प्रत्याशी एक, बाप दो, पत्नी एक, निकाय चुनाव में तीन-तीन बच्चे और इस चुनाव में पत्नी मौजूद, बच्चे गायब

मामला गिरिडीह का है, और अंचभित करनेवाला है, एक ही व्यक्ति जो दो-दो नाम अपना रख कर पूरे निर्वाचन प्रक्रिया की धज्जियां उड़ा रहा हैं और गिरिडीह प्रशासन आंख मूंद कर ये सब देख रहा हैं, गिरिडीह प्रशासन का कहना है कि जब तक कोई शिकायतकर्ता, संबंधित व्यक्ति के खिलाफ शिकायत नहीं करेगा, वो संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई कैसे कर सकता हैं?

जबकि चुनाव प्रक्रिया में नामांकन दर्ज करने के समय आया अभ्यर्थी यह शपथ पत्र में कहता है कि उसने जो भी सूचनाएं दी हैं, वह सत्य हैं, और उसे स्वयं सत्यापित करते हुए हस्ताक्षर करता हैं, उसके बावजूद भी अगर वो गलत सूचनाएं देता है, तो उसके नामांकन पत्र की जांच की जिम्मेवारी प्रशासन पर होती हैं और सूक्ष्म तरीके से उसकी जांच कर उसके नामांकन को रद्द करने का उसे विशेषाधिकार है, पर यहां प्रशासन कुछ विशेष तरीके से चलता है, जो समय-समय पर दिख जाया करता है, इस बार भी दिखा है।

पूरे राज्य में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। इस बार गिरिडीह में भी इसके दौरान अजब-गजब हो गया। जरा देखिये जब गिरिडीह में निकाय चुनाव हो रहे थे तब मो. इस्तियाक नामक व्यक्ति ने यहां से डिप्टी मेयर पद के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रुप में नामांकन भरा। नामांकन में उस दौरान उसने अपना नाम मो. इस्तियाक, पिता – खोसी इदरीस राइन, उम्र 33, पता – दिवान टोला, हरिजन मोहल्ला,पोस्ट – पचम्बा, जिला- गिरिडीह बताया। पत्नी का नाम – तब्बसूम खातून और पत्नी के पेन नंबर EFBPK8540F और बच्चे के नाम जशमीन परवीन, अलीशा परवीन और मो. मोताहिर बताया।

लेकिन, विधानसभा चुनाव में इस इस्तियाक ने अपना नाम तो बदला ही, अपने बाप का नाम भी बदल दिया, अपने पते में भी थोड़ा फेर-बदल किया, लेकिन पत्नी का नाम वहीं रखा, पत्नी का पेन नंबर भी वहीं रखा और तीनों बच्चों के नाम गायब कर दिये। विधानसभा चुनाव में इसने अपना नाम – मो. लल्लू, पिता – अब्दुल इदरीस, पता – गढ़ मोहल्ला, पचम्बा, पोस्ट –पचम्बा, जिला – गिरिडीह, पत्नी का नाम तब्बसूम खातून और पत्नी का पेन नंबर – EFBPK8540F ही रखा, साथ ही अपने बच्चों के नाम भी नहीं दिये, बहुत ही आसानी से छुपा लिया। गायब कर दिये।

अब सवाल उठता है कि जो व्यक्ति जालसाजी कर विधानसभा का चुनाव लड़ रहा हैं, गलत जानकारी देता है, साक्ष्य छुपाता है, और वह भी वह व्यक्ति जो पूर्व में डिप्टी मेयर का एक राष्ट्रीय पार्टी के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ चुका है, उसके द्वारा दी गई गलत जानकारी का पता जिला निर्वाचन कार्यालय को नहीं हो, तो इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है? क्या चुनाव आयोग से साक्ष्य छुपाना, चुनाव आयोग को गलत जानकारी देकर उम्मीदवारी लेना अपराध नहीं, और जो अधिकारी ऐसे कार्यों में संलिप्त होकर ऐसे लोगों का मनोबल बढ़ाते हैं, क्या वे इस अपराध के दोषी नहीं? आखिर इस अपराध के लिए, ऐसे लोगों को दंडित कौन करेगा?

सूत्र बता रहे हैं, कि इस इस्तियाक उर्फ लल्लू को एक खास दल ने जानबूझकर खड़ा करवाया है, ताकि एक खास समुदाय का वोट वो काट सकें और फिर एक राष्ट्रीय पार्टी का उम्मीदवार वहां से आराम से जीत जाये, अब सवाल उठता है कि क्या गिरिडीह का अल्पसंख्यक समुदाय इतना मूर्ख है कि वो किसी व्यक्ति या दल के मूर्खतापूर्ण कार्यों में बहक जायेगा और अपना वोट खराब कर देगा, हमें तो ऐसा नहीं लगता, पर जिला प्रशासन और जिला निर्वाची कार्यालय ने ऐसे व्यक्ति का नामांकन रद्द नहीं कर, उसे चुनाव लड़ने की जो इजाजत दे दी, उससे ये तो जरुर पता चल गया कि अपने झारखण्ड में किस प्रकार चुनाव का मजाक उड़ाया जा रहा हैं।