अपनी बात

काश प्रभात खबर में काम करनेवाले जगदगुरु शंकराचार्य सदृश मठाधीश संपादकों को उर्दू की ही तरह हिन्दी की भी चिन्ता होती

रांची से प्रकाशित हिन्दी अखबार “प्रभात खबर” ने विश्व उर्दू दिवस दो दिन पहले यानी 6 एवं 7 नवम्बर को ही मना लिया जबकि विश्व उर्दू दिवस 9 नवम्बर को मनाया जाता है। इसके उपलक्ष्य में उसने लगातार दो दिन विशेष पेज निकाले। उर्दू का बखान किया। अंतिम दिन उसने हेंडिग लगा दी कि झारखण्ड में उर्दू को चाहिए एकेडमी की सांसे, और उधर झारखण्ड के एक मंत्री का बयान भी आ गया कि जल्द ही राज्य में उर्दू एकेडमी व मदरसा बोर्ड का गठन हो जायेगा।

चलिए मंत्री ने कह दिया तो हो ही जायेगा। लेकिन झारखण्ड से प्रकाशित होनेवाला ये प्रभात खबर और उसमें काम करनेवाले मठाधीश संपादक जो हिन्दी की ही रोटी तोड़ते हैं, वे ये बताएं कि क्या झारखण्ड में हिन्दी एकेडमी या हिन्दी भवन है? अगर हैं तो उसका पता बता दें, हम उस हिन्दी एकेडमी या हिन्दी भवन को जाकर देखना चाहते हैं

नहीं तो प्रभात खबर के जगद्गुरु शंकराचार्य सदृश मठाधीश संपादक ये बताएं कि कभी हिन्दी के लिए भी हिन्दी एकेडमी या हिन्दी भवन की डिमांड संबंधी इस प्रकार की विशेष पेज जनता के समक्ष रखी है, अगर नहीं तो अल्लामा इकबाल जो पाकिस्तान के राष्ट्र कवि है, जिन्होंने जिन्ना के दिमाग में मुस्लिमों के लिए अलग से पाकिस्तान बनाने की टॉनिक डाली, जिन्होंने लिखा – हिन्दी है हम, वतन है, हिन्दोस्तां हमारा और बाद में इसी व्यक्ति ने लिखा कि मुस्लिम है हम, वतन है, सारा जहां हमारा, उसके जन्मदिन को खास कैसे बना दिया?

7 नवम्बर को नौ को उर्दू दिवस नामक हेडिंग से इस बात को क्यों याद दिलाया कि यह दिन इसलिए भी उल्लेखनीय है, क्योंकि यह उर्दू के प्रसिद्ध शायर मुहम्मद इकबाल का जन्मदिवस भी है। लोगों से माफी क्यों मांगी कि शनिवार को प्रभात खबर के अंक में भूलवश विश्व उर्दू दिवस 11 नवम्बर को छप गया था। 11 नवम्बर को मौलाना अबुल कलाम का जन्मदिन है, इस दिन राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया जाता है।

दरअसल उर्दू से नफरत किसे हैं? उर्दू तो भारत की ही भाषा है, लेकिन उर्दू के नाम पर राजनीति हो तो उसका विरोध भी लाजिमी है। प्रभात खबर में मंत्री का यह बयान छपना कि मदरसा बोर्ड और उर्दू एकेडमी का गठन राज्य में जल्द होगा तो उर्दू से ज्यादा झारखण्ड में बोली जानी वाली भाषा हिन्दी है, उसके लिए एकेडमी या भवन की घोषणा कब होगी?

सच्चाई तो यह है कि झारखण्ड में नियुक्तियों के लिए होनेवाली परीक्षाओं में जो स्थान उर्दू को दिया गया है, वो हिन्दी को भी नसीब नहीं, यहां तो हिन्दी कराह रही हैं, हिन्दीभाषी कराह रहे हैं, और प्रभात खबर को उर्दू की चिन्ता सता रही हैं? ऐसे में तो मैं यही कहूंगा कि पहले अपनी मां की इज्जत करना सीखे प्रभात खबर, तब दूसरे की मां की इज्जत करने की बात करेगा तो समझ आयेगी, लेकिन दूसरे की मां को इज्जत और अपनी ही मां घर में रोती – बिलखती रहे, तो ऐसे मां के बेटों को नालायक कहा जाता है। ये बातें समझ लेनी चाहिए प्रभात खबर के मठाधीश संपादकों को।