श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव…

धन्य कंस का कारागार। हरि ने लिया जहां अवतार।।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का हमारे जीवन से गहरा जुड़ाव रहा है। मेरे घर में जन्माष्टमी कई वर्षों से बहुत ही धूम-धाम से भी मनाया जाता रहा है, जो आज भी जारी है। मैं बचपन से देखता आ रहा हूँ कि जन्माष्टमी की सुबह अपने घर में लड्डू गोपाल, वंशीधर और अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को साफ करने का सिलसिला शुरु हो जाता। बड़ी ही खुबसूरती से उन्हें सजाने का काम, वस्त्र पहनाने का काम, तथा सही जगह पर उन्हें स्थापित करने का कार्य प्रारंभ हो जाता। जन्माष्टमी आने के पूर्व मेरी मां, भगवान के वस्त्र को सिलने-सिलाने का कार्य प्रारंभ कर देती। सिंघाड़े के आटे का हलवा, धनिया का चूर्ण और मौसमी फलों का घर में अंबार लग जाता। शाम होते ही, अपने घर में अपने गांव के किसानों और अन्य समुदायों की भीड़ लगने लगती। गांव की महिलाएं, अपनी मां के साथ सुर में सुर मिलाकर सोहर गाती, भजन गाती और श्रीकृष्ण भक्ति में डूब जाती।

गांव के किसानों की टोली झाल-करताल व ढोल के साथ घर के ओटे पर भजन गाने में रम जाती। अर्द्धरात्रि का इंतजार होता। भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव का समय। शंख व घंटी तथा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ भगवान श्रीकृष्ण का स्वागत किया जाता। आरती उतारी जाती, उसके बाद भगवान श्रीकृष्ण की एक छवि देखने को लोग बेकरार होते। सभी बारी-बारी से आते भगवान श्रीकृष्ण की छवि निहारते और झूले झूलाते तथा भगवान का प्रसाद ग्रहण करते हुए, कुछ अपने घर ले जाने के लिए प्रसाद प्राप्त करते और इस प्रकार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व संपन्न हो जाता, उसके बाद फिर एक साल का इंतजार।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन हमारे बाबुजी बहुत आह्लादित रहते, इस दिन उनका चेहरा ऐसा दमकता, जैसे लगता कि उन्हें कोई अमूल्य उपहार मिल चुका हो। श्रीकृष्ण भक्ति ऐसी कि उन्होने अपने तीनों बेटों का नाम श्रीकृष्ण से जुड़ा ही रखा था। तीन स्कूली नाम और तीन पुकार के नाम और ये सभी श्रीकृष्ण को समर्पित। लक्ष्य और कामना सिर्फ यहीं कि मृत्यु के समय भी अगर श्रीकृष्ण का नाम किसी कारण से न आ सके तो अपने पुत्रों के नाम पुकारने से ही श्रीकृष्ण का भाव हृदय में जग जाये। हमने महसूस किया है कि कोई दिन ऐसा नहीं होता कि वे श्रीकृष्ण भजन गाये बिना अपना कार्य संपन्न किये हो। हमें याद है कि जब हम चार साल के थे, तब उस समय मेरी मां गांथी बांध दी थी और मैं आराम से गुवाहाटी स्टेशन पर एक बॉक्स के उपर बैठकर झूमते हुआ एक श्लोक गाता रहता था, जो मेरे मां-बाबूजी ने ही सिखाया था। वह श्लोक था –

मूकं करोति वाचालं, पंगू लंघयते गिरिम्। यतकृपात्महं वंदे परमान्द माधवम्।।

मुझे तो आज भी अपने बाबू जी का हर दिन प्रातः में गाया हुआ उनका प्रिय भजन, मेरी कानों में गूंजता है, वे बराबर बोला करते थे –

देहान्तकाले तुम सामने हो

वंशी बजाते, मन को लुभाते

गाते यहीं मैं तन नाथ त्यागूं

गोविंद दामोदर माधवेति

हे कृष्ण, हे यादव, हे सखेति।

जब जाड़े का दिन आता और ब्रह्म मुहूर्त में जब वे ये गा रहे होते, तो ये भजन सारे मुहल्लेवासियों को जगा रही होती। खेतों से अपने शाक-सब्जियों को बाजार ले जा रहे किसानों का समूह बड़े प्रेम से बाबू जी को अभिवादन करते और बाबू जी बड़ी धीरे से सर झुकाकर, भाव से उनके अभिवादन को स्वीकार करते। मां भी श्रीकृष्ण भजन में ही सारा समय गुजार देती। मां के द्वारा गाया भजन आज भी हमें याद हैं, जिसे हम आज भी याद कर गुनगुनाते, खासकर प्रभाती का तो जवाब नहीं।

आज भी जन्माष्टमी का पर्व, उसी प्रकार से हमारे यहां मनाने का सिलसिला जारी है, हमारे बड़े भैया आनन्द बिहारी मिश्र और छोटे भाई बृजबिहारी मिश्र इस कार्य को संभालते है। मैं चूंकि रांची में हूं, इसलिए यहां भी जन्माष्टमी की धूम है, पर वैसा नहीं, जैसा कि मेरे जन्मस्थान दानापुर पटना में होता है। संयोग कहिये, या भगवत्कृपा, पर मैं तो भगवत्कृपा ही कहूंगा कि भारतीय तिथियों के अनुसार मेरे बड़े बेटे का जन्म श्रीकृष्णजन्माष्टमी और छोटे बेटे का जन्म श्रीरामनवमी को हुआ और ये दोनों पर भी भगवान श्रीकृष्ण की कृपा है। बड़ा बेटा आज भी जन्माष्टमी के पर्व पर उपवास रखता है, जबकि मैंने यह उपवास कभी नही रखा, पर श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण आज भी मेरा उतना ही है, जितना बचपन में था और मैं चाहता हूँ कि भगवान श्रीकृष्ण की कृपा बराबर, मेरे उपर बनी रहे, क्योंकि जिन्होने पूरे विश्व को योग दिया, जिन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता दी, उसका विकल्प दूसरा कोई हो ही नहीं सकता। मैं तो आज भी गीता पढ़ता हूं तो हमें लगता है कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से हर आनेवाले युग में मानवों को सीख दी है कि तुम क्या हो? किसलिए दुनिया में आये? और तुम्हें करना क्या है?

कर्मफल का सिद्धांत और उसके नियमों-उपनियमों का सार जो श्रीकृष्ण ने बताया, प्रेम और उसके रहस्यों तथा भगवद्प्राप्ति पर जो उनका संदेश है, वह अद्वितीय है। दुनिया के जितने भी आध्यात्मिक पुरुष हुए, जिन्होंने श्रीकृष्ण को जाना। चाहे उनका मार्ग कुछ भी हो। कर्म, ज्ञान, भक्ति और हठ का ही मार्ग क्यों न हो, सब पर उन्होने कृपा की है, इसलिए हम भी चाहेंगे कि, हे श्रीकृष्ण हम भले ही भूल जाये आपको, आप हमें नहीं भूले, क्योंकि आपका मुझे भूलना ही मेरे लिए अतिकष्टकर सिद्ध हो जायेगा। अंत में, हम बारंबार यहीं कहेंगे –

श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव…

One thought on “श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव…

  • August 14, 2017 at 4:57 pm
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    जय श्री ।। कृष्ण।।

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