राजनीति

CM रघुवर को एक क्षण भी अपने पद पर रहने का नैतिक अधिकार नहीं – हेमन्त

हेमन्त सोरेन ने कहा है कि राज्य के मुख्यमंत्री लगातार राज्य के किसानों की जमीन हड़पने के लिए कानून में परिवर्तन करने का प्रयास कर रहे हैं। पूर्व में इन्होंने सीएनटी/एसपीटी कानून में परिवर्तन कर आदिवासियों, मूलवासियों की जमीन छीनकर पूंजीपतियों को देने का प्रयास किया था। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने सदन से सड़क तक इसका विरोध किया। बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतरे, रघुवर दास ने उन पर गोलियां चलवायी। कई युवा मारे गये, जनाक्रोश को गोलियों एवं लाठियों के बल पर दबाने की कोशिश की गई। हजारों की संख्या में आंदोलनकारियों पर मुकदमें दर्ज किये गये। कॉलेज के छात्र-छात्राओं को पुलिस ने दौड़ा-दौड़ाकर पीटा।

आदिवासियों एवं मूलवासियों की जमीन की रक्षा के लिए सदन की कार्रवाई लंबे समय तक नही चलने देने का कठोर एवं अप्रिय निर्णय हमें लेना पड़ा। हमारे इस विरोध का परिणाम भी सामने आया। हम राज्यपाल महोदया को यह समझाने में सफल रहे कि यह संशोधन बिल पारित हो जायेगा, तो पूरा आदिवासी, मूलवासी समाज उखड़ जायेगा। राज्यपाल महोदया ने एक संवेदनशील फैसला लिया, उन्होंने सीएनटी/एसपीटी एक्ट संशोधन बिल को सरकार को वापस कर दिया।  राज्यपाल महोदया के इस कदम से पूरे झारखण्ड का जनमानस उनका कर्जदार हो गया है।

हेमन्त सोरेन ने कहा कि अपने इस प्रयास में असफल रहने पर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने किसानों और रैयतों की जमीन हड़पने का दुसरा तरीका निकाला। इस बार उन्होंने लोकसभा से पारित भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 को संशोधित करने का प्रस्ताव बहुमत के दम पर विधानसभा से पारित कराया। हमने इसका भी विरोध किया। शिबू सोरेन के नेतृत्व में फिर राज्यपाल एवं राष्ट्रपति से मिलकर झारखण्ड विधानसभा द्वारा पारित भूमि अधिग्रहण विधेयक 2017 पर सहमति नही देने का अनुरोध किया। मेरे पास भारत सरकार के कृषि मंत्रालय का एक पत्र है।

यह पत्र गृह मंत्रालय, भारत सरकार को लिखा गया है। इस पत्र में भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने झारखण्ड विधानसभा द्वारा पारित भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 में प्रस्तावित संशोधन पर सहमति नहीं देने का परामर्श गृह मंत्रालय को दिया है। उन्होंने साफ-साफ कहा है कि राज्य सरकार के संशोधन पर सहमति देने से कृषि योग्य भूमि में कमी आयेगी और इससे कृषि भूमि के गैर कृषि उपयोग हेतु हस्तांतरण में तेजी आयेगी।

केन्द्र की कृषि विभाग ने राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधन पर उठाए सवाल

कृषि विभाग के पत्र में साफ-साफ लिखा है कि झारखण्ड सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधन, राष्ट्रीय कृषि नीति 2007 तथा राष्ट्रीय पुनर्वास नीति 2007 के उद्देश्यों एवं प्रावधानों के प्रतिकूल है। विभाग ने यह भी कहा है कि भारत सरकार की यह नीति है कि कृषि भूमि का हस्तांतरण गैर कृषि कार्य हेतु नहीं किया जायेगा तथा परियोजना बंजर भूमि पर लगायी जाय। मुझे यह जानकारी मिली है कि कृषि विभाग के इस आपत्ति को आधार बनाते हुए भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार के भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल 2017 को पुनर्विचार के लिए वापस कर दिया है, इससे साबित होता है कि भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक 2017 को वापस लेने की हमारी मांग जायज थी। इसके बाद नैतिकता की दुहाई देने वाले मुख्यमंत्री को एक क्षण भी अपने पद पर बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।

हेमन्त ने कहा राज्य में एक बड़ा जमीन घोटाला, जांच कराएं केन्द्र

हेमन्त सोरेन ने यह भी कहा कि यह एक गंभीर जांच का विषय है कि आखिर किन ताकतों के दबाव में आदिवासियों एवं मूलवासियों के हितों एवं भारत सरकार के नीतियों के प्रतिकूल जाकर राज्य सरकार भूमि अधिग्रहण कानूनों में संशोधन का बार-बार असफल प्रयास कर रही है। सरकार के इन प्रयासों से स्पष्ट होता है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास, भू-माफियाओं एवं पूंजीपतियों के साथ मिलकर राज्य में किसानों-आदिवासियों को बर्बाद करने के लिए रची गई एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है।

उन्होंने कहा कि हाल ही में राज्य सरकार ने हजारों करोड़ों की कृषि भूमि औने-पौने दामों में कई कंपनियों को दिये है।  किन नियमों के तहत कृषि भूमि को इस प्रकार उद्योगों के लिए कंपनियों को दिया गया है। अखबारों में समाचार छपे है कि ऐसी अधिकांश कंपनियों की वित्तीय स्थिति ऐसी नहीं है, जितने की एमओयू की गई है। राज्य में एक बड़ा जमीन घोटाला चल रहा है। मुख्यमंत्री ने सरकार को व्यापारिक प्रतिष्ठान बना दिया है। यहां सिर्फ जमीनों की दलाली हो रही है। राज्य के आला अधिकारी स्वयं जमीनों पर जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि हम राज्यपाल एवं केन्द्र सरकार से मांग करते हैं कि राज्य में हो रहे जमीन घोटाले एवं मुख्यमंत्री के जमीन माफियाओं एवं पूंजीपतियों से सांठ-गांठ की निष्पक्ष एजेंसी द्वारा जांच करायी जाय तथा जनविरोधी कार्यों एवं सदन में अभद्र आचरण के लिए मुख्यमंत्री को अविलंब बर्खास्त करने का कार्रवाई की जाय।