राजनीति

“अरे आदिवासी हैं न, आदिवासी ही रहेगा” इस सोच से उपर उठे भाजपा, करिया मुंडा जैसे नेता को नजरदांज करना पड़ेगा महंगा

आप से ही मैं पूछता हूं, आप हृदय पर हाथ रखकर बताइये कि क्या किसी भी राष्ट्रीय पार्टी ने आदिवासी नेताओं को वो सम्मान दिया, जो वह उस सम्मान का हकदार है? किसी भी आदिवासी नेता को आगे बढ़ाया? सच पूछिये तो राष्ट्रीय पार्टियों की नजरों में सिर्फ यहीं चलता रहता हैं अरे आदिवासी हैं न, आदिवासी ही रहेगा ये वक्तव्य है झारखण्ड भाजपा के भीष्म पितामह करिया मुंडा के, जिनकी विद्वता, राजनीतिक शुचिता, शालीनता एवं नैतिकता पर कोई सवाल ही नहीं उठा सकता।

इतने लम्बे राजनीतिक कैरियर जीने के बावजूद भी अहं की भावना, उन्हें घेरने में सफलता नहीं पाई, आज भी वे आदिवासी बहुल इलाके खूंटी में सामान्य नागरिक की तरह जीवन जी रहे हैं, नहीं तो आजकल, एक बार सांसद या विधायक बन जाने पर व्यक्ति बड़े महानगरों का रुख करता हैं, ज्यादा जानकारी प्राप्त करनी हैं तो अभी के भाजपा का ही हाल देख लीजिये।

एक अदना सा व्यक्ति भाजपा का कार्यकर्ता बन रहा हैं और लीजिये महंगी गाड़ियां, लाव-लश्कर, आलीशान फ्लैट का देखते ही देखते मालिक बन जाता हैं और फिर यहां से शुरु होती हैं उसकी हेकड़ी, पर करिया मुंडा इन सबसे दूर वर्तमान राष्ट्रीय व प्रदेश की राजनीति को देख व्यथित हैं। वे इसलिए नहीं व्यथित है कि उन्हें पद या प्रतिष्ठा चाहिए, बल्कि वे व्यथित इस बात को लेकर है कि जो उनके पास झारखण्ड को आगे बढ़ाने तथा समस्यामुक्त झारखण्ड बनाने का जो विजन हैं, उस विजन पर किसी ने काम करने की कोशिश नहीं की और न ही उनके पास आकर कोई आज तक सलाह-मशविरा ही किया।

करिया मुंडा का मानना है कि जो जहां रह रहा हैं, उसे पता है कि समस्या कहां हैं, उसे यह भी पता है कि समस्या का निदान कहां छुपा हैं, पर लोग करते क्या हैं? उनसे राय न लेकर, उनसे परामर्श न लेकर, बाहर के लोगों को बुलाकर, यहां की समस्या का निदान ढूंढते हैं, ऐसे में झारखण्ड का तो वहीं हाल होगा, जो सामने दिख रहा हैं, पांच साल बहुमत का ढिंढोरा पीटने के बावजूद भी अगर झारखण्ड को आप सही दिशा में नहीं ले जा सकें तो गलती यहां की जनता की नहीं, बल्कि यहां की सरकार में हैं, इसे स्वीकार करना होगा।

करिया मुंडा कहते है कि एक आदिवासी नेता कार्तिक उरांव जब अपने विवेक और ईमानदारी से उठ रहे थे, तो उन्हें भी साइड करने का कम प्रयास नहीं किया गया, पर वे ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सके। ले-देकर जो बचे, उन्हें उनका लेवल दिखाया गया, सच्चाई यह है कि किसी ने आदिवासी नेता को महत्व ही नहीं दिया, उनकी नजरों में आदिवासियों के पास ज्ञान का लेवल ही नहीं हैं, ऐसे में जब राष्ट्रीय पार्टी के नेताओं की सोच इस प्रकार की होगी तो आदिवासी बहुल झारखण्ड का क्या हाल होगा? आपके सामने हैं।

जो करिया मुंडा को जानते हैं, वे कहते है कि उनके पास झारखण्ड के लिए विजन हैं, साथ ही एक अच्छी प्लानिंग भी हैं, पर आज तक किसी भी राष्ट्रीय स्तर के भाजपा नेता या क्षेत्रीय नेताओं ने उनके पास जाकर उनके विजन का लाभ नहीं उठाया न ही उनसे प्लानिंग ही पूछी। राजनीतिक पंडितों की मानें तो आज झारखण्ड में विधानसभा का चुनाव हो रहा हैं, इस विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिताने के लिए बाहर से नेता, झारखण्ड भेजे जा रहे हैं, पर इन बाहरी नेताओं ने भी झारखण्ड आकर करिया मुंडा से संपर्क कर यह जानने की कोशिश नहीं की, कि भाजपा को पुनः सत्ता में स्थापित करने के लिए क्या किया जाये?

हमारा इशारा झारखण्ड प्रभारी ओम प्रकाश माथुर और सह प्रभारी नन्द किशोर यादव की ओर हैं, इन दोनों को लगता है कि उनके पास जो राजनीति अनुभव हैं, वो झारखण्ड के लिए काफी हैं, और वे पुनः सत्ता में भाजपा को ले आयेंगे, जबकि राजनीतिक पंडितों का कहना है कि झारखण्ड को राजस्थान या गुजरात समझना या बिहार समझने की भूल करना मूर्खता हैं। राजनीतिक पंडितों के अनुसार वर्तमान में जो भाजपा की स्थिति हैं, उसे अगर कोई बेहतर स्थिति में ला सकता हैं तो वह हैं करिया मुंडा का दीर्घकालीन राजनीतिक अनुभव, पर यहां किसको फुरसत है कि करिया मुंडा के पास जाकर बैठे, बात करें, उनके अनुभवों का लाभ लें।

सभी अपने मगन में हैं और इधर पूरा विपक्ष इस बार भाजपा को उसकी औकात दिखाने के लिए बेचैन हैं, क्योंकि विपक्षियों को पता है कि वर्तमान रघुवर सरकार से भाजपा के कार्यकर्ता ही नहीं, बल्कि संघ के सभी आनुषांगिक संगठन के लोग गुस्से में हैं और उसकी औकात बताने के लिए बस समय का इन्तजार कर रहे हैं, जिसका फायदा अंततः विपक्ष को ही मिलेगा।

करिया मुंडा विद्रोही24.कॉम से बात के क्रम में कहते है कि आज की भाजपा को केवल झंडा ढोनेवाला चाहिए, सच पुछिये तो आज की भाजपा को आप झंडा पार्टी कह सकते हैं, जिनके लोगों के पास विजन और प्लानिंग दोनों का अभाव हैं, और जब इन दोनों का अभाव होगा तो आप जनता से दूर ही जायेंगे, और जब जनता से दूर जायेंगे तो परिणाम क्या आयेगा? सभी को मालूम हैं, पर इस मालूमात के बावजूद भी लोग दिवास्वप्न में हैं, यह कहकर कि हम झारखण्ड विधानसभा चुनाव में बेहतर ही प्रदर्शन करेंगे? चलिए भारी गड़बड़ियों के बावजूद भी, भाजपा बेहतर प्रदर्शन करें, हमारी शुभकामनाएं हैं, पर उससे भी ज्यादा हमारी इच्छा यह है कि राज्य में एक बेहतर सरकार बनें, जो सचमुच राज्य की जनता के भले के लिए काम करें, न कि जनता को समस्या में ही उलझा दें, जैसा कि पिछले कई सालों में होता रहा।