पता नहीं, बिहारियों को ये कब समझ आयेगी कि बकरे और मुर्गे-मुर्गियां कटने के लिए ही पैदा होते हैं

पता नहीं, बिहारियों को ये बात कब समझ में आयेगी कि बकरे और मुर्गे-मुर्गियां कटने के लिए ही पैदा होते हैं, अगर आप बकरे और मुर्गे-मुर्गियां खुद को बनायेंगे तो यहीं होगा, जो आज गुजरात में हुआ। क्या ये सही नहीं कि बिहारी मजदूर कभी असम तो कभी तमिलनाडू में घृणा राजनीति के शिकार हुए, महाराष्ट्र में तो ये सिलसिला थमने का नाम ही नहीं लेता। कभी दिल्ली की सीएम रह चुकी कांग्रेस की वरिष्ठ नेतृ शीला दीक्षित भी ऐसे बयान दे चुकी है, जिससे बिहारियों के प्रति घृणा की बात स्पष्ट रुप से दीख जाती है। यहीं नहीं, वर्तमान केन्द्रीय मंत्री और बिहार के बक्सर से ही भाजपा के सांसद अश्विनी चौबे भी पिछले दिनों बिहारियों पर कड़ी टिप्पणी कर चुके है, याद करिये उनके बयान को, जब उन्होंने कहा कि बिहार के लोगों की वजह से दिल्ली के एम्स में भीड़ बढ़ गई है।

कमाल की बात है, अगर आज गुजराती, बिहारियों को प्रताड़ित कर रहे हैं तो गुजरातियों को लोग भला-बुरा कहने लगे है, पर ये क्यों भूल जाते है कि कभी अपने बिहार के लोग भी, बिहारियों को भला-बुरा कहने से नहीं चूके हैं, बिहार में एक लोकोक्ति है, ‘हम दूसरों को क्या दोष दें, जब अपने ही हमे, अपने नहीं समझते।’

मैं भी खांटी बिहारी हूं, मुझे गर्व है कि मेरे माता-पिता ने तो मेरे तीन शब्दों के नाम के मध्य में ‘बिहारी’ जोड़ रखा है, और न तो इसे लेकर हमें कभी गर्व महसूस हुआ और न ही हीनता की भावना। हमारे बहुत सारे ऐसे मित्र है, जो ये कहते फूले नहीं समाते कि बिहारी पढ़ने में बहुत तेज होते है, सर्वाधिक आइएएस और आइपीएस की नौकरियों पर बिहारियों का ही कब्जा है, पर मुझे ऐसा कभी लगा ही नहीं, क्योंकि जब भी कभी आइएएस या आइपीएस की नौकरियों वाली रिजल्ट निकलें, तो देश के हर राज्यों से प्रतिभाएं देखने को मिली।

हमें याद है कि एक बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, जब बिहार में एक चुनावी दौरे पर आये तो वे बिहार की प्रतिभा के बारे में दो शब्द बोले, उनका कहना था कि दिल्ली के टीवी चैनलों में सर्वाधिक प्रमुख स्थानों पर बिहारियों का ही कब्जा है, पर हमें ऐसा कभी नहीं लगा, क्योंकि प्रमुख स्थानों पर कभी बिहार का कब्जा नहीं रहा, आज भी दिल्ली में चल रहे जितने भी चैनल है, उसके मालिक या तो  गुजराती है, या बंगाली है, या मराठी है, पर बिहारी कोई नहीं, ज्यादातर बिहारी दूसरे दर्जे या तीसरे दर्ज के याचक है।

नौकरी करना और याचक बनना दोनों में असमानताएं है। याचक कभी सीधी तरह खड़ा नहीं हो सकता और नौकरी पेशा व्यक्ति कब सीधी खड़ा खुद को कर लें, कुछ कहा नहीं जा सकता। दरअसल हम बिहारियों ने खुद को नौकरी पेशा ज्यादा बनाया है और इसी क्रम में कब याचक बन गये, हमें पता भी नहीं चला, और इसे बनाने में अगर किसी ने भूमिका निभाई, तो वे लोग थे, जिन्होंने बिहार की राजनीति की दशा और दिशा ही बदल दी।

कभी 1947 से 1966 तक जो बिहार पूरे देश में आर्थिक और समग्र विकास के लिए चर्चा का केन्द्र हुआ करता था, जैसे ही 1966 से लेकर 2018 की दहलीज तक कदम बढ़ाता गया, हमारे राज्य के राजनीतिज्ञों ने अपने परिवारों की ओर ध्यान केन्द्रित करना शुरु किया, उनका पहला और अंतिम लक्ष्य उनका परिवार रहा, जिसके कारण इन राजनीतिज्ञों के, अब आप इसमें पत्रकार भी जोड़ सकते है, क्योंकि इनकी भी राजनीति में कम दिलचस्पी नहीं रही है, इन सब ने खुद को दिल्ली और दिल्ली जैसे महानगरों और प्रमुख स्थानों में अपने व्यवसाय और अट्टालिकाओं के निर्माण पर ज्यादा ध्यान देना शुरु किया और यहीं से बिहार और बिहारियों की दुर्दशा होनी शुरु हो गई।

जो बिहार डा. राजेन्द्र प्रसाद और जयप्रकाश नारायण के लिए जाना जाता था, गांधी की कर्मभूमि के नाम से जाना जाता था, वह बिहार लालू प्रसाद जैसे मसखरों और शिवानन्द तिवारी जैसे सत्तालोलूप लोगों का बंधक बन गया। किसी ने जातिवाद तो किसी ने सांप्रदायिकता की राह पकड़ी, सभी ने अपनी-अपनी राजनीति की, खुद को सत्ता में फिट किया और बिहारियों को हर क्षेत्र में अनफिट करना प्रारंभ किया, जिसका परिणाम हुआ, बिहार और बिहार के लोग आत्मनिर्भर या अपने पैरों पर खडे कभी नहीं हो सकें, जबकि आज भी बिहार के हाथों में वह ताकत है कि आज भी मुंबई, अहमदाबाद, सूरत, वडोडरा, चेन्नई, दिल्ली, कोलकाता, गुवाहाटी जैसे नगर-महानगर इन्हीं के दम से चमकते हैं, आज भी किसी भी शहर में चाहे वह कपड़े के मिल हो, या कोई भी कल-कारखाने, बिना बिहारियों के इनके कल-पूर्जे नहीं खनकते, पर गालियां भी इन्हें ही सुनने को मिलती है।

बिहार का भारतीय डाक विभाग, इन्हीं मजदूरों से गुलजार होता है, क्योंकि इन्हीं के माध्यम से इनके घरों में कल तक मनीआर्डर पहुंचा करते थे, आज भी पोस्टआफिस के बचत बैंक का प्राणाधार, ये दूसरे राज्यों में काम करनेवाले किसान-मजदूर ही हैं, जो दूर रहकर, अपने परिवारों की चिन्ता करते हैं, और कहते हैं कि कुछ पैसे बचाकर, पोस्टआफिस के खाते में डाल देना।

ज्यादा दिनों की बात नहीं, बिहार से ही अलग हुआ झारखण्ड, जब डोमिसाइल आंदोलन की चपेट में आया तो इसी झारखण्ड में कभी साथ-साथ रहनेवाले, नये – नये झारखण्डी बने यहां के मूल निवासियों-आदिवासियों ने बिहार और बिहारियों को अपना निशाना बनाना प्रारम्भ किया। 2003 से लेकर 2005 तक स्थिति इतनी खराब रही कि उसका असर आज भी एक-दो स्थानों पर देखने को, कहीं न कहीं मिल ही जाता है। जो लोग ये नारा लगाना नहीं भूलते कि ‘एक बिहारी सब पर भारी’, उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए कि इसी रांची की सड़कों पर समाचार संकलन करने के क्रम में हमने सुना कि ‘एक बिहारी सौ बिमारी’ ये एक बिहारी, सौ बिमारी कैसे बन गया, कौन इसका जिम्मेवार है? वह कौन सत्ताधीश था, जिसने कागज पर ही सड़कों को बना दिया? जो गाय-बकरियों तक के चारा तक को नहीं छोड़ा? जिसने विकास की गति को अवरुद्ध कर दिया, जो अपने बच्चों को बिना पढ़े डाक्टर बनवा दिया, और एपीजे अबदुल कलाम से गोल्ड मेडल तक दिलवा दिया, जिसके घर में रहनेवाले कुत्ते, घोड़े तक पटना में आयोजित होनेवाले शो में प्रथम स्थान प्राप्त कर लेते थे, जो पाकिस्तान जाकर आलू ढूंढा करता था, जिससे जनता बेहद प्यार करती थी और जब जेल से निकलता था तो हाथी पर बैठकर धूम मचाता था और आज स्थिति ऐसी है कि वह चक्कर खाकर गिर पड़ता है।

मैं बार-बार कहता हूं कि इस राज्य को और यहां के लोगों को अगर किसी ने बर्बाद किया तो वे है बिहार के राजनीतिज्ञ, जिसे जनता ने आंखों पर बिठाया, पिछड़ों का मसीहा मानकर बिठाया, सामाजिक न्याय का पुरोधा मानकर बिठाया और उसने भी बिहार और बिहारियों के पीठ पर छूरा भोंक दिया, अरे गैर पीठ या पेट पर लात या छूरा मारते हैं तो समझ आती है, पर जब अपने मारते-भोकते हैं तो दर्द किसे दिखाएं, बिहार व बिहारियों के लिए यही चिन्तनीय है।

बिहार और बिहारियों की खासियत रही है कि ये कभी किसी के साथ धोखा नहीं करते, अगर इनमें से एक ने कहीं कोई गलती की, तो उसके लिए पूरे बिहारियों को कटघरे में नहीं किया जा सकता और अगर ऐसा किया जा सकता है तो हम गुजरातियों से पूछते है कि क्यों न नीरव मोदी, ललित मोदी, नीतेश सेंदरा, मेहुल चौकसी जैसे बैंक लूटेरों के नाम पर  पूरे गुजरातियों को लटका दिया जाये, आशा राम बापू जैसे लोग भी तो वहीं कर रहे थे, तो क्यों नहीं इसकी सजा सारे गुजरातियों को दे दिया जाय, क्योंकि इसी प्रकार का बहाना बनाकर तो बिहारियों को गुजरात से खदेड़ा जा रहा है।

हम अच्छी तरह जानते है कि ये सब काम एक दिन में नहीं होता, ये तो बहुत पहले से ही इसकी रुपरेखा तैयार कर ली जाती है और ढूंढा जाता है एक ऐसा बहाना, जिसके नाम पर उक्त रुपरेखा को जमीन पर उतार दिया जाता है, जैसा कि गुजरात में इन दिनों हो रहा है, और इसमें कांग्रेस पार्टी के ही एक नेता का नाम उभर कर सामने आ रहा है।

बिहारियों और शांति-प्रेम में विश्वास रखनेवाले सभी नागरिकों ये जान लों कि वर्तमान में कोई भी राजनीतिक दल दूध का धूला नहीं हैं, अगर आप ये सोचते हो कि भाजपा के शासनकाल में ये सब हो रहा है, कांग्रेस आ जायेगी तो ठीक हो जायेगा, तो आप निहायत आला दर्जे का बेवकूफ हो, आप जब तक खुद को बकरे और मुर्गे-मुर्गियों के तर्ज पर जीत रहोगे, ये लोग आपको शिकार बनाते रहेंगे, अगर आप ये सोचोगे कि हम बिहार में आकर सुरक्षित रहेंगे तो ये भी गलत होगा, क्योंकि यहां भी कुछ लोग आपको जीने नहीं देंगे, ये कहकर कि यहां से सब कुछ छोड़कर क्यों गया था? अब जब वहां मार-पीट होने लगी तो तुम्हें अपना बिहार याद आने लगा, इसलिए खुद को मजबूत करों, तुम सिंह पुरुष हो, तुम सम्राट अशोक, चन्द्रगुप्त और चाणक्य की संताने हो, तुम भगवान बुद्ध और महावीर की भूमि के पुत्र हो, क्यों और किससे डरते हो? जीना सीखो, लड़ना सीखो और हराना सीखो, तुम्हारी डर से सिकन्दर मगध तक नहीं पहुंच सका, अब कौन सी बात हो गई? कि तुम भागने और पलायन करने लगे।

कोई नरेन्द्र मोदी, कोई नीतीश कुमार, कोई सुशील मोदी आपको नहीं बचा पायेगा, क्योंकि ये खुद कमजोर है, ये खुद कायर है, कभी देखना, इन्हें ध्यान से, ये अपनी सुरक्षा के लिए कितना लाम-काम बांधते हैं, कितने सुरक्षाकर्मी अपने साथ लेकर चलते हैं, यानी जो खुद असुरक्षित हैं, वो तुम्हें क्या सुरक्षित रखेगा, इसलिए वर्तमान में अपनी जरुरतें सीमित करों, बिहार में ही रहो, अपने गांवों को ही आर्थिक रुप से मजबूत करों, जो चीजें गांवों में उपलब्ध है, उसी से अपने आपको मजबूत करों, किसी नेता के चक्कर में मत पड़ो, कोई फारवर्ड-बैकवर्ड, दलित-महादलित के चक्कर में मत पड़ो, केवल ये देखो, जो तुम्हारे आस-पास में हैं, वे सभी तुम्हारे परिवार हैं, याद रखो जब आप गांव में एक थे, एक दूसरे से रिश्ते में बंधे थे, तुम मजबूत थे, और जैसे ही तुम अलग हुए, तुम्हें पहले अपना कहने वालों राजनीतिबाजों ने तुम्हें लूटा और अब तुम्हें दूसरे राज्यों के लोग तुम्हें अपमानित करते हैं।

मुझे बहुत दुख होता है कि जब बिहारियों के साथ गलत होता है, मुझे बहुत दुख होता है, जब कोई इन्सान किसी इन्सान के साथ हैवानों सा सलूक करता है, पर मुझे गर्व है कि आज तक हमारे बिहार में किसी नें, किसी को भी गैर नहीं समझा, सबको अपना समझा है, अरे हमने तो आज भी दूसरे राज्यों के लोगों को बड़ी ही सम्मान के साथ लोकसभा ही नहीं, राज्यसभा तक भेजा है, पर आज देखो, वे ही हमें तंग कर रहे हैं, इससे बड़े शर्म की बात और क्या हो सकती है?

हमें इस बात की खुशी भी है कि गुजरात में इतने अपमान सहने के बावजूद भी, गुजरात से लौटे किसी भी बिहारी मजदूर ने गुजरातियों के लिए एक शब्द भी कड़वे बोल नहीं निकाले है, क्योंकि हम जानते है कि जीना किसको कहते है, क्योंकि ये गाना तो हम ही गाते हैं – हम पूरब है पूरबवाले, हर जान की कीमत जानते हैं, हर जान की कीमत जानते हैं, मिल जुलके रहो, और प्यार करो, इक चीज यहीं जो रहती है, हम उस देश के वासी है…