एक समय ज्यां द्रेज के अपमान पर आसमान उठालेनेवाला अखबार, आज उस खबर को ही चेप दिया

आज एक अखबार अपना जन्मदिन मना रहा है, जिसका झारखण्ड में ध्येय वाक्य है – अखबार नहीं आंदोलन और कोडरमा पार करते ही बिहार पहुंचने पर इसका ध्येय वाक्य हो जाता है – बिहार जागे… देश आगे। ये चरित्र है, इस अखबार का। क्या कोई बता सकता है कि भारत का ध्येय वाक्य है – सत्यमेव जयते, यह सत्यमेव जयते, भारत से निकलते ही कहां जाकर बदल जाता है?

ज्यां द्रेज के अपमान की खबर को प्रभात खबर ने अपने समाचार पत्र में स्थान नहीं दिया

आज इस अखबार ने एक सप्लीमेंट भी निकाला है, उस सप्लीमेंट में उसके प्रधान संपादक ने “जनसरोकार की पत्रकारिता के तीन दशक” तथा उसके वरिष्ठ संपादक ने “बदल रही है पत्रकारिता” के नाम से एक आलेख छापा है। क्या ये दोनों महाशय बता सकते है कि कल उन्हीं के कार्यक्रम, जो रेडिशन ब्लू में आयोजित था, जिससे संबंधित खबरें प्रथम पृष्ठ और मध्य पृष्ठ के 11 एवं 12 नंबर पृष्ठ पर विस्तार से पूरे पृष्ठ पर दी गई हैं, उन खबरों में, वह खबर कहां है – जब उसी अखबार के सर्वाधिक प्रिय अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज के साथ राज्य के कृषि मंत्री द्वारा रेडिशन ब्लू में दुर्व्यवहार किया गया। क्या ये खबर अखबार में छपने लायक नहीं थी या आम जनता को ये जानने का अधिकार ही नहीं कि राज्य का कृषि मंत्री रणधीर कुमार सिंह, एक व्यक्ति विशेष को उसके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ही अपनी दबंगता से कैसे रोक लगा देता है।

जनता को जानने का हक, कल क्या हुआ था, रेडिशन ब्लू में

जब आप स्वयं द्वारा आयोजित कार्यक्रम में हुई गुंडागर्दी की खबर पर सेंसरशिप लगा देते हो, तो आपको यह लिखने का क्या हक है कि “जनसरोकार की पत्रकारिता के तीन दशक” और “बदल रही है पत्रकारिता”।  अरे आपके जनसरोकार और बदलती पत्रकारिता को लोग देख ही रहे है। अच्छा रहता कि आप अपने अखबार की हरकतों पर आज के दिन श्वेत पत्र निकालते और कहते कि हमारे यहां कार्य कर रहे विभिन्न उच्च पदों पर रहे कथित महान पत्रकारों ने कैसे सूचना आयुक्त, राज्यसभा के सांसद पद को प्राप्त कर सुशोभित किया?  कैसे हमने राज्य सरकार की आरती उतारकर विभिन्न प्रकार के लाभ को प्राप्त कर जनता की आंखों में धूल झोंका।

एक समय इस अखबार ने ज्यां द्रेज के अपमान पर आसमान सर पर उठा लिया था

आपको तो ये भी हक नहीं कि ज्यां द्रेज की आंखों में आंखे डालकर बात कर सकें, क्योंकि जब वे आपकी अखबारों को आज देखे होंगे तो निश्चय ही उन्हें दुख हुआ होगा, क्योंकि हमें याद है कि इसी रांची में एक थाना प्रभारी ने ज्यां द्रेज के साथ बदतमीजी की थी, तो आपने सारा आसमान माथे पर उठा लिया था, लगातार सीरियल चला रहे थे और जब कल भरी सभा में, आपके ही कार्यक्रम में, एक मंत्री ने ज्यां द्रेज की पगड़ी उछाली, उन्हें बोलने से रोका, तो आपने उस समाचार को ही गायब कर दिया, जैसे लगा कि कुछ हुआ ही नहीं। जो अखबार इतनी नीच हरकत करें, वह भी अपने जन्मदिन के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम पर, उसे हम क्या कहे। ऐसे तो आपके यहां ऐसे-ऐसे संपादक है कि जनता मरती रहेगी और उस संपादक को फोन करती रहेगी कि संपादक फोन उठाये, ताकि वह अपनी समस्या बता सके। वह फोन ही नहीं उठायेगा, जनता मर जाये मेरी बला से, हम क्या करें? मोबाइल जनता की आवाज सुनने के लिए थोड़े ही है। हद हो गई, हम ऐसी पत्रकारिता और ऐसे अखबार को दूर से सलाम करते हैं…