अपनी बात

स्व.अरुण कुमार पांडेय को श्रद्धांजलि, जो भी व्यक्ति संघर्ष को समझना या अपनाना चाहता है, उसे उनकी जिंदगी से सबक लेनी चाहिए

अरुण कुमार पांडेय कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता थे। आज वे इस दुनिया में नहीं हैं। उनका आज ही श्राद्धकर्म है। बड़ी संख्या में रांची के धुर्वा में उनकी बेटी के आवास पर उनका श्राद्धकर्म आज संपन्न हुआ है। जो लोग उनको जानते हैं। उन पर श्रद्धा लुटाते थे। उनके आवास पर जाकर श्रद्धा सुमन भी अर्पित कर रहे हैं। श्रद्धा सुमन करनेवालों में राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन भी शामिल है।

स्व. अरुण कुमार पांडेय को जो भी लोग जानते हैं। वे इस बात को स्वीकार करने में जरा भी संकोच नहीं करते हैं कि वे निर्भीक, संघर्षशील, अपने बातों पर अडिग रहनेवाले, गरीबों के हकों के लिए लड़नेवाले, लोकप्रिय व जुझारु इन्सान थे। उन्हें कभी भी किसी पद का लालच नहीं रहा। जैसा कि आम तौर पर आजकल देखा जाता है कि हर व्यक्ति किसी न किसी इच्छा से या महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए राजनीति से जुड़ा रहता हैं, वो चीजें इनमें नहीं दिखी।

उनकी धर्मपत्नी प्रतिभा पांडेय पूर्व में झारखण्ड की समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष भी रही हैं, जबकि उनकी एक बेटी दीपिका पांडेय वर्तमान में महगामा विधानसभा से कांग्रेस की विधायक हैं और अपने पिता के संघर्षशील वाली गुणों को धारण कर रखी हैं। जब भी मैंने सदन में किसी भी बातों को लेकर अपनी बातों को उन्हें रखते देखा हैं, पिता का यह गुण उनमें देखने को मिलता है। लोग बताते हैं कि उनकी दो बेटियां और हैं, एक तो विदेश में रहती हैं, जबकि दूसरी मुंबई में एक अच्छे पद पर कार्यरत है।

अरुण कुमार पांडेय को महिला सशक्तिकरण के सबसे अच्छे उदाहरण के रुप में देखा जा सकता है। उन्होंने अपनी पत्नी और बेटियों को जिस प्रकार से सशक्त बनाया और आज उनके नहीं रहने पर भी जो इनके घर की महिलाएं अपने दायित्वों का निर्वहण करने तथा समाज को एक नई दिशा देने में जो योगदान दे रही हैं, वो काबिले तारीफ है। इस बात की चर्चा सभी लोग करते हैं और कोई इससे इनकार नहीं कर सकता।

अरुण कुमार पांडेय से मेरी पहली मुलाकात रांची के बिरसा चौक पर हुई थी, जब वे एक धरना-प्रदर्शन में शामिल थे। यह बात 2002 की हैं। उस वक्त मैं ईटीवी रांची में कार्यरत था। वो धरना प्रदर्शन काफी खास था। बड़ी संख्या में महिलाएं वहां एकत्रित थी और वे उनका हौसला अफजाई कर रहे थे। उस वक्त उन्हें पता नहीं था कि मैं किस चैनल में काम कर रहा हूं? उस वक्त ईटीवी को कोई जानता भी नहीं था। इसलिए मुझे सबसे पहले परिचय देना जरुरी पड़ता और लोगों को बताना पड़ता कि ईटीवी क्या है?  

लेकिन अरुण कुमार पांडेय को पता था कि ईटीवी क्या है और ये कहां से प्रसारित होता है। उन्होंने लंबी बातचीत की। अपने पॉकेट से छोटा सा डायरी निकाला और मेरा नाम तथा मेरा मोबाइल नंबर नोट किया। उसके बावजूद से जब भी वे मिलते, टोकते और बात करते। उनका बातचीत करने का तरीका ऐसा था कि सभी उनके हो जाते। मैंने उन्हें देखा कि वे इसकी परवाह नहीं करते कि संघर्ष का परिणाम क्या निकलेगा? बस वे संघर्ष करना जानते थे।

हालांकि उन्हें जिंदगी के ज्यादातर क्षेत्रों में हार ही ज्यादा नसीब हुई पर उन्हें कभी हार से शिकायत नहीं थी। लेकिन हां, उन्होंने जो अपने बेटियों में संस्कार भरें और उस संस्कार के द्वारा जो बेटियां आज बेहतर कर रही हैं। वो बताने के लिए काफी है कि अरुण कुमार पांडेय क्या थे? जो भी जिंदगी को बेहतर ढंग से जीना चाहते हैं या संघर्ष को समझना चाहते हैं, उन्हें अरुण कुमार पांडेय की जिंदगी से तो सबक लेना ही चाहिए। विद्रोही24 की ओर से अरुण कुमार पांडेय को श्रद्धांजलि।