अपनी बात

न खाता न बही, जो झारखण्ड के मुख्यमंत्री और उनके कनफूंकवें कहें, वहीं सहीं

झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके कनफूंकवों का कमाल, झारखण्ड विज्ञापन नियमावली 2015 की धज्जियां उड़ाते हुए, नियमों के विरुद्ध एक अखबार को स्वीकृत सूची में डालकर उसे विज्ञापन देना प्रारंभ किया, स्वयं के द्वारा बनाई गई नियमावली को भी, स्वयं ही ठेंगा दिखा दिया।

आम तौर पर केन्द्र व राज्य सरकार नियमावली और उन नियमावली को कैबिनेट से पास कराकर, उसी पर चलने की कोशिश करती है, पर झारखण्ड में ऐसी बात नहीं हैं, यहां पर एक लोकोक्ति चलती है – न खाता, न बही, जो झारखण्ड के सीएम और उनके कनफूंकवें कहें, वहीं बात सही।

जरा देखिये और सीएम तथा उनके कनफूंकवों से पूछिये कि जब झारखण्ड विज्ञापन नियमावली 2015 कहती है कि उन्हीं अखबारों को स्वीकृति मिलेगी –

  • जो समाचार पत्र डीएवीपी में सूचीबद्ध होगा।
  • जिन समाचार पत्रों के पास पंजीयक डीएवीपी/एबीसी द्वारा प्रसार संख्या का प्रमाण पत्र मौजूद होगा।
  • हिन्दी एवं अंग्रेजी अखबारों के लिए पृष्ठों की संख्या न्यूनतम 12 होगी।
  • समाचार पत्र के लिए कम से कम 12 महीनों तक अबाध्य प्रकाशन आवश्यक होगा।
  • स्वीकृत सूची में शामिल होने के लिए आवेदनकर्ता को समाचार पत्र की बिक्री से दिया गया आयकर रिटर्न, विगत एक वर्ष में क्रय किये गये कागज का प्रमाण पत्र तथा विगत एक वर्ष का विद्युत खर्च करने का प्रमाण पत्र उपलब्ध करना होगा।

ये कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु है, जो किसी अखबार के स्वीकृत सूची में शामिल होने के लिए आवश्यक है, पर इन सारे नियमों को ताक पर रखकर “रिपोर्टर पोस्ट” नामक अंग्रेजी अखबार को सीएम रघुवर दास और उनके कनफूंकवों ने अवैध तरीके से स्वीकृत सूची में कैसे डाल दिया? जबकि सच्चाई यह है कि उपरोक्त पांच बिन्दुओं में उक्त अखबार कहीं भी फिट नहीं होता। अब सवाल उठता है कि सीएम रघुवर दास और उनके कनफूंकवों ने “रिपोर्टर पोस्ट” में क्या देखा?  कि वे उतावले हो गये, और “रिपोर्टर पोस्ट” को स्वीकृत सूची में डाल दिया तथा उसे विज्ञापन भी देना प्रारंभ कर दिया। इसकी जानकारी मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके कनफूंकवों को जनता को देनी चाहिए, आखिर जनता को पता तो चले कि पारदर्शिता  और भ्रष्टाचारमुक्त झारखण्ड बनाने का बखान करनेवाला अपना मुख्यमंत्री इस मामले में कितना पारदर्शी हैं?

झारखण्ड की जनता को अपने सीएम से पूछना चाहिए कि आखिर “रिपोर्टर पोस्ट” को स्वीकृत सूची में कैसे डाल दिया गया? जबकि  वह स्वीकृत सूची में शामिल होने के योग्य ही नहीं है?  आखिर सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग का कौन निदेशक था? जिसने इस अखबार को स्वीकृत सूची में डालने के लिए सिफारिश की। स्वीकृत सूची में शामिल करने के लिए किसी अखबार को एक जिलास्तरीय जांच समिति से होकर गुजरना होता है, जिस जांच समिति में उपायुक्त अध्यक्ष, पुलिस अधीक्षक, प्रमंडलीय उप निदेशक सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, जिला जनसम्पर्क पदाधिकारी सदस्य होते है, ऐसे महानुभावों द्वारा बनायी गयी जांच समिति ने इस अखबार को स्वीकृत सूची में डालने की अनुशंसा कैसे कर दी? जबकि ये अखबार स्वीकृत सूची में शामिल होने के योग्य ही नहीं।

इस जांच समिति के बाद जो प्राधिकृत समिति है, उसने किस आधार पर “रिपोर्टर पोस्ट” को स्वीकृत सूची में डालने के लिए विभागीय मंत्री को अनुमोदन हेतु भेजा, जबकि प्राधिकृत समिति में प्रधान सचिव/सचिव, गृह विभाग अध्यक्ष, प्रधान सचिव/सचिव, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, अपर महानिदेशक/महानिरीक्षक (विशेष शाखा), वित्त विभाग द्वारा प्राधिकृत अधिकारी (उप सचिव से अन्यून), निदेशक सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग सदस्य तथा उप निदेशक/प्रभारी पदाधिकारी विज्ञापन – सदस्य सचिव होते है। यह प्राधिकृत समिति इस अखबार में क्या देखा? कि उसने अपनी सहमति दे दी, जबकि सहमति का सवाल ही नहीं उठता तथा विभाग प्राधिकृत समिति के मंतव्य के आधार पर विभागीय मंत्री का अनुमोदन कैसे प्राप्त करा लिया?

सिफारिश करनेवाली जांच समिति और विभागीय मंत्री से अनुमोदन कराने की अनुशंसा करनेवाली प्राधिकृत समिति बताये?

  • क्या “रिपोर्टर पोस्ट” नामक अखबार डीएवीपी में सूचीबद्ध है? क्योंकि झारखण्ड विज्ञापन नियमावली 2015 कहती है कि स्वीकृत सूची में वहीं अखबार शामिल होगा, जो समाचार पत्र डीएवीपी में सूचीबद्ध होगा।
  • “रिपोर्टर पोस्ट” द्वारा दी गयी डीएवीपी की पंजीयक अथवा एबीसी की प्रसार संख्या जनता को बतायें, क्योंकि नियमावली के अनुसार उसी अखबार को स्वीकृत सूची में शामिल किया जायेगा जिन समाचार पत्रों के पास पंजीयक डीएवीपी/एबीसी द्वारा प्रसार संख्या का प्रमाण पत्र मौजूद होगा।
  • नियमावली कहती है कि हिन्दी एवं अंग्रेजी अखबारों के लिए पृष्ठों की संख्या न्यूनतम 12 होगी, पर “रिपोर्टर पोस्ट” के पृष्ठों की न्यूनतम संख्या 8 हैं।
  • समाचार पत्र के लिए कम से कम 12 महीनों तक अबाध्य प्रकाशन आवश्यक होगा, हम अच्छी तरह जानते है कि इस अखबार ने एक साल अबाध्य प्रकाशन नहीं किये हैं।
  • स्वीकृत सूची में शामिल होने के लिए आवेदनकर्ता को समाचार पत्र की बिक्री से दिया गया आयकर रिटर्न, विगत एक वर्ष में क्रय किये गये कागज का प्रमाण पत्र तथा विगत एक वर्ष का विद्युत खर्च करने का प्रमाण पत्र उपलब्ध करना होगा। ये मूल चीजें भी जनता को जानने का अधिकार है।

झारखण्ड की जनता को जगना चाहिए क्योंकि जो वे सोच रहे है कि यहां सब कुछ अच्छा चल रहा हैं, वास्तव में ऐसा हैं नहीं, आपको आंखों में धूल झोंक कर, उन्हें मजबूत किया जा रहा है, जो आपकी सपनों को तोड़ने के जिम्मेवार है, ऐसे चल रही हैं रघुवर सरकार, ऐसे चल रहा है, सबका साथ, सबका विकास।

One thought on “न खाता न बही, जो झारखण्ड के मुख्यमंत्री और उनके कनफूंकवें कहें, वहीं सहीं

  • जवाब मांगने वाला कोई नहीं!
    अफ़शोष झारखण्ड में राजनीतिक मुद्दे मुर्दे है,
    जनता भी मुर्दों से स्वाद पाते है
    बिपक्ष पूतला फूंक कर फोटो छपाने में ही मस्त है,
    चमचे कानफूंक कर मलाई काटें,
    पत्रकार , तो पूछिए मत पॉवर प्ले में है
    और सरकार चाहती ही है सब सुतियाय रहो..सो सुतिये।
    जनता जनार्दन ,अच्छा साले को अगले भोंट् में पटकीये देंगे ,सोंच के सूत जाते है..
    Jharkhand is fuellung fuel for furious free fireplay form of fedearal fest.
    Rest n taste the dillusion of delight enlighted with political bright.with pain n in vain too.

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