अपनी बात

पहली बार झारखण्ड के किसी नेता ने वर्तमान पत्रकारों और उनकी पत्रकारिता की खूलेआम धज्जियां उड़ाई

पहली बार राज्य के किसी प्रमुख नेता ने देश व राज्य में चल रही पत्रकारिता पर अपना पक्ष रखा है। ये कोई सामान्य नेता नहीं, बल्कि झारखण्ड के ऐतिहासिक पुरुष यानी प्रथम मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी है, उन्होंने अपने सोशल साइट के माध्यम से जोरदार शब्दों में अपनी बात रखी है, जो किसी नेता में हिम्मत नहीं कि आज की स्थितियों को देखकर कह दें।

बाबू लाल मरांडी के शब्दों में आज के चैनल/अखबार अपने मालिकों, जो सत्ता के गुलाम हैं, उनके ‘हिज मास्टर्स वाइस’ है। बाबू लाल मरांडी ने तो यहां तक कह दिया कि आज के चैनलों/अखबारों को देखकर इसे ‘समाचारों का व्यभिचार’ कहना ज्यादा तर्क संगत होगा। जरा देखिये बाबू लाल मरांडी ने क्या लिखा हैं और चिन्तन करिये, कि उन्हें इसे लिखने की आवश्यकता क्यों पड़ गई? बाबू लाल मरांडी के शब्दों में…

‘पत्रकारिता जब व्यवसाय या नौकरी बन जाए तो उसे पत्रकारिता नहीं कहते। जब से पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन आरंभ हुआ है, तबसे ही पत्रकार सामाजिक चेतना के निर्माण में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। ब्रिटिश शासन के दौर में भी पत्रकारों के मुँह बन्द नहीं किये गये थे। स्वाधीनता आन्दोलन और सामाजिक कुरीतियों के निवारण में पत्रकारों का योगदान अप्रतिम रहा है। पत्रकारिता का पहला सिद्धान्त है – तटस्थ विवेचन करना। जो अच्छा है उसे अच्छा और जो बुरा है उसे बुरा कहना। इसके अलावा समाज को सामयिक विषयों की उपयुक्त जानकारी देना।

किन्तु पत्रकारिता का वह युग अब समाप्त हो चुका है। टी वी पर हम जिन लोगों को समाचार सुनाते या सामयिक विषयों पर चर्चा करवाते हुए सुनते हैं ये चैनल मालिकों के वेतन भोगी सेवक हैं। इनको अपना विवेक इस्तेमाल करने या ईमानदार समाचार प्रसारण की अनुमति कतई नहीं होती है। ये हिज़ मास्टर्ज़ वाइस हैं। चैनलों के स्वामी बड़े व्यापारी हैं और उनका व्यापार सरकार की अनुकंपा का आकांक्षी होता है। अतः उनका काम केवल इतना है कि सरकार की प्रशंसा के ढोल पीटते रहें और ऐसी हर आवाज़ को दबा दें जो सरकार की छवि को धूमिल करती है। जैसे ही विपक्ष सरकार को किसी मसले पर घेरता है, तैसे ही सारे चैनल मिल कर किसी सनसनीखेज घटना पर शोर मचाकर जनता का ध्यान दूसरी तरफ़ मोड़ देते हैं। विपक्ष की हर चाल मीडिया के माध्यम से ही नाकाम की जाती है। इस सारे घोटाले को पत्रकारिता कहना सिरे से गलत है। इसे समाचारों का व्यभिचार कहना अधिक संगत होगा।’

सचमुच, जिन्हें भी पत्रकारिता में शुचिता पसंद हैं, उन्हें बाबू लाल मरांडी के इन बातों का अभिनन्दन करना चाहिए, साथ ही सोचना भी चाहिए कि आखिर आज की पत्रकारिता में सुधार कैसे संभव हैं? ऐसा नहीं कि इन गड़बड़ियों को सुधारा नही जा सकता, पर सुधार होगा कैसे? करेगा कौन?

सच तो यह भी है कि जब आज का नेता विपक्ष में होता हैं तो उसे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है और जब वह सत्ता में होता है, तो उसे यही दिव्य ज्ञान समाप्त हो जाता हैं, और फिर वहीं ठकुरसोहाती वाला कार्य उसे लूभावना लगने लगता है, वह नाना प्रकार के तिकड़म, कैसे अखबारों व चैनलों से अपनी स्तुति गवायां जाय, कैसे अखबारों व चैनलों में काम करनेवाले संपादकों को लौंडा बनाकर, अपने दरबार में नचवायां जाय, आदि पर काम करना प्रारम्भ कर देता है, जबकि होना तो यह चाहिए, कि उसे विपक्ष में रहने पर जिन-जिन बातों का उसे भान या ज्ञान हुआ, उसे गांठ बांधकर रख लेना चाहिए, तथा विपक्ष मे रहने पर जिन-जिन ने अपने कार्यों के प्रति ईमानदारी बरती, चाहे वह पत्रकारिता का क्षेत्र हो या कोई अन्य क्षेत्र, उसे सम्मान के साथ, आदर के साथ उनका अभिनन्दन करना चाहिए, पर होता यहां क्या है? जैसे ही विपक्ष में रहनेवाला सत्ता संभालता हैं, जो गलत लोग होते हैं, उनसे चिपक जाते हैं और फिर शुरु होता हैं, वहीं ड्रामा जो वर्तमान में दिखाई पड़ रहा हैं।

अरे भाई, जब आप सत्ता में रहेंगे तो एक अखबार का पूरा बिजली बिल माफ करवा देंगे, अरे भाई जब आप सत्ता में रहेंगे तो अपने मुख्यमंत्री कार्यालय में एक राष्ट्रीय चैनल के चिरकूट टाइप पत्रकार को, अपने यहां गोलगोप्पे खिलवाने से लेकर, हर प्रकार से उसे संतुष्ट करने के लिए विज्ञापन का भंडारा उसके लिए करवाना शुरु कर देंगे और इसके बदले में देश के सबसे तीसरे लोकप्रिय मुख्यमंत्री का खिताब लेने का प्रयास करेंगे तो फिर क्या होगा? यहीं सब होगा, जो हम देख रहे हैं?

अरे भाई, जहां का मुख्यमंत्री सत्ता में आने के बाद एक अखबार के प्रबंधन में शामिल लोगों को संतुष्ट करने के लिए सोने का खान दे देता हो, किसी को कोयले का खान, तो किसी को बाक्साइट, तो किसी को लोहे का खान थमा देता हो, तो फिर उस अखबार या चैनल में काम करनेवाले चिरकुट संपादकों/पत्रकारों से आप क्या उम्मीद रखते हैं?

अरे जहां चैनल व अखबारों के संपादक ही इसलिए बनाये जाते हो, कि वह मालिक के लिए सरकार से कितनी दलाली कर सकता हैं और सरकार से कितने पैसे या खानें उनके जिम्मे करा सकता है, उससे आप बेहतरी, ईमानदारी और देशभक्ति की अगर आशा रखते हैं, तो आप निहायत बेवकूफ हैं।

ऐसा भी नहीं, कि झारखण्ड में ईमानदार पत्रकार है नहीं, पर आप बताइये कि आप उन ईमानदार पत्रकारों को क्या सम्मान दिया? आज भी वह ईमानदार पत्रकार जो आपके घर का एक कप चाय तक पीना पसंद नहीं करता, कभी चैनल में रहने के बावजूद आपके यहां एक विज्ञापन तक के लिए नाक रगड़ने तक नहीं गया, आज भी सिंगल मैन आर्मी की तरह पत्रकारिता कर रहा हैं, और उसे रोकने की कोशिश की जा रही हैं, पर आपने उसे बचाने के लिए कुछ किया, जब वहीं पत्रकार, आपके ही एक विधायक को ये कहता है कि सत्य के लिए आप इसे विधानसभा में सवाल उठाए तो आपका विधायक मौन साध लेता हैं, और फिर आप कहते है कि यहां गलत हो रहा हैं तो फिर सही कौन है भाई।

मैं तो कहता हूं कि जिस दिन झारखण्ड या देश के नेता ईमानदार पत्रकार, चाहे वह कोई भी हो, उसका बेईमानों के बीच सम्मान करने लगेंगे और बेईमान पत्रकारों के बीच में से उठकर, ये कहेंगे कि भाई देखो, एक ईमानदार पत्रकार आ चुका हैं, मैं उनका स्वागत करने के लिए जा रहा हूं, अभिनन्दन करने जा रहा हूं, फिर देखिये बेईमानों का क्या होता है? पर ऐसा करने के लिए जिगर चाहिए।

मैंने तो हाल ही में देखा कि एक अखबार का संपादक, नीतीश भक्ति में लीन होने के बाद राज्यसभा पहुंच गया, बाद में  राजनीतिक तिकड़म के कारण उपसभापति बन गया, और लीजिए उसकी आरती उतरने लगी और बयान आने लगा कि वह महान हैं, वह यशस्वी है, उससे झारखण्ड का भला होगा। तो भाई झारखण्ड की जनता इतनी भी बेवकूफ नहीं कि आपके द्वारा बोली गई बातों को समझ नहीं रही, या यहां की मिट्टी इतनी भी अपनी उर्वरा शक्ति नहीं खो दी कि वो बेईमानों और उचक्कों को समझ नहीं रही।

पत्रकारिता करिये या नेतागिरी करिये

पर जो भी करिये,

झंडा गार के, सीना तान के…

नहीं भीख मांगेंगे, सत्ता से टकरायेंगे…

जब तक जीयेंगे, सच बोलेंगे/लिखेंगे…

जय भारत, जय भारती, जय झारखण्ड,

जय झारखण्ड की ईमानदार यशस्वी जनता।

5 thoughts on “पहली बार झारखण्ड के किसी नेता ने वर्तमान पत्रकारों और उनकी पत्रकारिता की खूलेआम धज्जियां उड़ाई

  • ज़ोर का झटका.
    रगड़के पटका.
    बेईमानों को ईमानदार
    दिखते कहाँ हैं सर ।

  • bittu

    बाबूलाल मरांडी जी अपने मुख्यमंत्रीत्व काल में जैसी पत्रकारिता का बीजारोपण किया था, ये उसी का फल मात्र है। पत्रकारों पर आरोप क्यों लगा रहे। आप खुद आरोपी हैं। आपको पहले ये बताने की जरूरत है कि किन राजनीतिक कारणों अथवा राजनीतिक लाभ को पाने के लिए आपने एक अखबार का कर्ज माफकर लाभ पहुंचाया। आपने कितने ईमानदार पत्रकार को सम्मान दिया। आप झारखंड के राजनीतिक खिलाड़ी नहीं अनाड़ी है। आपके आगे पीछे घूमने वाले पत्रकार की संपत्ति को देखा है….कभी उनसे पूछा कैसे अर्जित किया इतना धन रांची के रिहायशी इलाके में करोड़ों का आलिशान मकान। जबकि 2001 से लेकर अभी तक उसने कोई नामी चैनल्स या अखबार में काम तक नहीं किया। किसके कृपा से ये सभंव हुआ मरांडी जी बताए हमें भी।

  • R k mondal

    Sahi likha apne par jharkhand me jitne bhi samchar Chanel or ptrakar hai sab bahri hai o jharkhandi ke hit me kabhi awaj nahi uthayega .ese achha Hogan applogo ko bhi siv sena ke traz par samana jaise samchar Chanel ya news paper chalana chahiye tabhi jharkhandi ka samshsya rashtriy istar tak pahuch payega .

  • anish kumar keshri

    माननीय महोदय बाबूलाल मरांडी जी जानकारी के लिये बता दूं मैं अखबार के लिये काम करता हूं, पेशे से एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी हूं लेकिन इसके लिये सारे आय का जरिया मेरा अखबार यानि खबर मंत्र ही पूरा करता हैं यानि मैं पत्रकार भी हूं, महाशय जो संगीन आरोप पत्रकारिता पर लगा रहें है, किया आपने कभी पत्रकार से मिला है, क्या उसके दुख: को समझने का कोशिश किया है, आपकों हमसे तो रोज खबरे चाहिये लेकिन हमारी खबर के लिये कोई भी सामने क्यों नहीं आता है। और इन्होंने जो अखबार या टीवी चैनल के मालिकों पर आरोप लगा रहें है क्या वो पूरी तरह से जायज है, बिना आप जांच पडताल किये हुए कैसे इसका समर्थन कर सकते है, अफसोस हैं मुझे आप पर और शर्म भी। टीवी चैनलों या अखबार मालिक के उपर जो सत्ता के गुलाम कहकर जो आरोप लगाया है, किया ये जायज है, हम कैसे सत्ता के गुलाम है, सरकार की खामियां गिनाने में भी हम आगे रहते है, देश में ना जाने कितने बडे घोटाले हुए होंगे किया आज वो जनता से छुपी हुई है, इन सब खबरों को जनता तक कौन पहुंचाया है, महाशय जो ये संगीन आरोप लगाये है वो कभी ये भी सोच ले कि हम सरकार की विफलता पर भी चुप नहीं बैठते है, जनता के सामने उनकी छुपी हुई नकाब चेहरे को भी हम प्रमुखता से प्रकाशित कर परोसते है, तो फिर हम कैसे सत्ता के गुलाम हुए, और हां ये जो पत्रकारिता का पाठ पढा रहें है, वो हमें नहीं सिखाये बल्कि खुद सीखे। एक साधारण सा सवाल भारत बंदी था, यदि हम सत्ता के गुलाम होते तो किया इन खबरों को प्रकाशित करते है, जरूर बतायें, और शर्म है कि चैनलों के मालिक पर व्यवसाय करने का आरोप लगाया है, समाज का कोई भी भ्रष्ट चेहरा हमसे छुपी नहीं है, जहां तक व्यवसायिकता की बात है तो इसकी पुरी तरह से जांच पडताल कर आप अपना समर्थन दें। समाज, राजनीतिक, व्यवसायिकता सहित अन्य क्षेत्रों को कोई भी भ्रष्टाचार चेहरा हमसे छुपा नहीं है, किया रॉफेल डील पर हम चुप रहें नहीं कतई नहीं, किया विपक्ष की बातों को हम प्रकाशित नहीं करते, ये आरोप महाशय से जांच पडताल कर ही लगाने को कहिये। मेरे अंदर क्या दर्द है वो मेरा नंबर लेकर आप जान सकते है, मुझें आपके इस समर्थन का बहुत बुरा लगा है, मैं इतना लिख कर समय व्यतीत नहीं करना चाहता था लेकिन दर्द था आपके इस समर्थन का, और मैं पुरी इमानदारी से पत्रकारिता करता हूं

  • gunjan sinha

    पंडित जी, नमस्ते. पत्रकारिता तो गरीब की लुगाई है. जिसे मन करता है दो उपदेश झाड़ देता है. बाबूलाल मरांडी का ये सब धान २२ पसेर वाले ढंग से सबको गरिया देना ऐसा ही है जैसे कोई चोर पॉकेटमारी के खिलाफ भाषण दे रहा हो. इतिहास ने बाबूलाल को झारखण्ड का पहला मुख्यमंत्री बना कर इतिहास पुरुष बनने का वैसा ही एक मौका दिया था जैसा बिहार में असीम ताकत देकर लालू को दिया था. लालू ने चारा घोटाला कर दिया और मरांडी ने डोमिसाइल को ट्रम्प कार्ड बनाने की कोशिश की. लेकिन ऐसे गिरे कि गिरते चले गए. वे अगर बने रहते तो झारखंड भीतरी बाहरी के सवाल पर आज भी जल रहा होता. बाबूलाल, अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, रघुवर दास इन जैसे लोगों की औकात नहीं है कि झारखण्ड के पत्रकारों के बारे में एक शब्द भी प्रवचन के बोल सकें. इन्हें पत्रकारिता पर प्रवचन देना हो तो उस चोर चटर्जी को भले दे लें. लेकिन बाबूलाल को बता दीजियेगा कि आज भी झारखण्ड, बिहार ही नहीं, पूरे देश में पत्रकारों की ऐसी बहुत बड़ी जमात है जो अपना घर फूक कर भी समाज में रौशनी फैलाती है. कितने ही पत्रकार मारे गए – किसके किसके यहाँ गए बाबूलाल? कितने बिना पैसे काम करने को मजबूर हैं. कितनों को बेकसूर निकाल दिया जाता है. अभी पीटीआई के तीन सौ कर्मियों को निकाल दिया गया. बाबूलाल जैसे नेताओं ने एक शब्द भी बोलने की हिम्मत दिखाई क्या? जानने की भी कोशिश की क्या? हिन्जदों की तरह कर्मियों का संहार देखता रहा है ये समाज. इसे और इसके नेताओं को क्या हक है पत्रकारों से उम्मीद करने का?
    क्या सामाजिक सुरक्षा इन नेताओं और समाज ने दी पत्रकारों को ? इन नेताओं को कहिये अपनी औकात में रहें और पत्रकारिता की शुचिता अस्मिता पर बात न करें.

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