अपनी बात

आप दोनों “जयचंद” और “मूलचंद” को पकड़ लड़ते रहिये और उधर “अर्जुन” अपने लक्ष्य को साधने पर ध्यान दे रहा

23 दिसम्बर को झारखण्ड विधानसभा का चुनाव परिणाम आ गया, नई सरकार के गठन के लिए महागठबंधन तैयारी में लग गया और इधर भाजपा में हार को लेकर सरफूटौव्वल जारी है। भाजपा के ज्यादातर नेता व कार्यकर्ता एक स्वर से इसके लिए रघुवर दास को दोषी ठहरा रहे हैं, तो रघुवर दास इसके लिए पार्टी में छूपे जयचंदों को इसके लिए दोषी ठहरा रहे हैं।

जबकि भाजपा के कभी थिंक टैंक रहे और वर्तमान में निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में जमशेदपुर पूर्व से चुनाव लड़ चुके तथा रघुवर दास को धूल चटा चुके सरयू राय रघुवर के भाई मूलचंद को पकड़कर अभी भी रघुवर दास पर हमले किये जा रहे हैं और ठीक इसके विपरीत केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा अपने लक्ष्य को साधने में लगे हैं। वे इन सब से दूर अपना बेहतर इमेज बनाने तथा केन्द्र व राज्य के शीर्षस्थ नेताओं के बीच बेहतर पोजीशन बनाने में जूटे हैं, जिसमें इन्हें फिलहाल वक्त ने इन्हें बेहतर पोजीशन में करीब-करीब लाकर खड़ा कर दिया है।

याद करिये, 2014 का झारखण्ड विधानसभा चुनाव, नरेन्द्र मोदी झारखण्ड के विभिन्न इलाकों में चुनावी सभा कर रहे हैं, पर वे अपने भाषण में अर्जुन मुंडा का नाम तक लेना पसन्द नहीं करते थे, उन्हें लगता था कि झारखण्ड में भाजपा की स्थिति कमजोर करने के लिए अगर कोई जिम्मेवार हैं तो वे हैं – अर्जुन मुंडा।

स्थिति भी ऐसी हुई कि अर्जुन मुंडा खरसावां से विधानसभा का चुनाव हार गये और वहीं हुआ जैसा कि होता हैं, अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान, यानी भाजपा में अर्जुन मुंडा के बाद अगर कोई नेता था तो वे रघुवर दास थे, जिनको शीर्ष नेतृत्व जानता था, जिस पर भरोसा था, रघुवर दास एक्सीडेंटल मुख्यमंत्री बन गये और जैसे ही ये मुख्यमंत्री बने, आ गये अपने पावर में, रंग दिखाना शुरु किया।

भाजपा कार्यकर्ताओं को चिरकूट कहना तथा मूरखों को अपना सलाहकार बनाना शुरु किया, जिसके कारण स्थिति यह हो गई कि बड़ी तेजी से ये जनता और कार्यकर्ताओं के बीच अलोकप्रिय होते चले गये और इसी बीच अर्जुन मुंडा जो वक्त की मार के कारण पीछे हो लिये थे, अपना इमेज चमकाने तथा पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं के बीच अपनी छवि को बेहतर बनाने में लग गये।

इन्हें इसमें सफलता भी मिली और मात्र पांच वर्षों में ही ये नरेन्द्र मोदी के विशेष विश्वासपात्र हो गये और केन्द्र में कैबिनेट मंत्री भी बन गये, हालांकि जो अर्जुन मुंडा को जानते हैं, वे यह भी जानते है कि वे अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक नीचे या उपर जा सकते हैं। उदाहरण उनके शासनकाल की अनेक घटनाएं हैं।

जिस बाबू लाल मरांडी ने इन पर विश्वास किया, उनके साथ तथा उनके लोगों के साथ अर्जुन मुंडा ने कैसा व्यवहार किया? वो जगजाहिर हैं, इनका तो स्वभाव है कि अगर इनसे किसी की नहीं पटी तो वे उसे अपने ढंग से उसकी औकात बताते हैं, सच्चाई यह भी है कि इन्हें कभी-कभार ऐसा करने में सफलता भी मिल जाती हैं, और ये अपने राजनीतिक दुश्मनों को अपने दिल में तब तक बिठाए रहते हैं, जब तक वह राजनीतिक रुप से पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाता।

फिलहाल उनका सबसे बड़ा यहां राजनीतिक दुश्मन अगर कोई था, तो वे थे –रघुवर दास, जो अपने कुकर्मों व व्यवहारों से खुद जनता और कार्यकर्ताओं के आंखों में खटकने लगे और वे फिलहाल सत्ता से ऐसे बाहर हो गये कि फिर कभी सत्ता उनके इर्द-गिर्द आयेगी, इसकी संभावना न के बराबर है, पर आनेवाले समय में हेमन्त के लिए अगर कोई भाजपा में कांटा हैं तो वे हैं अर्जुन मुंडा, अगर भविष्य में उन्हें कोई खतरा उत्पन्न करेगा तो वे अर्जुन मुंडा ही हैं, जो कभी झामुमो में रहकर राजनीति का ककहरा सीख चुके हैं, और बाद में अपने राजनीतिक भविष्य को देखते हुए भाजपा में जाकर शरण ली।

आज स्थिति यह है कि भाजपा के ये झारखण्ड में कद्दावर नेता माने जाते हैं, भाजपा कार्यकर्ताओं व नेताओं से पूछिये कि उसे रघुवर दास या अर्जुन मुंडा में कौन पसन्द हैं, तो वह अर्जुन मुंडा ही बोलेगा, पर हमसे कोई पूछे कि अर्जुन मुंडा और रघुवर दास में कौन बेहतर हैं तो मैं कहूंगा कि दोनों, पर खतरनाक रघुवर दास से भी ज्यादा अर्जुन मुंडा है, क्योंकि मैंने झारखण्ड की राजनीतिक घटनाक्रमों को बहुत ही नजदीक से देखा है।

सच पूछा जाये तो भाजपा में एक भी राजनीतिज्ञ ऐसा नहीं, जिस पर विश्वास किया जा सकें कि यह व्यक्ति झारखण्ड से प्रेम करता हैं, सारे के सारे नेता झारखण्ड की जनता से कम और अपने परिवार से ज्यादा प्रेम करते हैं, ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठों की इनके आगे कोई कद्र नहीं, जबकि भ्रष्टाचारियों के लिए तो इनका दरवाजा सदा खुला रहता हैं, फिलहाल रघुवर दास ने जो भाजपा का नुकसान तथा अपना नुकसान जो करना था कर दिया, और अब ज्यादा बोलेंगे तो और अपना ही नुकसान करेंगे।

इसलिए हम उन्हें कहेंगे कि थोड़ा बोलना बंद करें, मौन व्रत करना सीखें, जो लोग नाराज हैं, उनके दिलों को जीतने की कोशिश करियें, जरा देखिये ठंडा का समय हैं, अर्जुन मुंडा कंबल बांटने के लिए निकल पड़े हैं, थोड़ा आप भी गरीबों को कंबल बांटिये, पुण्य मिलेगा और अखबारों व चैनलों में थोड़ा बहुत चेहरा भी दिखेगा, क्योंकि अब आप सीएम नहीं है कि अखबार व चैनल वाले विज्ञापन तथा प्रलोभन न मिलने के डर से आपके पीछे-पीछे चलेंगे।

बहुत पंडितजी लोगों को अनाप-शनाप बोले हैं, कई लोगों के पेट पर लात भी मारे हैं, चिन्तन करिये, लोकतंत्र हैं, और किसी से नहीं तो अर्जुन मुंडा से ही सीखिये, हारे वे भी थे, पर किसी के लिए आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग नहीं किया, मन ही मन जिसको कोसना था कोसे, दिमाग में रखा और वक्त आते ही हिसाब चुकता कर दिया, क्योंकि यही राजनीति हैं और जो इस प्रकार से राजनीति करते हैं, उनका भविष्य भी इसी प्रकार सुरक्षित रहता है।