशोम गुरु शिबू सोरेन के प्रति उनका अपमानजनक भाषा का प्रयोग भी है। ऐसे भी नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन इस मुद्दे को अपनी सभा में जोर-शोर से उठा रहे हैं, जिसका प्रभाव देखने को मिंल रहा हैं, इधर गुरुजी इन सारे बातों से बेखबर किसी का प्रतिवाद या प्रतिकार नहीं कर रहे, वे आम जनता के बीच जाकर सामान्य दिनों की तरह मिल रहे हैं और ग्रामीण भी उनका स्वागत उसी प्रकार से कर रहे हैं, जिस प्रकार से उनका स्वागत करते रहे हैं।

गुरु जी जहां जा रहे हैं,बड़ी संख्या में लोगों से मिल रहे हैं, वे भाषण नहीं देते, पर लोगों से हाल-चाल जरुर पूछते और यहीं उनकी जादूई ताकत हैं, लोग उनके होते जा रहे हैं, जेएमएम कार्यकर्ता भी मिट्टी से जूड़े रहने के कारण आज भी शिबू सोरेन के साथ खड़े दिख रहे हैं, जबकि भाजपा भी यहां जीतने का दम-खम लगा रही हैं, पर शिबू सोरेन के कद के आगे उसका प्रत्याशी टिक नहीं पाता।

राजनैतिक पंडितों की माने, तो जैसा शिबू सोरेन का स्वास्थ्य हैं, उसको देखकर नहीं लगता कि आनेवाले समय में वे चुनाव लड़ पायेंगे, लेकिन इतना तो यह है, जब वे यह कहते है कि वे जब तक जीवित हैं, चुनाव लड़ेंगे, आज की युवा पीढ़ी को इतना तो जरुर ताकत दे देती है कि किसी भी कार्य के लिए जीवटता का होना कितना जरुरी है, यानी कुल मिलाकर देखें तो राजमहल, दुमका में झामुमो की बल्ले-बल्ले हैं, और गोड्डा में लगता है कि इस बार जनता निशिकांत दूबे को आराम देने के मूड में हैं, ऐसे 23 मई को क्या परिणाम निकलेगा, ये तो भविष्य की बात हैं, पर स्थितियां अब बिल्कुल साफ हैं, कोई इफ-बट अब नहीं रहा।