झारखण्ड उच्च न्यायालय ने बकोरिया मुठभेड़ मामले में सीबीआई जांच के दिये आदेश

आखिरकार झारखण्ड उच्च न्यायालय ने पलामू के बहुचर्चित बकोरिया कांड को सीबीआई से जांच कराने का आदेश दे ही दिया। ज्ञातव्य है कि पलामू के बकोरिया में 8 जून 2015 को पांच नाबालिग एवं भाकपा माओवादी अनुराग समेत 12 लोगों की मौत हो गई थी। इसी मामले में सीआईडी ने झारखण्ड पुलिस को क्लीन चिट दे दी थी तथा इस जांच के बाद अंतिम रिपोर्ट पलामू कोर्ट को सौप दी थी।

लोग बताते है कि दिसम्बर 2017 में सीआईडी के तत्कालीन एडीजी एमवी राव ने इस मामले की समीक्षा की थी। इस समीक्षा के दौरान उन्होंने केस को देख रहे जांचकर्ता को आदेश दिया था कि वे घटनास्थल पर जाकर, इस मामले से जुड़े जितने भी अधिकारी है, उनका सीडीआर निकाले, यहीं नहीं उन अधिकारियों के साथ साथ-साथ उनके चालक और अंगरक्षकों का भी बयान दर्ज करें, इसके बाद जांचकर्ता ने अनुसंधान रिपोर्ट पेश की थी।

जिस अनुसंधान रिपोर्ट में लिखा गया था कि सीडीआर के लिए मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों को लिखा गया था, पर एक साल समय बीत जाने के कारण, कंपनियों ने सीडीआर उपलब्ध कराने में असमर्थता दिखाई थी। ज्ञातव्य है कि इस मुठभेड़ को लेकर पलामू डीआईजी हेमन्त टोप्पो, लातेहार के तात्कालिक एसपी अजय लिंडा, पलामू सदर थाना प्रभारी हरीश पाठक ने सवाल उठा दिये थे। जिसका खामियाजा भी इन्हें भुगतना पड़ा। इसी बीच बकोरिया मामले की गूंज मानवाधिकार आयोग ही नहीं बल्कि संसद में भी सुनाई पड़ी।

इधर मानवाधिकार आयोग ने सीआईडी जांच में झारखण्ड पुलिस को क्लीन चिट दे दिये जाने पर आपत्ति दर्ज कराते हुए, कई सवाल भी उठा दिये थे, तथा इस कांड की सीबीआई जांच के लिए, झारखण्ड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी थी, मानवाधिकार आयोग का दावा था कि मारे गये सारे लोग निर्दोष थे। इसी बीच जिन-जिन अधिकारियों एवं लोगों ने इस मामले की जांच करने के दौरान सवाल उठाये, आपत्तियां दर्ज कराई, उनका तबादला कर दिया गया।

फिलहाल झारखण्ड हाई कोर्ट द्वारा बकोरिया कांड की सीबीआई जांच के आदेश दे दिये जाने पर झारखण्ड के लोगों को आस बंधी है कि शायद इस कांड में मारे गये निर्दोष लोगों के परिवारों को न्याय मिल सकेगा।