अपराध

शर्मनाकः झूठा विज्ञापन छापनेवाला अखबार ही चोर-चोर चिल्ला रहा है

पहले पैसे की लालच में आकर खुद झूठे विज्ञापन छापो और जब आपके अखबार में छपे विज्ञापन को सच मानकर (वो इसलिए क्योंकि आप खुद को अखबार नहीं मानते, आप तो खुद को ‘अखबार नहीं आंदोलन’ कहते हैं), यहां के बेरोजगार युवक अपनी जमा पूंजी लूटा दें, तो फिर अपने ही अखबार में ठगी के मामले का समाचार छापो, और वह भी तब, जब ठगी करनेवाला व्यक्ति या संस्थान के ठगी करने का अंतिम तिथि हो, ताकि जो अखबार में विज्ञापन देने का जो उसका मकसद हो, वो सफल हो जाये।

भाई, ऐसा ये एक बार नहीं हुआ है, ये जो ठग होते हैं, वे ठगी पेशे में बड़ी ईमानदारी दिखाते हैं, वे अखबारों को अपने विज्ञापन छपवाने के लिए मुंहमांगी रकम अदा करते हैं, वे इसके लिए अखबार से जुड़े लोगों को हर प्रकार की जरुरतें पूरी करवाते हैं, और अगर वो जरुरतें पूरी नहीं हुई, तब जाकर ऐसे समाचार सुनियोजित तरीके से छपवाये जाते हैं।

उदाहरण आपके सामने हैं, आप रांची से प्रकाशित अखबार प्रभात खबर जो स्वयं को अखबार नहीं आंदोलन कहता है, आंदोलन का मतलब आप समझते ही होंगे, उसने 8 अगस्त 2018 को ग्रामीण विकास कौशल मिशन का पृष्ठ संख्या तीन पर इसी संस्थान का विज्ञापन छापा, कि उसके यहां बड़ी संख्या में वैकेंसियां हैं, प्रथम दृष्टया ये विज्ञापन पूरी तरह से फर्जी दिखता हैं, ऐसे में ये फर्जी विज्ञापन पर स्थानीय संपादक या प्रधान संपादक की दृष्टि क्यों नही गई? उसने अपने संबंधित बीट के संवाददाता को इस पर ध्यान देने को क्यों नहीं कहा और जबकि अब एक बहुत बड़ा धक्का, यहां के बेरोजगार युवकों को लग चुका हैं, ऐसे में ये समाचार जो आज छापा गया, उसका मकसद क्या हैं?

क्या अखबार को पता नहीं कि हमारे राज्य में जो बेरोजगार हैं, वे इतने भोले-भाले है कि वे अखबार में छपी बातों को सही मान लेते हैं, वह भी तब, जबकि आप खुद को आंदोलन बताते हो, जब आप अपराजिता सम्मान कराते हो, जब आप मेधावी छात्र सम्मान समारोह आयोजित करते हो, जब आप अपने ही यहां काम कर चुके प्रधान संपादक रह चुके हरिवंश को अखबार के नाम से नागरिक अभिनन्दन करा देते हो। ऐसे में यहां के युवा तुम्हारे अखबार पर विश्वास कैसे न करें?

अगर सच पूछा जाये, तो इसके लिए अगर कोई जिम्मेदार हैं, तो वह हैं प्रभात खबर, जिसने झूठी विज्ञापन वो भी पैसे के लिए, प्रकाशित कर, यहां के बेरोजगार युवकों को ठगी का शिकार बना दिया। हम उन अखबारों को भी जिम्मेवार मानेंगे, जिन्होंने ऐसा विज्ञापन छापा हैं, या छापते रहे हैं। राज्य सरकार को चाहिए कि ऐसे अखबारों पर लगाम लगाएं तथा झूठे विज्ञापन छापनेवालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करें, क्योंकि ये सामान्य बात नहीं हैं, लाखों बेरोजगारों के साथ क्रूर मजाक हैं, पर राज्य की रघुवर सरकार ऐसा करेंगी, इसमें हमें संदेह हैं, क्योंकि ऐसा करने के लिए जिगर चाहिए, वह जिगर न तो सीएम रघुवर दास के पास हैं और न ही यहां किसी नेता के पास, क्योंकि सभी को छपास की बिमारी है, यहां के नेताओं को आम जनता की तकलीफों से कोई मतलब नहीं।

जनता लूट जाये, उसके बच्चे मारे-मारे फिरे, कोई भी कोलकाता, पटना, या दूसरे जगह का आदमी उनके बच्चों को ठग कर चला जाये और उसमें यहां का अखबार पैसे की लालच में अपनी रोटी सेंके, उससे किसी को कोई मतलब नहीं, बस मतलब हैं, उसका नाम, फोटो अखबार में छपता रहे और अखबार वाले जो चाहे मनमर्जी करते रहे, जरा आज ही का प्रभात खबर अखबार देखिये, पेज नं. दो पर छापा हैं, शीर्षक है – आम जनता को लुभा रहा, सस्ता साड़ी केन्द्र, नीचे में इसने बड़ी ही खुबसुरती से साइड में ADVT लिख दिया, पर सच पूछा जाये, तो इस विज्ञापन को देख, प्रथम दृष्टया यहीं लगता है कि ये विज्ञापन न होकर, समाचार हैं, ऐसे में जब बुद्धिजीवी वर्ग जब चकरा जाता हैं तो सामान्य व्यक्ति की क्या हाल होगी, इसलिए हम सभी झारखण्डवासियों से अपील करेंगे, कि वे न तो रघुवर सरकार पर विश्वास करें और न उनके मातहत काम कर रहे आइएएस/आइपीएस लोगों पर, अखबारों पर तो विश्वास ही मत करें, क्योंकि ये आपको उल्लू बनाने के लिए पैदा हुए हैं, कुछ तो बन रहे हैं, कुछ तो बन गये हैं और कुछ बनने के लिए लाइन में लगे हैं, इसलिए आपका झारखण्ड हैं, इसे कैसे बनायेंगे, क्या बनायेंगे, क्या बनाना हैं, आप स्वयं इस पर ध्यान दीजिये, नहीं तो जान लीजिये, झारखण्ड का बंटाधार तय है, क्योंकि कोई चीन जाने में लगा हैं, उसे लगता है कि झारखण्ड में टावर की जरुरत हैं, और किसी को लगता है कि झूठे विज्ञापन देकर, माल बंटोरने में मजा हैं, पर आप क्या चाहते हैं, टावर बनवाना या अपना माल लूटवाना। चिन्तन करिये। झारखण्ड बचाइये।