विकास को लेकर नक्सलियों को चुनौती देनेवालों, थोड़ा अपना गिरेबां भी देखो…

बहुत पहले, जब में बच्चा था, प्राथमिक विद्यालय में पढ़ा करता था, हमारे बाबूजी बराबर हम भाई-बहनों को सीख देते, वे कबीर की पंक्ति बराबर गुणगुनाया करते, उन्हीं में से एक कबीर की पंक्ति ये भी थी –

कबीरा आप ठगाइये, और न ठगिये कोय।

आप ठगें सुख उपजे, और ठगें दुख होय।।

कबीर कहते हैं कि आप भले ही ठगा जाइये, पर भूलवश भी किसी को ठगने की कोशिश न करें, क्योंकि अगर आप ठगा जाते हैं, तो भविष्य में सुख उपजने की संभावना बढ़ जाती हैं, पर जैसे ही आप ठगने लगते हैं आप भविष्य में दुख के महासागर में पहुंचने की शत प्रतिशत संभावना तलाश लेते हैं।

कभी-कभी मैं सोचता हूं कि हमारे बाबूजी बराबर कबीर की पंक्ति सुनाते, अच्छा बनने, बेहतर बनने की सीख देते, तो क्या अन्य के पिता बेईमान या चोर बनने की कला का प्रशिक्षण देते थे क्या? उत्तर होगा – कभी नहीं? एक चोर भी या आला दर्जें का गुंडा, यहां तक की दुष्कर्मी भी जब बड़ा होता हैं तो अपनी बेटी के लिए अच्छा, ईमानदार, सौ शरीफ में से एक शरीफ हो, ऐसा दामाद खोजता है, पर वह खुद शरीफ बनना नहीं चाहता, ऐसे में ये कैसे मान लें कि हमारे झारखण्ड में कार्यरत आइएएस/आइपीएस के माता-पिता, उन्हें अनैतिक तरीके से अकूत धन-संपत्ति इकट्ठे करने के लिए कान भरे होंगे?

कल ही कई अखबारों में हमारे राज्य के धुरंधर आइएएस/आइपीएस लोगों के धन-संपत्ति का ब्यौरा, जो खुद ही इन्होंने अपने केन्द्रीय कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग को सौंपा था, आम जनता के बीच में समाचार के रुप में प्रकाशित हुआ, जिससे झारखण्ड की जनता को ये जानते तनिक देर नहीं लगी, कि देश के विभिन्न नगरों-महानगरों में अकूत धन-संपत्ति इन्हें कैसे हाथ लगी? क्योंकि झारखण्ड या किसी अन्य राज्यों की जनता इतनी बेवकूफ भी नहीं कि अपने यहां कार्यरत इन आइएएस/आइपीएस लोगों के गंदी हरकतों और पैसे कमाने की कला को नहीं जानती हैं, चूंकि व्यवस्था ऐसी है कि इसी प्रकार की हरकत, अगर नक्सली करें तो उन्हें लेवी वसूलनेवाला कहकर, विकास में बाधक बननेवाला कहकर, संविधान को चुनौती देनेवाला कहकर, यहीं आइएएस/आइपीएस बने लोग, उन्हें छह इंच छोटा करने की भी धमकी दे देते हैं, पर सवाल उठता है कि जो आइएएस/आइपीएस अनैतिक तरीके के देश के विभिन्न नगरों-महानगरों में खुद के नाम पर, अपने बेटे-बेटियों के नाम पर, पत्नी के नाम पर, रिश्तेदारों के नाम पर, यहां तक की नौकरों के नाम पर भी जो अकूत धन-संपत्ति इकट्ठे कर लेते हैं, उनके लिए क्या सजा है या इन्हें कौन सजा देगा? सवाल यह भी है कि जो लेवी वसूले, विकास को बाधा पहुचाएं, वह नक्सली और जो विकास के पैसे को ही गडप कर जाये और उस पैसे से अपने लिए अकूत धन-संपत्ति अर्जित कर लें, उसे क्या नाम दें?

सवाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से, जिन्होंने कभी नोटबंदी के दौरान लोगों से पचास दिन मांगे थे, और पचास दिन के बाद अगर वे जनता की नजरों में खड़े नहीं उतरे, तो जनता क्या सजा देगी? वो खुद उन्होंने ही बताया था, पचास दिन से ज्यादा हो गये, क्या उन्हें पता हैं कि उसी दरम्यान उन्होंने यह भी बयान दिया था कि अभी तो नोट बंदी करके, भ्रष्टाचारियों की कमर तोड़ी हैं, आगे तो उन पर भी कार्रवाई करनी है, जो रहते कहीं और हैं और अपने लिए विभिन्न नगरों-महानगरों में कई फ्लैटों व जमीनों पर कब्जा कर रखा हैं, क्या नरेन्द्र मोदी बता सकते है कि ऐसे अकूत धन-संपत्ति इकट्ठा करनेवालों के खिलाफ उन्होंने कब और क्या कार्रवाई की?

क्या नरेन्द्र मोदी ही बता सकते है कि जैसे उनकी मां नोटबंदी के दौरान चार हजार रुपये बदलवाने के लिए बैंक पहुंच गई थी, इसी देश में उनकी मां की तरह, देश का कौन आइएएस/आइपीएस या उसकी मां या पत्नी या पति या रिश्तेदार, बैंक में लगा? क्या मोदी जी, आपने भारत की जनता को इतना मूर्ख समझ रखा है क्या? अगर आप ये समझते है तो समझ लीजिये 2019 निकट है और यहां की जनता जैसे भ्रष्टाचार पर आपको सत्ता सौंप सकती हैं तो इसी भ्रष्टाचार पर आपको सत्ता से बाहर भी फेंक सकती हैं।

क्या देश की जनता नहीं जानती कि भाजपा और उसके नेता तथा संघ से जूड़े बड़े-बड़े व्यापारियों का समूह कैसे सरकार और आइएएस/आइपीएस की मदद लेकर, जनता की आंखों में धूल झोंककर अपना उल्लू सीधा कर रही हैं और आम जनता पीसती चली जा रही हैं, आपने सबको मूर्ख समझ रखा हैं, पर आपको ये नहीं पता कि आप 2019 में कितने बड़े मूर्ख बनने जा रहे हैं, क्योंकि जनता ने तो प्रण कर लिया कि –

धोखा देता, बारम्बार

उखाड़ फेंको, मोदी सरकार