अपनी बात

पांच जुलाई को झारखण्ड महाबंद यानी सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच मूंछ की लड़ाई

जिस प्रकार से मुख्यमंत्री रघुवर दास अपने मातहत कार्य कर रहे अधिकारियों के एक बड़े वर्ग को हांकने में लगे हैं और इस बंद को विफल करने के लिए पूरी ताकत झोंक दिये हैं, तथा जिस प्रकार संपूर्ण विपक्ष अपने इस महाबंद को सफल बनाने के लिए गांव-गांव, शहर-शहर, विभिन्न सामाजिक संगठनों, स्वयंसेवी संस्थाओं से सहयोग लेने का प्रयास कर रहा हैं, उससे साफ लगता है कि सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों इसे मूंछ की लड़ाई मानकर चल रहे हैं।

संपूर्ण विपक्ष इस बार पहली बार झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता एवं नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में रघुवर सरकार के नाक में दम कर रखा है, स्थिति ऐसी है कि जनाब सीएम रघुवर दास को न उगलते बन रही हैं और न निगलते बन रही हैं, वे अपने अधिकारियों को सिर्फ यहीं हिदायत दे रहे है कि जैसे भी हो, इस बंद को कैसे विफल किया जा सकता है, इस पर ज्यादा अपना ध्यान फोकस करें, जबकि विपक्ष उन सारी योजनाओं पर काम कर रहा हैं, जिससे राज्य सरकार की घिग्घी बंध जाये।

इधर राजद, कांग्रेस, झाविमो, भाकपा, माकपा, भाकपा माले, आदिवासी संगठनों से जूड़े विभिन्न समूहों के लोग तथा कई धार्मिक संस्थाएं भी कल के बंद को सफल बनाने में पिछले कई दिनों से लगी हैं, इस बार इन सारे राजनीतिक दलों-सामाजिक संगठनों को सर्वाधिक ध्यान पूरे राज्य में जन-जीवन ठप करने तथा ग्रामीणों को सड़कों पर उतार देने की है।

कई राजनीतिक एवं सामाजिक सगंठनों के लोगों का ये भी मानना है कि ये महाबंद कोई पहली बार नहीं हो रहा है, इसके पूर्व में भी कई विपक्षी दलों ने मिलकर झारखण्ड बंद बुलाया हैं, पर कभी ऐसा भय का माहौल सरकार और उनके मातहत कार्य करनेवाले अधिकारियों द्वारा बनाते हुए नहीं देखा गया, जैसा कि इस बार देखा जा रहा हैं, फिर भी वे इस महाबंद को सफल बनाने में अपनी ओर से प्रयास कर रहे हैं, और जैसा कि सहयोग मिल रहा हैं, ये बंद ऐतिहासिक होगा, क्योंकि ये बंद झारखण्ड की जनता के स्वाभिमान और अस्तित्व से जुड़ा है।