अपनी बात

मुख्यमंत्री रघुवर दास का छत्तीसगढ़ प्रेम छलका, अब टच स्टोन के हवाले गरीबों का निवाला

क्या झारखण्ड की जनता इतनी गई गुजरी हैं कि, वह अपने भाई-बहनों को ठीक से खाना भी नहीं खिला सकती?  यह सवाल मैं इसलिये उठा रहा हूं क्योंकि रघुवर सरकार ने खिलाने-पिलाने के लिए भी एक नई कंपनी को हायर कर लिया है, जो शर्मनाक है। राज्य की भोली-भाली जनता को शायद ही मालूम है कि रघुवर सरकार ने पिछली मंगलवार की कैबिनेट में मुख्यमंत्री दाल भात योजना का नाम बदलकर मुख्यमंत्री कैंटीन योजना रख दिया और इसका जिम्मा सौंप दिया छतीसगढ़ की कंपनी मेसर्स टच स्टोन फाउँडेशन को। जिसका कार्यालय छतीसगढ़ की भिलाई के सेक्टर 6 में ओल्ड डेयरी भवन के अक्षय पात्रा कैम्पस में स्थित है।

अब तक महिला स्वयं सहायता समूह चला रही थी दाल भात योजना केन्द्र को

हम आपको बता दें कि इसके पूर्व यह जिम्मा राज्य के विभिन्न जिलों में स्थित महिला स्वयं सहायता समूहों को दिया गया था, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और भविष्य दोनों सुधरें। सच्चाई यह है कि इन महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा संचालित मुख्यमंत्री दाल भात योजना केन्द्रों को सभी ने सराहा भी हैं, कहीं से कोई समस्या भी नहीं आई। कई बुद्धिजीवियों का समूह भी कभी-कभार इन केन्द्रों में जाकर पांच रुपये में भरपेट खाना खाकर अपनी भूख मिटाई और महिला स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं की सेवाओं को सराहा, पर अचानक मुख्यमंत्री रघुवर दास और खाद्य-आपूर्ति मंत्री सरयू राय द्वारा छतीसगढ़ की कंपनी टच स्टोन पर प्रेम का अचानक उमड़ पड़ना सभी के समझ से परे हैं।

मनोनयन का आधार, झारखण्ड का बंटाधार

आश्चर्य इस बात की है कि रघुवर दास की कैबिनेट ने झारखण्ड वित्त नियमावली के नियम 235 के प्रावधानों को शिथिल करते हुए नियम 245 के तहत कार्य हित में मनोनयन के आधार पर छत्तीसगढ की कंपनी टच स्टोन को कार्य आवंटित कर दिया। जिसे किसी भी दृष्टिकोण से सहीं नहीं ठहराया जा सकता। यानी यह काम भी ठीक उसी तरह किया गया जैसे मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपनी ब्रांडिंग के लिए एक-दो महीने पहले दिल्ली की एक लखटकिया कंपनी को हायर कर किया था। ऐसे हम आपको बता दें कि हर राज्य में वहां की राज्य सरकारें प्राथमिकता के आधार पर कोई भी काम अपने राज्य के नागरिकों को सौंपती है और जब अपने राज्य में उक्त कार्य को कोई ठीक ढंग से संपन्न करने में असमर्थ हो, तब वह दूसरे राज्यों का रुख करती है, पर यहां मनोनयन को आधार बनाकर दूसरे राज्यों की कंपनियों को मौका देने का जो कार्य प्रारंभ हुआ है, वह बता रहा है कि इस राज्य के नागरिकों का बंटाधार होना, इस राज्य का विकास अवरुद्ध होना तथा दूसरे राज्यों के नागरिकों का झारखण्ड की जनता की कीमत पर उत्तरोत्तर विकास का संकल्प झारखण्ड सरकार ने ले लिया है।

महिला स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं पर संकट

कमाल की बात है, कि महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा चल रही इस मुख्यमंत्री दाल भात योजना केन्द्र पर अब संकट मंडराना शुरु हो गया है। पहला संकट रांची से शुरु होगा, क्योंकि प्रथम चरण में रांची से ही काम शुरु करने का ऐलान किया गया है। जिसके लिए कंपनी को चौदह करोड़, तिरानवे लाख, छियासठ हजार, छह सौ आठ रुपये की भुगतान की स्वीकृति भी दे दी गई है। यानी पूरे राज्य में शहरी/नगर पंचायत एवं ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित 375 केन्द्रों का जिम्मा छतीसगढ़ की भिलाई में स्थित कंपनी टच स्टोन करेगी और महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाएं अपने हालात पर रोएंगी। खाद्य आपूर्ति विभाग की माने तो केवल रांची में दाल भात योजना केन्द्रों की संख्या 29 हैं, जिसमें कुल लाभुकों की संख्या 8100 है, जिस पर प्रतिदिन एक लाख सताइस हजार पांच सौ रुपये खर्च होने का अनुमान है।

विपक्ष के मुंह बंद कर लेने से सरकार ले रही मनमाना फैसले

कमाल इस बात की है कि राज्य सरकार इतना बड़ा फैसला सिर्फ मनोनयन के आधार पर लेती जा रही हैं और यहां का विपक्ष मुंह बंद करके बैठा है, न आंदोलन की बात और न कोई सवाल इनके द्वारा खड़े किया जा रहे है कि आखिर राज्य सरकार जो सामान्य सी चीजें है, जिसे बेहतर ढंग से राज्य की स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं संपन्न कर रही हैं, सेवा दे रही हैं, वहां भी बाहरी कंपनी छतीसगढ़ की कंपनी टच स्टोन को रघुवर सरकार क्यों लाई?  क्या इससे उन महिलाओं का भला होगा, जो पिछले कई वर्षों से इस क्षेत्र में सेवा दे रही थी। सवाल गंभीर है, पर यहां विपक्ष नाम की कोई चीज ही नहीं है, इसलिए कनफूंकवे की फूंक पर यहां की सरकार काम कर रही हैं।