राजनीति

गत वर्ष हुए अपमान से भयभीत CM, इस बार शहीदों को नमन करने नहीं पहुंचे खरसावां

मुख्यमंत्री रघुवर दास को सिदगोड़ा टाउन हॉल परिसर में अपने विधानसभा क्षेत्र जमशेदपुर पूर्वी के कार्यकर्ताओं के साथ पिकनिक मनाने का समय था, मींटिग करने का समय था, सेल्फी खिंचवाने का समय था, नाश्ते से लेकर खाने पीने का आनन्द लेने का समय था, गाना सुनने तक का समय था, यहीं नहीं जमशेदपुर के विभिन्न समाचार पत्रों के संपादकों के साथ गुफ्तगूं करने का समय था, नये साल के दिन अपने परिवार और शुभचिन्तकों के साथ जश्न मनाने का समय था, पर एक दिन पहले खरसावां जाकर शहीदों को इस बार नमन करने का समय नहीं था, शायद सीएम रघुवर दास को लगता हो, कि पिछली बार की तरह, कही इस बार भी लोगों का आक्रोश झेलना न पड़ जाये और कहीं लेने के देने न पड़ जाये, इसलिए सीएम ने खरसावां के शहीदों से इस बार दूरियां बना ली, अब यहां की जनता बताये कि जो व्यक्ति अपने ही शहीदों को नमन करने से हिचके, वह भी डर के कारण, क्या ऐसा व्यक्ति झारखण्ड के सीएम पद पर एक मिनट भी रहने लायक है?

ज्ञातव्य है कि पिछली बार जब मुख्यमंत्री रघुवर दास खरसावां पहुंचे थे, तब लोगों का भारी आक्रोश उन्हें झेलना पड़ा था। दरअसल, उस दौरान सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन विधेयक विधानसभा में पास होने के बाद से राज्य भर में सीएम रघुवर दास के खिलाफ एक गुस्सा भड़का था, जो पिछले साल खरसावां में दिखा। कड़ी सुरक्षा के बावजूद विरोधियों का दल अपने मंसूबे में कामयाब हो गया और पुलिस प्रशासन की सारी की सारी तैयारी धरी की धरी रह गई। मुख्यमंत्री वापस जाओ के नारे लगे। विभिन्न आदिवासी संगठनों के सदस्यों ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को काला झंडा दिखाया था। सीएम के शहीद स्थल पर पहुंचते ही, शहीद गेट के बाहर सीएम को खड़े रहने पर आंदोलनकारियों ने विवश कर दिया। सभा स्थल पर जूते-चप्पल भी चले। स्थिति ऐसी हो गई कि मुख्यमंत्री जैसे-तैसे शहीद स्थल जाकर शहीदों को श्रद्धाजंलि दी और फिर वहां से चलते बने।

इस घटना के बाद 500 अज्ञात लोगों पर केस दर्ज की गई। मुख्य सचिव, गृह सचिव व पुलिस महानिदेशक ने खरसावां जाकर मामले की जांच की और देखते ही देखते खरसावां के डीसी और एसपी पर तबादले की तलवार लटकने लगी। उस दरम्यान मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव संजय कुमार ने कहा था सरकार ने इस घटना को गंभीरता से लिया है, सीएम के निर्देश पर ही आलाधिकारियों को घटना स्थल पर भेजा गया है, प्रशासनिक चूक पता चलने पर कड़ी कार्रवाई होगी। इधर एक साल बीत गये पर जिन 500 अज्ञात लोगों पर केस दर्ज की गई, उस केस में क्या हुआ? इसका जवाब भी किसी के पास नहीं हैं।

इधर मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा जमशेदपुर में रहने के बावजूद खरसावां नहीं जाने और शहीदों को नमन नहीं करने पर राज्य की प्रमुख विपक्षी दलों ने कड़ा ऐतराज जताया है। पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी ने कहा है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास के तय कार्यक्रम के बाद भी खरसावां के शहीद स्थल पर नहीं जाने से राज्य में शहीदों के प्रति एक गलत संदेश गया है।  इधर इस बार राज्य के दो और पूर्व मुख्यमंत्रियों अर्जुन मुंडा और शिबू सोरेन ने शहीदों को भावभीनी श्रद्धाजंलि दी और इन शहीदो के सपनों का झारखण्ड बनाने का संकल्प लिया। यहां पहुंचे कई लोगों ने खुलकर कहा कि राजनीति करने के लिए 364 दिन बचे हुए हैं, पर शहीदों के दिन को राजनीति के लिए कभी प्रयोग नहीं करना चाहिए। जिला प्रशासन ने मुख्यमंत्री के आगमन की सूचना को देखते हुए, यहां पूरी तैयारी की थी, हैलीपेड तक बनवाये थे, पर सारी तैयारियां धरी की धरी रह गई और सीएम रघुवर दास इस दिन अपने परिवार के साथ नये साल का जश्न मनाने में लगे रहे, जिसके कारण लोगों में आक्रोश स्पष्ट रुप से दिखाई पड़ा।