सावधान, अगर सरकार के खिलाफ एक शब्द भी बोला तो जेल जाने को तैयार रहिये

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं होता, कि आप किसी व्यक्ति, संस्थान, दल या किसी भी संगठन को, जब चाहे जब, मन भर गाली दे दें। अगर आपको किसी ने गाली दे भी दी, तो इसका मतलब यह भी नहीं हो गया कि आपको लाइसेंस मिल गया कि आप भी उसको गाली दे दें। यह वहीं बात हुई कि गाली दोनों ने दी, एक ने पहले तो दूसरे ने बाद में दी। इन दिनों मैं देख रहा हूं कि विभिन्न सोशल साइटों पर गाली देने की नई परंपरा की शुरुआत हो गई है। लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर खुब एक दूसरे को गालियां दे रहे हैं। कुछ लोग तो उन गालियों पर ध्यान नहीं देते, अपना काम करते रहते हैं। दूसरा वर्ग ऐसा भी है कि एक निश्चित सीमा तक उसे बर्दाश्त करता है, और उसके बाद उसका प्रतिकार करता है और तीसरा वर्ग ऐसा भी हैं कि इसे बर्दाश्त नहीं करता, उसका उसी वक्त अपने हिसाब से जवाब दे देता हैं।

कुछ लोग गालियों में भी प्रकार ढूंढते हैं, एक गाली ऐसा हैं, जिसे समाज स्वीकार करता है कि ये चलेगा, और कुछ गालियां ऐसी भी है, जिसे समाज और परिवार बर्दाश्त नही करता। हमारे समाज में शादी-विवाहों और होली के समय तो लोग एक-दूसरे को ऐसी-ऐसी गाली दे देते है कि लोग चाहकर भी उसका प्रतिकार नहीं कर पाते और आनन्द में डूब जाते है, होली में तो एक वाक्य गलियों-मुहल्लों में खुब गूंजता है – ‘बुरा न मानो होली है।‘

आज सभी अखबारों में दो खबरें छपी हैं। एक खबर वैभव दूबे नामक शख्स से संबंधित है, जिसने मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग किया और उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर दी गई और दूसरी खबर रांची लाइभ से संबंधित है, जिसके खिलाफ नगर विकास मंत्री सी पी सिंह ने लालपुर थाने में केस दर्ज किया है। ये दोनों कांड भाजपा नेताओं से संबंधित है, एक में तो दारोगा वासुदेव मुंडा के बयान पर प्राथमिकी दर्ज की गई है तो दूसरे में नगर विकास मंत्री सी पी सिंह के बयान पर प्राथमिकी दर्ज करा दी गई है।

हमने सोशल साइट पर कई राजनीतिक दलों के नेताओं, फिल्म और समाचार जगत तथा विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों से जुड़े लोगों के खिलाफ कई लोगों को आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करते देखा है, जो उनके मानसिक दिवालियापन को दर्शाता है। एक सभ्य व्यक्ति आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग करें, ये उचित भी नहीं है। दुनिया में कोई जरुरी नहीं कि सभी आपके विचारों के अनुरुप ही चले। विचारों का न मिलना, समाज की बेहतरी के लिए ही हैं, अगर एक ही विचार चलेंगे तो निरंकुशता आयेगी।

खुशी इस बात की है, अब राजनीतिक दलों में भी चेतना जग रही हैं, और वे अपने प्रतिद्वंदियों के लिए सम्मान तथा सम्मानित व्यक्ति या सम्मानित पद के प्रति सम्मान का भाव रखने के लिए वचनबद्ध हैं और जो इसका पालन नहीं करते, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का मन बना रहे हैं। गुजरात में राहुल गांधी द्वारा मणिशंकर अय्यर के खिलाफ लिये गये एक्शन इस बात का घोतक है, कि अब राजनीति में शुद्धता की परिकल्पना आप कर सकते हैं। हमें लगता है कि राहुल गांधी के इस एक्शन का सभी को स्वागत करना चाहिए।

मैंने यह भी महसूस किया है कि जिनकी उच्चस्तरीय सोच होती हैं, वे इन सभी चीजों पर ध्यान हीं नहीं देते। हमने कई लोगों के मुख से एक कहानी सुनी है, अब ये कहानी झूठी है या सच्ची हमें नहीं पता, पर ये एक सबक जरुर देती हैं। एक बार महात्मा गांधी को किसी ने चार-पाच पेजों में भद्दी-भद्दी गालियां लिखकर दी। उसे लगा कि उन गालियों को पढ़कर महात्मा गांधी गुस्से में आ जायेंगे, पर महात्मा गांधी को गुस्सा नहीं आया। तब गाली लिखकर देनेवाले व्यक्ति से रहा नहीं गया, वह पुछ डाला कि हमने इतनी गंदी-गंदी गालियां लिखकर दी, पर आप गुस्से में नहीं आये। गांधी ने कहा कि भाई गुस्सा क्यों?  आपने जो सामग्रियां उपलब्ध कराई, उसमें जो उपयोगी थी, वह हमने ले ली, बाकी छोड़ दिये। पुनः उस व्यक्ति ने कहा कि, मैं अच्छी तरह जानता हूं कि उसमें कोई चीज आपके काम की नही थी। महात्मा गांधी ने जवाब दिया – थी, और वह थी पिन। वह व्यक्ति निरुतर हो गया और महात्मा गांधी के चरण पकड़ लिये। ये कहानी बहुत कुछ कह देती है, कि जो बड़े पदों पर हैं, या जो स्वयं को महान समझने की कोशिश करते हैं, उनके विचार कैसे होने चाहिए?

हम अभिनन्दन करते हैं, ऐसे राजनीतिज्ञों को, जो ऐसी सोच रखते हैं। कई सोशल साइट ऐसे भरे-पड़े हैं, जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, लालू प्रसाद को उनके विरोधी दल के लोग गालियों से नवाजते हैं, पर आज तक मैने सोनिया गांधी और राहुल गांधी या अन्य किसी भी नेताओं को उनके खिलाफ विषवमन करते न देखा, न सुना और न ही उन्होंने किसी थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी। क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को जब एक समय वे आउट आफ फार्म चल रहे थे तो लोगों ने उनके खिलाफ अपमानजनक शब्द का प्रयोग किया, पर मैंने कभी उन्हें थाने में जाकर प्राथमिकी दर्ज कराते नहीं देखा।

इधर सुनने-देखने में आ रहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को राज्य सरकार अब गाली के नाम पर कुचलने का प्रयास कर रही है। कुछ लोगों पर ऐसी-ऐसी धाराएं लगाकर प्राथमिकी दर्ज कराई जा रही हैं, कि जैसे वह व्यक्ति बहुत बड़ा आतंकी हो। ऐसे में अगर यह सरकार सोचती है कि इससे वे भय पैदा कर, अपने विरोध करनेवालों पर अंकुश लगा लेगी तो यह सबसे बड़ी गलतफहमी है, इससे राज्य सरकार के प्रति लोगों को गुस्सा भड़केगा।

आश्चर्य इस बात की है, कि जिन-जिन लोगों पर प्राथमिकी दर्ज की गई हैं,  उनमें ज्यादातर लोग भाजपा के कट्टर समर्थक हैं, और उन्हें ऐसे-ऐसे केसों में फंसाया जा रहा है, कि जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। आप इसकी तुलना इमरजेंसी से कर सकते हैं, जैसे श्रीमती इंदिरा गांधी ने कभी अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए कानून का दुरुपयोग किया, और अपने विरोधियों को सबक सिखाते हुए, उन्हें जेल में बंद करना शुरु किया, वहीं हालात झारखण्ड में बनाने की कोशिश की जा रही हैं।

पुलिस को बोल दिया गया है, ऐसे लोगों पर कार्रवाई करिये, जो सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं, पुलिस ने भी अपना काम शुरु कर दिया है, अब भाजपा और संघ को सोचना है कि इससे उन्हें फायदा होगा या नुकसान। एक बात और, इसका सर्वाधिक शिकार एक वर्ग विशेष हो रहा हैं, वह वर्ग कौन हैं?  आप बेहतर समझ सकते हैं, यानी अब सारा काम बंद, बहुत हो गया, सबका साथ, सबका विकास। अब एक विशेष वर्ग को सबक सिखाने का काम, राज्य सरकार द्वारा प्रारम्भ कर दिया गया है।

जिसका पहला शिकार मैं खुद ही हूं। हमारे खिलाफ झूठी प्राथमिकी राज्य सरकार के लोगों द्वारा ही, धुर्वा थाने में दर्ज करा दी गयी हैं, जिसका केस रांची व्यवहार न्यायालय में चल रहा है, अगर आप उस केस को देखेंगे तो हंसते-हंसते लोट-पोट हो जायेंगे, फिर भी सरकार तो सरकार है, उसके खिलाफ बोलियेगा तो जाइये। अंग्रेज भी तो यहीं किया करते थे, हमने तो अंग्रेजी सल्तनत नहीं देखी, पर जो अभी महसूस कर रहा हूं और जो पढ़ा है, उससे तो यहीं लगता है कि अंग्रेजी सल्तनत भी ऐसी ही रही हुई होगी।