अपनी बात

पता नहीं क्यों, झारखण्ड के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से इतनी एलर्जी क्यों है?

पता नहीं क्यों, झारखण्ड के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से इतनी एलर्जी क्यों हैं? आज तक मैंने कभी भी इनके मुख से किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम में CM हेमन्त सोरेन की तारीफ नहीं सुनी। आज ही की बात ले लें। कट्टर संघी अशोक भगत के यहां आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने भाग लिया और उस कार्यक्रम में जो उन्होंने वक्तव्य दिया। उस वक्तव्य में उन्होंने आदिवासी समुदाय में से दो लोगों का नाम लिया। एक नाम था – राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु जी का और दुसरा नाम था – अर्जुन मुंडा का।

राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन का वक्तव्य था कि “हमलोगों के लिए गर्व की बात है की आदिवासी समाज की एक महिला राष्ट्रपति पद को सुशोभित कर रही हैं। राज्य के जनजातियों के विकास के लिए माननीय जनजातीय कार्य एवं कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री, भारत सरकार श्री अर्जुन मुंडा जी द्वारा लगातार कार्य किया जा रहा है। उन्होंने 85 से अधिक एकलव्य विद्यालय झारखंड को दी है।” अब सवाल उठता है कि द्रौपदी मुर्मु जी तो राष्ट्रपति है, उन पर तो सभी को गर्व है।

लेकिन आपने इसी गर्व का बोध करने/कराने के क्रम में आदिवासी समाज का उल्लेख करते हुए अर्जुन मुंडा का नाम ले लिया। तो क्या हेमन्त सोरेन आदिवासियों के लिए गर्व करने लायक नहीं है, अगर अर्जुन मुंडा ने 85 से अधिक एकलव्य विद्यालय दिये हैं तो हेमन्त सोरेन ने भी तो राज्य को 80 उत्कृष्ट विद्यालय दिये हैं।

पूरे राज्य के लोगों को बिना भेदभाव के सर्वजन पेंशन योजना दिये हैं। अपने राज्य में काम करनेवाले राज्यकर्मियों को न्यू पेंशन स्कीम से हटाकर ओल्ड पेंशन स्कीम दिये हैं। 1932 का खतियान दिया है। निजी कल-कारखानों में 75% स्थानीयों को आरक्षण दिये हैं। मतलब हेमन्त सोरेन अर्जुन मुंडा से पद या कार्यों में किसी भी प्रकार से कम हैं क्या?

आप तो जहां भी जाते हैं, मौका मिलता है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा करते हैं, प्रशंसा करनी भी चाहिए, जो व्यक्ति काम करता हैं, उसकी मुक्तकंठ से प्रशंसा होनी चाहिए, पर प्रशंसा में भेदभाव व राजनीतिक पृष्ठभूमि का समावेश उचित नहीं। आप आज यहां राज्यपाल हैं, कल नहीं रहेंगे, पर इतिहास आकलन आपका भी करेगा कि आप की कार्यशैली कैसी रही? राज्यपाल के पद पर बैठे व्यक्ति को चाहे वो किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ा हो, उसे राजनीति से उपर उठना चाहिए और उसे किसी की भी प्रशंसा करने में, अगर सही हैं तो चूकना नहीं चाहिए।

हो सकता है कि आपके भय से कोई आपके सामने बोलने से चूक जाये या सत्य कहने से इसलिए डरे कि कहीं आप उस पर राजदंड न चला दें, लेकिन दुनिया में ऐसे भी लोग हैं, जो इन सभी से परे हैं। वे सत्य का अनुसरण करते हैं। उन्हें सत्य के सिवा दूसरा कुछ दिखता भी नहीं। वे तो बोलेंगे ही।

अंत में राज्य की जनता आनेवाले समय में देखना चाहेगी कि आप भाजपा छोड़कर अब तक कितने राजनीतिक दलों के उन नेताओं का नाम लिया, जिन्होंने ईमानदारी से देश व राज्य दोनों को बेहतर दिशा दी हैं, अगर आपने ऐसा नहीं किया तो जनता की नजरों में आप सामान्य ही रहेंगे, हमें लगता है कि सामान्य का मतलब क्या होता हैं, आप जानते होंगे और अगर नहीं जानेंगे तो लोग बता देंगे।