जनजातीय गौरव दिवस पर भाजपा उत्साहित तो झामुमो ने आंशिक रुप से स्वागत करते हुए इसके औचित्य पर उठाया सवाल

भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिवस को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनजातीय गौरव दिवस क्या घोषित कर दिया, इस पर भी कई दलों को आपत्ति है और इसमें भी लोग अपने हिसाब से गुण-दोष निकालने में लगे हैं। भाजपा के नेता तो ये कहने से नहीं चूक रहे कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने ऐसा कर स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले जनजातीय समाज के क्रांतिवीरों को नई पहचान दिलाई है, भारत के दस राज्यों में ट्राइबल म्यूजियम की स्थापना की जा रही है, जिसमें इनकी गौरव-गाथा है।

वहीं झारखण्ड में सत्ता सुख भोग रही झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के नेताओं ने जनजातीय गौरव दिवस का स्वागत तो किया, पर अँगूली भी उठाकर इसमें कई छेद भी निकाल दिये। हालांकि पूरे देश में अभी आजादी का अमृत महोत्सव चल रहा है, जिसमें केन्द्र सरकार आजादी के महानायकों को अपने ढंग से याद कर रही है। सच्चाई यह भी है कि आजादी की रजत जयंती और स्वर्ण जयंती भी मनाई जा चुकी है, पर किसी सरकार ने आदिवासी समुदाय के योगदान को याद नहीं किया, पर पहली बार किसी सरकार ने इस बार जनजातीय समाज को भी इसका श्रेय दिया, फिर भी लोग गुण-दोष निकालने से नहीं चूके।

झामुमो ने इसके लिए रांची में प्रेस कांफ्रेस भी किया और मोदी सरकार की जमकर आलोचना की। झामुमो के प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि चूंकि छतीसगढ़ में पिछले दिनों छतीसगढ़ सरकार ने आदिवासियों को लेकर एक कार्यक्रम किया, उसी को देखते हुए मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एक कार्यक्रम आयोजित कर भाजपा द्वारा जनजातीय गौरव दिवस मनाया जा रहा है।

सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि सिंदरी में बीआइटी है, उसको आइआइटी का दर्जा मिलना चाहिए, आजाद भारत का पहला टेक्नीकल कॉलेज बीआइटी सिन्दरी था। जिसके पैतीस हजार छात्र विश्व के 29 देशों में है, राष्ट्रीय गौरव दिवस ऐसे आते हैं, भाजपा के ढकोसले से नहीं आता। असम में रहनेवाले जो झारखण्ड के जनजाति हैं, उनको शेडयूल ट्राइब का दर्जा क्यों नहीं मिलता। भाजपा सरकार किसको ठगने का काम कर रही है।

2014 से लेकर आदिवासियों के विकास का प्लान का पैसा भाजपा के पोस्टर बैनर बनाने के लिए काम आया, आज ट्राइबल सब प्लान के पैसे में बराबर कटौती होती है, पांचवी अनुसूची पर चर्चा तक नहीं होती और लोग जनजातीय गौरव का नाटक करते हैं। 1855 का संताल हूल, उसको इतिहास में दर्जा नहीं दिया जाना क्या ये राष्ट्रीय कलंक की बात नहीं, यदि केन्द्र सरकार को जनजातीय गौरव की बात करनी हैं तो सबसे पहले संविधान की 5 एवं 6 शेड्यूल को शाब्दिक अर्थ में लागू करना होगा।

सरना धर्म को स्थान देना होगा। असम के जनजातियो को पहचान देना होगा, और जो भी केन्द्रीय योजना है, जो शहीदों के जन्म-कर्म स्थान पर बनने को प्रस्तावित है, उसे रोकना होगा, चाहे वो मंडल डैम हो या कोई अन्य स्थान, क्या हम अपने पूर्वजों को निशानी को मिटाकर गौरव प्राप्त करेंगे। आदिवासियों के जितने भी धरोहर हैं,  केवल झारखंड के ही नहीं, देश के धरोहर जनजातीय समुदाय के उसे सहेजना पड़ेगा।