अर्जुन मुंडा और फिल इन द ब्लैंक्स, ये बात कुछ हजम नहीं हुई

ये फिल इन द ब्लैंक्स क्या होता है? अंग्रेजी के इस वाक्यांश को हिन्दी में कहते है, रिक्त स्थानों को भरें, तो क्या सचमुच पूर्व में झामुमो के नेता रहे अर्जुन मुंडा, जो बाद में भाजपा का दामन पकड़कर, बाबू लाल मरांडी के शासनकाल में पहले कल्याण मंत्री बने, गृह मंत्रालय भी संभाले और बाबू लाल मरांडी के मुख्यमंत्री पद पर जब संकट मंडराने लगे तब बाबू लाल मरांडी के उत्तराधिकारी के रुप में मुख्यमंत्री के रुप में झारखण्ड का बागडोर संभाला था, अरे भाई, ये फिल इन द ब्लैंक्स तो नहीं था।

फिल इन द ब्लैंक्स तो उसे कहेंगे, जहां कोई उचित व्यक्ति नहीं मिले तो लीजिये भाई फलांने का वहां लगा दो, ऐसा तो न तो बाबू लाल मरांडी के समय था, और न ही ऐसा कभी देखा गया, कि अर्जुन मुंडा के साथ ऐसा हुआ, हां ये बात जरुर देखने को मिला, कि जब भी फिल इन द ब्लैंक्स को भरने की बात आई, अर्जुन मुंडा ने उस फिल इन द ब्लैंक्स को अपनी राजनीतिक व सामाजिक प्रतिभा के आधार पर भरने की कोशिश की, चुनौतियों को स्वीकारा और उसमें वे अव्वल रहें, आज भी अर्जुन मुंडा के अंदर वो काबिलियत है कि वे विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी छाप छोड़ सकते हैं, ऐसा कई बार उन्होंने सिद्ध भी किया है।

हाल ही में गुजरात विधानसभा चुनाव हो या त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव का परिदृश्य, इन दोनों जगहों पर अर्जुन मुंडा ने अपनी सर्वश्रेष्ठता सिद्ध की है, वे आज भी अपने कार्यकर्ताओं के बीच जितने लोकप्रिय है, उतनी लोकप्रियता मुख्यमंत्री रघुवर दास को भी नहीं है। आज भी अर्जुन मुंडा एक बार अपने कार्यकर्ताओं को आह्वान कर दे कि कार्यकर्ताओं को उनकी जरुरत है, फिर देखिये कैसे शमां बंध जाता हैं, इसलिए अर्जुन मुंडा जैसा मुख्यमंत्री रह चुका व्यक्ति ये कहे कि उन्हें हमेशा फिल इन द ब्लैंक्स की तरह इस्तेमाल किया गया, कोई भी व्यक्ति जिसे राजनीति के एबीसीडी का भी मात्र ज्ञान है, स्वीकार नहीं करेगा।

हां ये अर्जुन मुंडा के हृदय का छुपा हुआ दर्द है, जो कथित इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के दौरान छलका, और ये दर्द छलकना जरुरी भी है, क्योंकि आज वे हर प्रकार से राजनीतिक शक्तियों से युक्त होने के बाद भी वे फिलहाल अनुपयोगी सिद्ध हो रहे हैं, ठीक उसी तरह जब वे यानी अर्जुन मुंडा पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब जो हाल पार्टी में आज उनकी है, वहीं हाल बाबू लाल मरांडी की भाजपा में हो गई थी, यानी फिल इन द ब्लैंक्स हो गये थे। भाई ये तो कर्मफल का सिद्धांत है, व्यक्ति जो करता है, वही पाता है।

अभी रघुवर दास फार्म में है, ये भी जल्दी ही नीचे आयेंगे, चिंता क्यों करते है? कर्मफल के सिद्धांत के अनुसार तो सभी को अपना-अपना दंश झेलना है, हां दिक्कत ये होती है कि जब व्यक्ति सत्ता के शीर्ष पर होता है तो उसे ये सब दिखाई नहीं पड़ता, जमकर सत्ता के मदान्ध में रहकर वह हर प्रकार के ऐसे-ऐसे काम करता है, जिसको समाज इजाजत नहीं देता, पर जैसे ही सत्ता हाथ से निकलती है तो वहीं व्यक्ति बहुत बड़ा दार्शनिक दिखाई देने लगता है, ये सत्य है, इससे कोई इनकार भी नहीं कर सकता।