लूईस ने बंगाल को चेताया, मसानजोर डैम पर दादागिरी बर्दाश्त नहीं करेगा झारखण्ड

बिहार के तत्कालीन नेताओं ने थोड़ी प. बंगाल पर दया क्या दिखा दी, उन्हें राहत क्या प्रदान कर दी, अपने जलाशयों से पानी और ऊर्जा का क्या प्रबंध कर दिया, आज के बंगाल के नेताओं ने जलाशयों और ऊर्जा के साथ-साथ, वर्तमान में झारखण्ड के जमीनों पर भी दावेदारी ठोक दी, ये जब चाहे झारखण्ड की धरती पर आते हैं, अपना तोरण द्वार बना देते हैं, अपना लोगो लगा देते हैं, विभागीय बैनर-पोस्टर लगा देते हैं तथा झारखण्ड सरकार के बैनरों-पोस्टरों तथा लोगों को बड़ी ही अनुचित ढंग से उतारकर जमीन पर फेंक देते हैं, ऐसे में जो झारखण्ड के निवासी हैं, उन्हें तो बुरा लगेगा ही, वे तो इसका प्रतिकार करेंगे ही और जब मामला उलझेगा तो नुकसान अंततः बंगाल को ही उठाना पड़ेगा, शायद बंगाल को मालूम नहीं।

प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके अंतर्गत काम करनेवाले अधिकारियों को लगता है कि सर्वाधिक बुद्धिमान वहीं हैं, देश में उनके जैसा बुद्धिमान कोई हैं ही नहीं, वे झारखण्ड से सारी सुविधा लेंगे, पर जब झारखण्ड के लोग उनसे मानवीय मूल्यों पर मदद मांगे तो वे उन मदद पर सदा के लिए रोक लगा देंगे। हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि थोड़े दिन पहले ही ये खबर आई की बंगाल से सटे झारखण्ड के इलाकों के जब गरीब मरीज बंगाल के स्वास्थ्य केन्द्रों में जाते हैं, तो उन्हें स्वास्थ्य संबंधी सुविधा नहीं दी गई, उन पर रोक लगा दी गई, ये कहकर कि ये सिर्फ बंगाल के लोगों के लिए हैं,  जबकि सच्चाई यह है कि बंगाल के भी कई लोग झारखण्ड के विभिन्न सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों का लाभ लेते हैं, और झारखण्ड सरकार ने कभी रोक नहीं लगाई।

इसी प्रकार जब आलू का दाम जोर पकड़ने लगा तो बंगाल-झारखण्ड की सीमा पर पुलिस तैनाती कर, बंगाल से आ रहे आलू को झारखण्ड में प्रवेश करने पर रोक लगा दी गई, अब सवाल उठता है कि जब आप आलू जैसी सब्जियों पर रोक लगाओगे, स्वास्थ्य संबंधी चीजों पर रोक लगाओगे तो फिर झारखण्डवासी अपनी जमीन पर बने जलाशयों का उपयोग बंगाल के लोगों के हित में क्यों करने दें, आप हर प्रकार की सुविधा लो और झारखण्ड को आंख भी दिखाओ, वाह क्या मजाक बना कर रख दिया हैं, बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने।

झारखण्ड की समाज कल्याण मंत्री लुईस मरांडी का यह बयान कि मसानजोर डैम से दूर रहे बंगाल, तथा दुमका के मयूराक्षी नदी पर बने मसानजोर डैम की ओर कोई आंख उठाकर देखेगा, तो हम उसकी आंख निकाल लेंगे, ये प्रतिक्रिया ऐसे ही नहीं आ गई, चूंकि बंगाल ने हमेशा से ही झारखण्ड को उसके जन्मकाल से शोषण करता आ रहा हैं। जरा इसे भी देखिये, भारत का सर्वाधिक कोयला उत्पादित करनेवाला राज्य झारखण्ड और कोल मुख्यालय कोलकाता में, यानी कल्याण से संबंधित हो या नौकरी से संबंधित सारे मामले पर बंगाल का कब्जा और झारखण्डी भीख मांगते रहे।

पूर्व में इसी बात को लेकर, झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने कभी कोल मुख्यालय को कोलकाता से रांची लाने की बात कहीं थी, पर चूंकि केन्द्र में उस समय शक्तिशाली सरकार नहीं थी, जिसका फायदा शिबू सोरेन नहीं उठा सकें, पर ऐसा नहीं कि ये मामला गौण हो गया। मामला आज भी झारखण्डियों के दिलों में सुलग रहा है।

डा. लुईस मरांडी ने एक तरह से ठीक ही कहा कि मसानजोर डैम को लेकर पूर्व में किये गये एकरारनामे की अवधि समाप्त हो गई है, और इसलिए प.बंगाल सरकार उस एकरारनामे को सार्वजनिक करने से कतरा रही हैं, उधर प. बंगाल के सिंचाई मंत्री सोमेन महापात्रा गलथेथरई करने से बाज नहीं आ रहे है। उनका बयान है कि मसानजोर डैम भले ही झारखण्ड में हैं, पर उस पर नियंत्रण बंगाल का है, तो क्या कोलकाता तो बंगाल में हैं, ऐसे में उस पर झारखण्ड का नियंत्रण हो जायेगा। ऐसा हास्यास्पद बयान केवल बंगाल में बैठे तृणमूल कांग्रेस के लोग ही दे सकते हैं। जरा देखिये सोमेन महापात्रा का एक और बयान, प. बंगाल सरकार द्वारा वहां कार्यरत कर्मचारियों को वेतन दिये जाते हैं, अरे भाई मसानजोर डैम से पानी और ऊर्जा का उपयोग करोगे तुम और पैसा भरे झारखण्ड। हद हो गई।

यहां तो बात है कि मसानजोर डैम हैं कहां, तो एक अंधा भी कहेगा कि झारखण्ड में, ऐसे में झारखण्ड की जमीन पर बंगाल सरकार का कैसे कब्जा और नियंत्रण हो जायेगा? अच्छा रहेगा कि बंगाल और झारखण्ड सरकार मिल बैठकर इस समस्या का जल्द निदान कर लें, नहीं तो अभी बंगाल की मुख्यमंत्री भारत के प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देख रही हैं, हालांकि उनका ये ख्वाब किसी जिंदगी में नहीं पूरा होगा, उलटे बंगाल से वे हाथ जरुर धो देंगी, क्योंकि उन्हें नहीं पता कि बंगाल में भाजपा एक दूसरी महाशक्ति बन बैठी हैं।

स्वयं बंगाल में भी आज हो या कल, जब कभी चुनाव होगे तो बंगाल में बैठा एक बहुत बड़ा वर्ग भाजपा को बंगाल में सरकार बनाने के लिए तैयार है, क्योंकि यहां कभी सत्ता में रही मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी, तृणमूल कांग्रेस के आगे हथियार डाल दी है, ऐसे में जो लड़ेगा, वो जीतेगा, वो सत्ता में आयेगा, इसलिए हमारा सलाह होगा, बंगाल सरकार को, कि वे मसानजोर डैम वाले मुद्दे में ज्यादा न कूदे, नहीं तो लेने के देने पड़ जायेंगे और झारखण्ड के लोगों ने जहां जल, जंगल, जमीन के आंदोलन को तेज किया तो फिर बंगाल में सिंचाई और ऊर्जा की क्या हालत होगी? शायद बंगाल की ममता बनर्जी को पता ही नहीं।