अगर सिस्टम फेल है, तो कैसे सुधरेगा सिस्टम? कौन सुधारेगा सिस्टम?

संतोषी भूख से मर जाती है। किसान आत्महत्या कर रहे है। युवा भी आत्महत्या कर रहे है। आत्महत्या करनेवालों में युवतियां और महिलाएं भी शामिल है। एक पिता अपने छोटे से बच्चे के शव को कंधे पर लेकर ढोता हुआ श्मशान घाट तक पहुंच जाता है। एक लड़की का दुष्कर्म कर हत्या कर दी जाती है, बेचारा पिता मुख्यमंत्री से संवेदना के दो शब्द सुनने की इच्छा रखता है, पर उसे सीएम की डांट मिलती है। आंगनवाड़ी के बच्चों को अंडे तो छोड़ दीजिये, खिचड़ी भी नहीं मिल रही। लोग एलइडी बल्ब के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट रहे है, पर एलइडी बल्ब नहीं मिल रही। देसी-विदेशी निवेश के लिए मोमेंटम झारखण्ड का आयोजन होता है, और वह भी अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाता। सरकार कहती है कि हम कृषि के लिए सिंगल विंडो सिस्टम लागू किया है, पर वह सिंगल विंडो सिस्टम कहा हैं, किसानों को पता नहीं है। तीन साल हो गये हरमू नदीं का सौदर्यींकरण का काम ऐसी ही पड़ा है और इधर रांची के सड़क जाम ने सीएम साहेब की नींद उड़ा दी है, बेचारे पिछले कई दिनों से जाम में फंस जा रहे हैं, जब इतनी गड़बड़ियां है तो इसका मतलब है कि सारी सिस्टम फेल है।

जिन पर सिस्टम को चुस्त-दुरुस्त करने की जिम्मेवारी है। वे इसमें रुचि नहीं ले रहे। जो विभागीय अधिकारी व कर्मचारी है, वे कामचोर हो गये हैं। जनता के प्रति सेवा का भाव विलुप्त हो चुका है। जो अधिकारी व कर्मचारी है, उन्हें लगता है कि उनका काम जनता से सेवा लेना है, न कि सेवा देना। जो नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में ड्यूटी करते है, उनका एक ही मकसद होता है, नेताओं और अपने लोगों से पैरवी लगाना और फिर उस जगह पर सेवा देना जहां उन्हें आराम ही आराम के साथ-साथ प्रतिदिन कुछ न कुछ चढ़ावा नसीब हो। आश्चर्य इस बात की भी है कि लोग बड़ी धड़ल्ले से एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा पकड़े भी जा रहे हैं, पर क्या मजाल की इसका असर भी किसी अधिकारी-कर्मचारी पर पड़ा हो। जब भय ही नहीं रहेगा, तो सिस्टम फेल होगा ही, इसे भला कौन रोक सकता है?

जहां का मुख्यमंत्री खुद बिना हेलमेट के दुपहिया चलाता हो और दूसरों को कहे कि आप हेलमेट पहनकर चलिये तो वहां सिस्टम कैसे बहाल होगा? वहां तो सिस्टम हमेशा फेल रहेगा। कहा भी गया है कि पहले खुद सुधरिये, फिर सुधारने का काम कीजिये। एक कहानी आपने जरुर सुना होगा। एक संत थे, जिन्हें गुड़ खाने की बहुत आदत थी। तभी एक महिला अपने एक बच्चे को लेकर उस संत के पास आई और संत से अनुरोध किया कि वो उसके बच्चे को गुड़ खाने की आदत छुड़वा दें। संत ने कहा कि तुम एक सप्ताह बाद इस बच्चे को लेकर उनके पास आओ। एक सप्ताह बाद महिला अपने बच्चे को लेकर फिर संत के निर्देशानुसार, उसी संत के पास पहुंची। संत ने बच्चे से कहा कि प्यारे बच्चे गुड़ खाना छोड़ दो, ये तुम्हारे सेहत के लिए ठीक नहीं और फिर महिला को उस बच्चे के साथ जाने को कहा। महिला हैरान हो गई। उसने कहा कि संत जी महाराज, जब आपको सिर्फ यहीं बोलना था, तो फिर आप यहीं बात उसी दिन कह देते, ये एक सप्ताह बाद बुलाने की क्या जरुरत थी? संत ने कहा कि वे खुद गुड़ खाने के आदी थे, उन्होंने पहले स्वयं गुड़ खाने की आदत छोड़ी, तब जाकर उस बच्चे को कहा कि वह ऐसा न करें। कहा भी जाता है कि आपकी बात तभी असर डालती है, जब आप सत्य के साथ हो, नहीं तो आपके बातों का असर बेकार हो जाता है। उसका कहीं कोई प्रभाव नहीं होता।

हमारे देश में सिस्टम खराब होने का सबसे बड़ा कारण परिवार का पूर्णतः प्रदूषित हो जाना है। कहा भी  गया है कि घर एक प्राथमिक पाठशाला है। जब प्राथमिक पाठशाला जहां चरित्र और संस्कार मिलने है, वहीं जब दूषित हो जाये तो फिर समाज, राज्य और देश की बेहतरी की परिकल्पना कैसे कर सकते हैं? आप जहां रहते हैं, जरा स्वयं के और पड़ोसियों के घर को देख लीजिये, पता लग जायेगा कि चरित्र और संस्कार का क्या हाल बना रखा हैं सभी ने। हर प्रकार के सुख से परिपूर्ण है पर बीपीएल परिवार की लाल कार्ड के लिए मारामारी करेंगे। जो योजनाएं गरीबों के लिए बनी है, उन गरीबों की योजनाओं पर स्वंय कुंडली मार कर बैंठेगे, जो सरकार जिन चीजों पर टैक्स लगायेगी, उस टैक्स को बचाने के लिए खुब तिकड़म लगायेंगे। सुबह हुआ नहीं कि जब तक रात के बारह नहीं बजेंगे, अपने आस-पास गंदगी फैलाते रहेंगे, जैसे कि इन्होंने गंदगी फैलाने का ठेका ले रखा है और दूसरा इनकी गंदगी को साफ करने का जिम्मा ले रखा है, साथ ही फिर सुबह-शाम बैठकर सरकार को ही कोसेंगे कि सरकार कुछ नहीं कर रही।

अरे भाई सरकार करेगी क्या?  सरकार और हम अलग थोड़े ही है। हमारा प्रतिरुप ही तो सरकार है। जब हम ठीक रहेंगे तभी सरकार ठीक रहेंगी और जब हम गलत रहेंगे, तो फिर भुगतना किसी दूसरे को थोड़े ही हैं। जरा देखिये, एक घटना सुनाता हूं। हाल ही में रांची के मोराबादी मैदान में सेना की बहाली चल रही थी। मैं पटना से 8623 पटना-हटिया एक्सप्रेस से रांची के लिए रवाना हुआ। इस ट्रेन में पटना से ही बहाली के लिए युवाओं की टोली सभी बॉगियों में कब्जा कर ली थी। जिनके रिजर्वेशन थे, वे खड़े थे और ये सारे युवा उन रिजर्वेशनवाली बर्थ पर आराम से सोये थे। यहीं नहीं ये युवा केवल अंडरवियर पहनकर, ऐसी-ऐसी हरकतें और इतनी गंदी-गंदी बातें कर रहे थे कि उस बॉगी की महिलाएं शर्म से पानी-पानी हो रही थी, पर डर के मारे न तो महिलाएं बोल रही थी और न ही उनका परिवार।

अब जरा सोचिये, जो बच्चे सेना की बहाली में शामिल होने जा रहे है, जो बॉगी में खड़ी महिलाओं के सामने गंदी-गंदी बात कर रहे हैं, अगर उन्हें नौकरी मिल भी जाती है तो ऐसे बच्चे देश की क्या रक्षा करेंगे?  कैसा होगा उन बच्चों का परिवार, कैसा संस्कार और चरित्र दिया अपने बच्चों में, जो इंसान न बनकर राक्षस बन गये। इसलिए हमारा मानना है कि सरकार को, सिस्टम को कोसने से अच्छा है कि खुद का जमीर संभालिये, सिस्टम खुद-ब-खुद संभल जायेगा।