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योगदा सत्संग का दो दिवसीय ऑनलाइन साधना संगम 27 फरवरी से…

योगदा सत्संग आश्रम आत्म-साक्षात्कार के सत्यान्वेषियों के लिए दो दिवसीय साधना संगम का आयोजन आगामी 27 फरवरी को करेगा। इस  कार्यक्रम का संचालन योगदा संन्यासियों के नेतृत्व में ऑनलाइन  होगा। परमहंस योगानन्द  द्वारा स्थापित यह आध्यात्मिक संस्था कुछ अरसे से योग, ध्यान, प्रार्थना आदि का ऑनलाइन आयोजन कर रही है। आश्रम सूत्रों ने बताया कि क्रियायोगी साधकों की सुविधा और आध्यात्मिक उन्नति के लिए साधना संगम का आयोजन किया जा रहा है। इसमें देश-विदेश के हज़ारों साधक भाग लेंगे।

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नौ भारतीय भाषाओं में योगदा सत्संग ऑनलाइन ध्यान की होगी शुरुआत, YSS अध्यक्ष स्वामी चिदानंद करेंगे शुभारंभ 

योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाइएसएस) द्वारा ऑनलाइन सामूहिक ध्यान का आयोजन रविवार से किया जाएगा। यह ध्यान अंग्रेज़ी के अलावा हिंदी, बंगला, ओड़िया, गुजराती, मलयालम, कन्नड़, तेलुगू, तमिल और मराठी में भी संचालित किया जाएगा। कोविड-19 महामारी के प्रकोप के कारण योगदा आश्रम और ध्यान केंद्रों के बंद रहने के कारण साधकों की सुविधा के लिए ऑनलाइन सामूहिक ध्यान और प्रार्थना की व्यवस्था की गई है।

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परमहंस योगानन्द ने बताया- जीवन क्यों और किसके लिए?

जब मैं रांची के योगानन्द पथ के आस –पास प्रतिदिन लाखों वाहनों व उनमें सवार लोगों को योगदा सत्संग मठ के समीप से गुजरते देखता हूं, तो मुझे आश्चर्य होता है कि ये कितने नादान है, जो उनके इतनी नजदीक बह रही आध्यात्मिक गंगा में डूबकी लगाने से वंचित हैं और जहां इस प्रकार की आध्यात्मिक गंगा नहीं हैं, वहां के लोगों का समूह बड़ी संख्या में यहां आकर इस आध्यात्मिक गंगा में स्नान कर स्वयं को प्रकाशित कर धन्य हो रहा हैं।

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आज ही के दिन (19 सितम्बर) यानी 100 साल पहले परमहंस योगानन्द ने अमेरिका की धरती पर पहला कदम रख, योग-विज्ञान की रखी थी नींव

 

आज से ठीक सौ साल पहले, 19 सितम्बर 1920 को एक युवा योगी अमेरिका की धरती, बोस्टन में अपने पांव रखे थे। उनका वहां जाना, भारत के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक उदारवादियों के प्रतिनिधि के रुप में हुआ था। उस युवा योगी ने धर्म-विज्ञान विषय पर अपने प्रभावशाली व्याख्यान से सभी के हृदय में यह वाक्यांश स्थापित कर दी, कि अपने अंतःस्थल में परमात्मा की उपस्थिति का भान कर, जीवन का परम उद्देश्य, आनन्द की प्राप्ति संभव है।

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आज तीज है, इसी भादो शुक्लपक्ष तृतीया यानी तीज के दिन पार्वती ने अपने तपोबल से शिव को प्राप्त कर लिया था

बिहार और उत्तर-प्रदेश के इलाके में जब-जब भाद्रपद शुक्लपक्ष हस्तनक्षत्र युक्त तृतीया तिथि जिसे कुछ लोग तीज भी कहते हैं, आता है। बड़ी संख्या में इस इलाके की महिलाएं अपने सौभाग्य की रक्षा के लिए निर्जला व्रत रखती है। रात भर जागकर नृत्य गीतादि कर भगवान शिव और पार्वती की आराधना करती है, ताकि उनका सौभाग्य उनके आशीर्वाद से पुष्पित-पल्लवित होता रहे।

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गुरु पूर्णिमा पर विशेषः सदा जीवंत रहते हैं सद्गुरु – स्वामी ईश्वरानन्द गिरि

जिस तरह पश्चिम में “फादर्स डे” और “मदर्स डे” मनाने का रिवाज़ है (अब तो यह भारत में भी प्रचलन में आ रहा है), उसी तरह भारत में “गुरूज़ डे”  मनाने की बहुत प्राचीन प्रथा है। लेकिन इसे हम गुरु पूर्णिमा के नाम से मनाते हैं जो हर वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पड़ता है। यह पर्व गुरु को समर्पित होता है, और इस दिन पूरे भारत में शिष्य अपने गुरु की पूजा करते हैं और उनके द्वारा दिखाये गए मार्ग पर निष्ठा के साथ चलते रहने का पुनः संकल्प लेते हैं। 

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योगदा सत्संग मठ में मना परमहंस योगानन्द का जन्मोत्सव, भक्ति रसधारा में डूबे श्रद्धालु

आज परमहंस योगानन्द जी की जयन्ती हैं। रांची के योगदा सत्संग मठ में आज परमहंस योगानन्द जी का जन्मोत्सव धूम-धाम से मनाया गया। बड़ी संख्या में देश-विदेश से परमहंस योगानन्द पर श्रद्धा लुटानेवालों की भीड़ यहां जुटी और भक्ति रसधारा में खुद को डूबोने में इन्होंने अपना ज्यादा समय बिताया। आज सुबह से ही योगदा सत्संग मठ का नजारा देखने लायक था।

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क्या है तीज, कब और किसे करना चाहिए, सबसे पहले किसने किया और इसका क्या फल मिलता है?

बिहार और उत्तर प्रदेश की महिलाओं के लिए तीज काफी महत्वपूर्ण त्यौहार है। जैसे उत्तर भारत और पश्चिम भारत में करवा चौथ की मान्यता है, ठीक उसी प्रकार बिहार और उत्तर प्रदेश में तीज की मान्यता है। ज्यादातर सौभाग्यवती-सुहागिनें स्त्रियां इस व्रत को बहुत ही धूमधाम से करती हैं तथा ग्रुप में करती है, कही-कही अविवाहित लड़कियां भी इस व्रत को करती है, क्योंकि मान्यता है कि पार्वती ने शिव को पाने के लिए इस व्रत को तब किया था, जब वो अविवाहित थी।

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आधुनिक भारत के महान अवतार महावतार बाबाजी जो ईश्वरीय कार्य के लिए सहस्राब्दियों से आज भी जीवित हैं

आपको आश्चर्य होगा कि इस पृथ्वी पर और खासकर भारत के उत्तर में हिमालय में स्थित बद्रीनाथ की गुफाओं में पिछले सहस्राब्दियों से एक महामानव आज भी स्थूल शरीर के रुप में हमारे बीच विद्यमान है, जो महावतार बाबाजी के नाम से जाने जाते हैं। महावतार बाबाजी का सबसे पहला परिचय महान आध्यात्मिक गुरु परमहंस योगानन्द जी ने 1946 ई. कराया था, जब उन्होंने इसकी सबसे पहली चर्चा “ ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी” में की।

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गुरु पूर्णिमा के अवसर पर परमहंस योगानन्द के प्रति भक्ति और श्रद्धा का अद्भुत समन्वय दिखने को मिला योगदा सत्संग मठ रांची में

आषाढ़ पूर्णिमा यानी गुरु पूर्णिमा के अवसर पर योगदा सत्संग मठ में अपने गुरु परमहंस योगानन्द के प्रति भक्ति और श्रद्धा निवेदित करने के लिए भक्तों में अद्भुत समन्वय दिखने को मिला। इस  दौरान सभी ने एकताबद्ध होकर, अपने गुरु के चित्र के समक्ष भक्ति और श्रद्धा निवेदित कर, उनके बताये गये मार्गों पर आजीवन चलने का संकल्प भी लिया।

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