रांची सदर थाने में भूख से जूझ रहा वो गरीब, हिन्दपीढ़ी के उन अमीरों से कही ज्यादा महान था, जो सरकारी अनाज लेने के लिए पंक्तिबद्ध खड़े थे
गरीब रिक्शावाला का यह कथन, मेरी आत्मा को झकझोर दिया, आम तौर पर जिनके घर में गरीबी और भूख दस्तक देती है, तो लोग ईमान बेच देते हैं, यहां तो कोरोना ने गरीबी का मजाक तो उड़ाया ही, भूख ने कही का नहीं छोड़ा, फिर भी ये आत्मस्वाभिमान और दूसरों के लिए ये उम्दा सोच बता दिया कि उन लाखों के पैकेज उठानेवालों से ये गरीब रिक्शेवाले, सड़कों के किनारे अपनी भूख शांत करनेवाले लाख गुणा बेहतर है, जो इस विपरीत परिस्थिति में भी एक उम्दा सोच के साथ जीने की कोशिश कर रहे हैं।
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