अपनी बात

PM मोदी के सामने BSF के बर्खास्त जवान की चुनाव लड़ने की इतनी हिम्मत, EC ने किया नामांकन रद्द

अगर डकैत, बलात्कारी, घोटालेबाज, चोर, उचक्का, झूठा, लबरा, आतंकी, दंगाई चुनाव लड़ सकता हैं तो झूठ का पर्दाफाश करनेवाला बीएसएफ का पूर्व जवान तेज बहादुर क्यों नहीं? भाई तेज बहादुर से इतना डर कबसे लोगों को लगने लगा? कल तक एक भी व्यक्ति तेज बहादुर को गलत नहीं कह रहा था, पर जैसे ही उसे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी तथा अन्य दलों से उसे समर्थन मिलने लगा।

अचानक मोदी समर्थकों व भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा सोशल साइट पर तेज बहादुर के खिलाफ एक सोची-समझी रणनीति के खिलाफ उसे भला-बुरा क्यों कहा जाने लगा? उसके खिलाफ अनाप-शनाप बातें क्यों लिखी जाने लगी, सिर्फ इसलिए कि उसे सपा-बसपा के समर्थन तथा अन्य दलों के समर्थन मिल जाने से मोदी जी के जीत को खतरा उत्पन्न होने लगा?

भाई जिस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सिर्फ नामांकन के दिन बनारस की गलियों-कूचियों में भारी भीड़ इकट्ठी हो गई, रैली रैला में तब्दील हो गया, वहां कोई भी व्यक्ति नरेन्द्र मोदी को हरा कैसे सकता है, जो मोदी ये कहते नहीं थकते कि गंगा मइया ने उन्हें बुलाया हैं, क्या उन गंगा मइया पर मोदी को या उनके भक्तों-समर्थकों पर विश्वास नहीं रहा कि चल पड़े एक छोटे से जवान की चुनौती को स्वीकार करने के बजाय, उसे रास्ते से हटाने, अगर ये सही हैं तो मैं तो कहूंगा कि ये लोकतंत्र के लिए खतरा है।

तेज बहादुर का ये कहना कि उन्हें 30 अप्रैल को सायं 6.15 बजे एक नोटिस थमाया जाता है कि वे चुनाव आयोग दिल्ली से एक अनापत्ति प्रमाण पत्र लाकर, 1 मई तक 11 बजे कार्यालय में जमा करें, क्या ये संभव है? इसका मतलब है कि चुनाव आयोग और उसके अधिकारियों की मंशा चुनाव कार्य सही ढंग से संपन्न करने के बजाय, किसी खास पार्टी के लिए विशेष कार्य करने की है।

ऐसे ही मौके पर हमें याद आते हैं, टी एन शेषण, जिन्होंने अपने विशेष कार्य शैली से सारे दलों व नेताओं की घिग्घी बांध कर रख दी थी, यहीं नहीं इन्द्र कुमार गुजराल जैसे नेताओं की जीत की बग्घी को रोक कर रख दिया, जब उन्होंने पटना व पूर्णिया के लोकसभा चुनाव को ही रद्द कर दिया, उस वक्त कौन नहीं जानता था कि लालू के इशारे पर पूरे पटना और पूर्णिया में मतदान की धज्जियां उड़ा दी गई थी, तभी तो टी एन शेषण ने बिना किसी की परवाह किये पटना और पूर्णिया की चुनाव ही रद्द कर दी।

पर वर्तमान में जिस प्रकार चुनाव आयोग कार्य कर रहा है, उस पर जो दोष व ठप्पे लग रहे हैं, वह ऐसे ही नहीं है, मैं स्वयं रांची में रहकर देख रहा हूं कि ऐसी कई गलतियां सत्तापक्ष के लोग कर रहे हैं, पर उस पर कानून का डंडा, चुनाव आयोग का नहीं दिख रहा, पर सामान्य लोग जिनको चुनाव या मतदान से कोई मतलब नहीं, उन्हें आदर्श आचार संहिता में बड़ी ही आसानी से फंसा दिया गया कि आप अब आनेवाले दस सालों तक अदालत का चक्कर काट कर अपने ईमान के पैसों को अदालती चक्कर में फूंक दीजिये, साथ ही अपना सुख-चैन गवां दीजिये। यही नहीं झारखण्ड में तो कई ऐसे अधिकारी व कर्मचारी है कि वे चुनाव आयोग के प्रति समर्पण न रख, भाजपा कैसे जीते, इस पर ज्यादा दिमाग लगा रहे हैं, ऐसे हालात में, जिस देश में ऐसी मनोवृत्ति पनप जाये, वहां लोकतंत्र को खतरा उत्पन्न होना स्वाभाविक है।

ऐसे भी पूरे विश्व की नजर, बेगूसराय और वाराणसी लोकसभा सीट पर है, इस सीटों पर कौन जीतता है, सब का ध्यान उसी ओर हैं, अगर बेगूसराय से कन्हैया जीतते हैं, तो निःसंदेह उसके भी गंभीर परिणाम होंगे और वहां से गिरिराज जीतते हैं, तो निःश्चय ही एक साफ संदेश जायेगा कि देश क्या चाहता है?  वहीं हाल वाराणसी का है, कुछ दिन पहले तक यहां प्रियंका गांधी का नाम आ रहा था, पर अचानक बीएसएफ के जवान तेजबहादुर द्वारा लड़ने की घोषणा तथा सभी दलों से उसके समर्थन करने की मांग ने, एसपी-बीएसपी को एक नये ताकतवर प्रत्याशी के रुप में बैठे-बैठाए तेज बहादुर दिला दिये, जिससे स्थिति ही बदल गई, पर आज तेज बहादुर के नामांकन रद्द होने की घोषणा ने मोदी समर्थकों और कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार कर दिया।

हालांकि इसके पूर्व सोशल साइट में तेज बहादुर के खिलाफ अचानक युद्ध चल पड़ा था, भाजपा के आइटी सेल वालों ने सुनियोजित ढंग से अपने काम करने शुरु कर दिये, भाजपा समर्थक व कार्यकर्ताओं को तेजबहादुर में गद्दार, दाल का पानी पीनेवाला, कामचोर, देशद्रोही, कोर्ट मार्शल किया हुआ जवान दिखाई देने लगा। अब सवाल उठता है कि जो भी भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ेगा, वो देशद्रोही व गालियां खाने का हकदार हो जायेगा?

आखिर तेजबहादुर की गलतियां क्या है? यहीं न, कि उसने बीएसएफ में चल रहे राशन घोटाले की सच्ची तस्वीर देश के सामने रख दी, क्या सही तस्वीर देश के सामने रखना गद्दारी है, क्या सेना या अर्द्सैनिक बलों में राशन घोटाला नहीं होता, वर्दी घोटाला नहीं होता, अरे जब देश के राजनीतिज्ञ बोफोर्स घोटाले, राफेल घोटाले, ताबूत घोटाले कर सकते हैं, तो राशन व वर्दी घोटाला या अन्य घोटाले क्यों नही हो सकते।

क्या ये सही नहीं हैं, देश की सीमाओं पर कार्यरत अर्द्धसैनिक बलों के जवानों को एनपीएस में डाल दिया गया और बेशर्म केन्द्र सरकार और राज्य की सरकारों में शामिल नेताओं व विधायकों तथा दूसरे दलों के नेताओं व विधायकों ने अपने लिए ओपीएस की व्यवस्था कर ली, क्या इन नेताओं के बेटे-बेटियों, बहूओं-प्रेमिकाओं को जीने का अधिकार है, बाकी जवानों और उनके परिवारों को नहीं।

जरा पूछिये, इन्हीं नेताओं से कि उनकी सुरक्षा में लगे अर्द्ध सैनिक बलों के जवानों से, वे क्या-क्या काम लेते हैं, ये जवान उनके घर पर नौकरों की तरह ट्रीट होते है, कोई इनकी इज्जत नहीं करता। जरा कभी ट्रेन में अचानक छुट्टी पर अपने घर जा रहे जवानों को देखियेगा, ये पशुओं की तरह लेटकर डिब्बों में सफर करते हैं, इन्हें समय पर छुट्टी भी नहीं मिलती और छुट्टी लेने के लिए इन्हे कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं, कितने नाक रगड़ने पड़ते है, इनके उच्चाधिकारी इनके साथ कैसा अमानवीय व्यवहार करते हैं? इसके बावजूद भी ये कुछ नहीं बोलते, चुपचाप अन्याय सहते हैं और ये नेता मस्ती में बैठकर जमकर ऐश करते हैं, ऐसे में अगर तेज बहादुर इन जवानों का जुबान बनकर चुनाव लड़ रहा था, तो क्या गलत कर रहा था?

आप जान लीजिये, तेज बहादुर को एक सोची समझी रणनीति के तहत नामांकन रद्द करा दिया गया, पर उसने जो सवाल उठाएं है, वो कहीं से भी गलत नहीं, आज भी अपने प्रदेश या राज्य के कोने-कोने में जाइये और जो जवान वीरगति को प्राप्त हुए हैं, उनके परिवार को देखिये, अगर आपको रोना न आ जाये,तो फिर कहियेगा। ऐसे भी रोना उसको आयेगा, जो इन्सान होगा, जो किसी दल विशेष का होगा तो वह मौके देखेगा, अगर रोने का समय होगा तो रोयेगा, नहीं तो तोहमत लगा देगा कि ये जवान देश का गद्दार था।

मेरा तो साफ-साफ सवाल है, कि इन जवानों में नेता का बेटा क्यों नहीं शामिल होता, इन जवानों में गरीब-मजलूमों के परिवार के बच्चे ही क्यों शामिल होते हैं, चाहे वह किसी भी जाति के क्यों न हो? हम तो साफ कहते है कि हमारे देश में गिने-चुने नेता ही देशभक्त हैं, बाकी ज्यादातर गद्दार ही होते हैं, क्योंकि इन्हें अपनी बीवी-प्रेमिका, बेटे-बेटियां, बहुएं तथा उसके बाद उनके समधियाना के लोगों की सेवा से फुर्सत ही नहीं मिलती, ये देश की सेवा क्या करेंगे?

तेज बहादुर तुम्हें चुनाव लड़ने का मौका मिलता, तब भी तुम हारते, और अब जबकि चुनाव आयोग तुम्हारा नोमिनेशन रद्द कर दिया, तो अब सारी चीजें ही समाप्त हो गई, ऐसे भी यह ऐसा देश है कि तुम सही रहोगे, तब भी हारोगे। ऐसे भी तुम जिस देश को जगाने की कोशिश कर रहे हो न, ये मरा हुआ देश है, विश्व में यहीं एकमात्र देश हैं, जहां उच्च कोटि के गद्दार तुम्हे हर जगह मिल जायेंगे, अभी हाल ही में एक फिल्म “ताशकंद फाइल्स” देश के विभिन्न सिनेमाघरों में चल रही हैं, जिसमें लाल बहादुर शास्त्री के मौत पर सस्पेंस को अच्छी तरह से दिखाया गया है।

जरा देखना, पता लगेगा कि तुम कैसे इस गलत देश में पैदा ले लिये, यहां तो लक्ष्मीबाई देश के लिए मरती हैं, अंग्रेजों के खिलाफ लड़ती है, फिर भी उसका पूरा परिवार आज भी खाक छानता है, और जो ग्वालियर नरेश जिंदगी भर अंग्रेजों की गुलामी करता रहा, उसके परिवार के लोग आज भी भाजपा और कांग्रेस में रहकर मालपूएं चाभते हैं,  ऐसे में अब तो वाराणसी की लड़ाई ही एकपक्षीय हो गई, अब क्या सच और क्या झूठ, आज जो भी हुआ है, वह इतिहास में कैद हो गया, इसका परिणाम हमें लगता है कि भविष्य में बड़ा ही घातक होगा, शायद ही आज की वर्तमान पीढ़ी या राजनैतिक पंडित इसे समझ सकें।

अंत में जो लोग पीएम मोदी की भक्ति में तेज बहादुर के खिलाफ विषवमन कर रहे हैं, उन्हें मालूम होना चाहिए कि हरियाणा में महेन्द्रगढ़ के राताकलां गांव निवासी तेज बहादुर सिंह स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार से आते हैं, उनके पिता शेर सिंह के अनुसार, शेर सिंह के पिता ईश्वर सिंह सुभाष चंद्र बोस के साथ रहते थे, हरियाणा सरकार ने उन्हें ताम्र पत्र देकर सम्मानित भी किया था। शेर सिंह को आज भी अपने बेटे तेज बहादुर पर उतना ही गर्व है, जितना पूर्व में था, वे कहते है कि वह हमेशा से ही अधिकारों की लड़ाई का बात करता रहता था, और जब-जब उसने अधिकार की बात की, तेज बहादुर के समक्ष समस्याएं आनी शुरु हो गई।

फिलहाल आज चुनाव के पहले ही एक जवान, एक स्वतंत्रता सेनानी के परिवार से आया जवान, कथित चायवाले से बिना चुनाव लड़े हार गया। खुशियां मनाइये, देश में लोकतंत्र हैं, पर मैं तो तभी लोकतंत्र की खुशियां मनाउंगा, जब तेज बहादुर की आवाज को भी सम्मान मिले, उस जैसे लोगों को भी अपने ढंग से देश की सेवा करने का मौका मिले।