धर्म

ईश्वरानन्द गिरि ने चौथे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर योग व ध्यान की महत्ता को बताया

अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस की चौथी वर्षगांठ आज योगदा सत्संग आश्रम में धूम-धाम से मनाई गई, चूंकि पूरे विश्व में अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को मनाया जाता है, पर चूंकि रविवार के दिन सामान्य व्यक्तियों के लिए अवकाश का दिन होता है, इसलिए योगदा सत्संग आश्रम ने आज के दिन का लाभ उठाया और सामान्य जनों के बीच योग के मूल अर्थ और उसकी भावनाओं से साक्षात्कार कराया। योगदा सत्संग आश्रम के शीर्षस्थ सन्यासियों में से एक स्वामी ईश्वरानन्द  गिरि ने इस अवसर पर सहज, सरल और बोधगम्य तरीके से लोगों को बता दिया कि योग एक सामान्य जन के लिए कितना उपयोगी है।

स्वामी ईश्वरानन्द गिरि ने लोगों को बताया कि योग का मतलब कसरत करना नहीं हैं, बल्कि योग का अर्थ हैं आत्मा का परमात्मा से मिलन। प्रत्येक व्यक्ति को उसका यह जन्मजात अधिकार है कि वह स्वयं को परमात्मा से मिला सकें। उन्होंने कहा कि आम तौर पर सामान्य लोग स्वयं को शरीर मान लेते हैं, जबकि ऐसा है नहीं। प्रत्येक शरीर में एक मन तथा आत्मा का वास होता है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति उस परमात्मा का एक अंश हैं, व्यक्ति का अस्तित्व ही बताता है कि परमात्मा है, और परमात्मा अपने जीवात्मा को कभी नहीं भूलता, चाहे वह जीवात्मा ईश्वर को क्यों नही भूल जाये।

उन्होंने कहा कि योग एक विज्ञान है, जिसे जानने की आवश्यकता है, जितना आप योग विज्ञान को जानेंगे, आपका जीवन और सरल तथा सुगम्य हो जायेगा, और इसके लिए सबसे बेहतर है कि आप योगदा सत्संग आश्रम से जुड़े, उसके द्वारा प्रकाशित-प्रसारित योगदा सत्संग पाठमाला को ध्यान से पढ़े, यहां के संन्यासियों द्वारा दिये गये दिशा-निर्देशों का पालन करें, प्रतिदिन ध्यान करें, तब आप पायेंगे कि आपने स्वयं को कितना आनन्द में पाया।

स्वामी ईश्वरानन्द गिरि ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति सुख चाहता है, शांति चाहता है और इसके लिए वह कड़ी प्रयत्न करता है, पर उसे सुख अथवा शांति की प्राप्ति हो ही जायेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं दे सकता, पर कोई व्यक्ति जो प्रत्येक दिन ध्यान करता हैं, ईश्वर को पाने की चेष्टा करता है, उसकी प्रकाश में स्वयं को ढालना चाहता है, तब इस बात की पक्की गारंटी हो जाती है कि वह ईश्वर को अवश्य ही प्राप्त कर लेगा और जब ईश्वर की उसे अनुभूति हो जायेगी तो फिर आनन्द और शांति की प्राप्ति करने में कितनी देर लगेगी, ये समझने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति चाहता कि वह दुनिया को अपने जैसा बना लें, पर ये संभव नहीं, पर इतना जरुर है कि वही व्यक्ति स्वयं को अपने जैसा जरुर ढाल सकता है, और ये संभव भी है, इसलिए भी ध्यान जरुरी है। उन्होंने एक कहानी के माध्यम से इस बात को शानदार तरीके से बताया कि एक राजा को बाग में टहलते वक्त पांव में कांटा चुभ गया। पांव में कांटा चुभने के बाद उसने अपने मंत्रियों से कहा कि ऐसी व्यवस्था करों कि उन्हें पांव में कांटा न चुभे, अगर दुबारा उन्हें पांव में कांटा चुभा तो मंत्रियों की खैर नहीं।

तभी कई मंत्रियों ने अपनी-अपनी ज्ञान के अनुसार ये बताने की कोशिश की, कि उसके विचार के अनुसार ऐसा किया जाता है तो महाराज को बाग मे कांटा नहीं चुभेगा। मंत्रियों में से एक मंत्री ने कहा कि क्यों न पूरे बाग में कारपेट बिछा दी जाये, इससे महाराज को कांटा नहीं चुभेगा। तभी किसी ने कहा कि अगर बाग में कारपेट बिछा दी जाये तो फिर बाग-बाग ही न रहेगा। दूसरे मंत्री ने कहा कि ऐसा करते है कि पूरे बाग से पेड़ ही कटवा दिये जाये, इससे कांटे ही नहीं रहेंगे। तभी किसी ने कहा कि अगर पेड़ ही नहीं रहेंगे तो फिर बाग किस काम का। इधर मंत्रियों के परामर्श से तंग एक सामान्य व्यक्ति ने महाराज को सुझाव दिया कि महाराज अच्छा रहेगा कि आप अपने पांव में एक ऐसी पादुका धारण कर लें, जो आपको कांटों से बचा दें तथा आपके पांव भी सुरक्षित रहे, महाराज को ये बातें अच्छी लगी। इसलिए ये कहानी भी बताती है कि हमें क्या करना चाहिए?

स्वामी ईश्वरानन्द गिरि ने कहा कि पूरे विश्व को भारत की सर्वश्रेष्ठ देन योग है। इसे जानने की आवश्यकता है, इस पर अमल करने की आवश्यकता है, स्वयं को इसमें ढाल लेने की आवश्यकता है, आपने योग को जान लिया तो समझ लीजिये आपका जीवन सफल और नहीं जाना तो फिर ये आपके उपर है कि आपने जीवन भर क्या कमाया, क्या पाया? उन्होंने योगदा सत्संग आश्रम के बारे में बताने के क्रम में महावतार बाबा जी, लाहिड़ी महाशय, स्वामी युक्तेश्वर गिरि, परमहंस योगानन्द जी का भी संक्षिप्त परिचय कराया, तथा योगदा सत्संग आश्रम के उद्देश्यों पर भी प्रकाश डाला, साथ ही ध्यान मंदिर में आये लोगों को ध्यान की विधि से संक्षिप्त परिचय भी कराया, जिसका सभी ने लाभ उठाया।

उन्होंने यह भी कहा कि योगदा की क्रियायोग का लाभ उठाकर विश्व के कई लोग अनुप्राणित हो रहे है, समय-समय पर इस आश्रम और भारत तथा विश्व के कई ध्यान केन्द्रों में योगदा के संन्यासियों का समूह क्रियायोग की दीक्षा देते हैं, जिससे लोग लाभान्वित हो रहे हैं, आप भी अगर क्रियायोग की दीक्षा लेना चाहते हैं तो सर्वप्रथम योगदा सत्संग आश्रम से जुड़िये, इसके बताये मार्गों का अनुसरण करें, परमहंस योगानन्द जी ने जो मार्ग सुझाया है, उसे पाने की कोशिश करें, फिर देखिये कि आपके जीवन में दिव्य आनन्द का प्रवेश कैसे होता हैं?

स्वामी ईश्वरानन्द गिरि ने एक सवाल के माध्यम से बताया कि अगर एक बारह वर्ष के बालक को योग व ध्यान के बारे में अगर अच्छी तरह से प्रशिक्षित किया जाये तो वह बालक भविष्य में एक बेहतर व्यक्तित्व के रुप में उभर सकता है, तथा उससे देश और समाज दोनों का लाभ हो सकता है, पर कहा जाता है कि जिसको जब भी ज्ञान प्राप्त हो जाये, तभी से अगर वह सुधार के लिए परिणित हो जाये तो इसे भी ठीक ही कहा जायेगा।