क्या इस बार हाथी उड़ानेवाले CM रघुवर दास को झारखण्ड की जनता सबक सिखाने को तैयार हैं?

किसी भी मुख्यमंत्री के लिए पांच वर्ष निष्कटंक राज्य चलाने का मौका मिलना कोई सामान्य बात नहीं। केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से मिला आशीर्वाद और कोई भी काम करने की मिली स्वतंत्रता, अगर झारखण्ड में किसी मुख्यमंत्री को अब तक मिला, तो वे एकमात्र मुख्यमंत्री रघुवर दास ही रहे, बाकी जितने भी मुख्यमंत्री रहे, वह किसी न किसी प्रकार से विभिन्न प्रकार की संकटों से ग्रसित रहे, कभी अपनी पार्टियों के अंदर उत्पन्न संकटों से, तो कभी सहयोगी दलों के प्रहार से, तो कभी विभिन्न प्रकार के अकारण खुद के बनाये गये संकटों से।

कहने को तो रघुवर दास और उनके लोग कहने से नहीं चूंकेंगे कि उन्होंने झारखण्ड में विकास की गंगा बहा दी, कहने को तो कभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी, उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में इलाहाबाद के एक जनसभा में कह दिया कि विकास देखना हैं तो झारखण्ड जाकर देखिये, पर जो लोग झारखण्ड में रहते हैं, उन्हें पता है कि उनके राज्य में किस प्रकार का मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जबरन थोप दिया, जिनके बड़बोलेपन तथा अमर्यादित भाषा से राज्य के सम्मान को ठेस पहुंची।

रघुवर सरकार के इस पांच साल को अगर देखा जाये तो लोग भले ही कहें कि इस राज्य में रघुवर दास का शासन था, पर विद्रोही24.कॉम सदा यही कहेगा कि इस राज्य में नाम के मुख्यमंत्री रघुवर दास रहे और असली शासन इनके नाम पर, इनके आगे-पीछे करनेवाले कनफूंकवों ने चलाया, और इन कनफूंकवों ने उन सारी मर्यादाओं को चुनौती दी, जिसके लिए झारखण्ड जाना जाता था।

कनफूंकवों के इशारे और बड़बोलेपन के कारण ही मुख्यमंत्री ने एक जाति विशेष पर ऐसी टिप्पणी की, जिसको लेकर पूरे राज्य में उक्त जाति विशेष के लोगों ने राज्यव्यापी आंदोलन किया तथा अपनी अमर्यादित टिप्पणी के लिए मुख्यमंत्री से माफी मांगने को कहा, पर मुख्यमंत्री ने माफी मांगना जरुरी नहीं समझा, जनाब तो विधानसभा में भी अपने विरोधियों पर गालियों का बौछार करते नजर आये, नेता प्रतिपक्ष ने माफी मांगने को कहा, तो उसे भी नजरंदाज कर दिया, आखिर यह घमंड नहीं तो और क्या था?

राज्य के यह पहले मुख्यमंत्री रहे, जिन्होंने जातिवाद का ऐसा रंग झारखण्ड में फैलाया, जिसको लेकर इन्हीं के जाति से कई लोग इस प्रकार बिदके हैं, कि आनेवाले समय में जो बिहार में यादवों के साथ हुआ हैं, झारखण्ड में इनकी जातियों के साथ होना सुनिश्चित हैं, क्योंकि बोए पेड़ बबूल के तो आम कहां से पाए। हम आपको बता दे कि भाजपा के पूर्व के दिवंगत नेता खुद को जाति तोड़क व समता मूलक समाज बनाने में ज्यादा विश्वास करते थे, पर रघुवर दास ने तो दिल्ली, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखण्ड के विभिन्न कस्बों में जातीय सम्मेलन में भाग लेकर सिद्ध कर दिया कि उनकी पहली और अंतिम रुचि उनकी जाति के लोगों की भलाई है, यहां तक की उनका जातीय प्रेम लोकसभा और विधानसभा की टिकट देने-दिलाने में भी दिखा।

देश के विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों में से यह पहले मुख्यमंत्री हुए, जिन्होंने झूठ बोलने का रिकार्ड अपने पाले में किया। कभी गढ़वा में ताल ठोककर यह कहनेवाले कि “दिसम्बर 2018 तक 24 घंटे बिजली नहीं दी, तो वोट मांगने नहीं आऊंगा”, ने 24 घंटे बिजली न तो उपलब्ध कराई और न ही अपने वायदे निभाए, वे 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान वोट मांगते देखे गये और विधानसभा चुनाव में भी वोट मांगेंगे, क्योंकि इनके लिए नेता वहीं जो कहे कुछ और करे कुछ।

इनके शासनकाल में पहली बार बड़े पैमाने पर स्कूलों में ताले लटकवायें गये, शराब दुकानों को बड़े पैमाने पर खुलवाये गये, जैसे लगा कि राज्य में शराब से ही लोगों का भलाई होनेवाला है, जबकि पड़ोसी राज्य बिहार में शराबबंद हैं और वहां की महिलाएं इस बंदी से खुश भी हैं, जब झारखण्ड की एक महिला ने इन्हीं के द्वारा लगाये जन-चौपाल में झारखण्ड में शराबबंदी की मांग की, तो इन्होंने शराबबंदी करने से ही इनकार कर दिया और उलटे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ही कटघरे में ही खड़ा कर दिया, कि वहां शराबबंदी के बावजूद शराब की बिक्री बड़े पैमाने पर हो रही हैं, मतलब कुछ भी जनता के सामने बोल दो और पल्ला झाड़ लो।

कभी रांचीवासियों को शंघाई टावर का सपना दिखानेवाले, तो कभी हाथी उड़ाने का ख्वाब दिखानेवाले इस शख्स ने झारखण्ड को जैसे पाया, वैसे नचाया और लोग इसके रहमोकरम पर अपने ख्वाबों को बर्बाद करते देखे गये। झारखण्ड लोक सेवा आयोग हो या झारखण्ड राज्य कर्मचारी चयन आयोग हो इनके राज्य में एक भी वैकेंसी नहीं निकाले और न ही किसी का योगदान कराया। झारखण्ड रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय एटीएम की सुरक्षा गार्ड बनाने के कारखाने तौर पर दिखे। यहां तक की राजधानी रांची में इनके शासनकाल में एक फ्लाईओवर तक नहीं बना, और न ही साहेबगंज में सड़क पुल का निर्माण हुआ, लेकिन बड़े-बड़े व्यापारियों-उद्योगपतियों के लिए बंदरगाह जरुर बना दी गई।

पूरा झारखण्ड मॉब लिचिंग का अड्डा बन गया, जिसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों बड़ी संख्या में मारे गये, मामला ऐसा उठा कि दिल्ली की संसद ही नहीं, बल्कि यह समाचार विश्व के विभिन्न अखबारों में सुर्खियां बन गई और पूरे देश के सम्मान पर बट्टा लगा, यहीं नहीं भूख से मरी संतोषी ने तो झारखण्ड की नाक ही कटवा दी, मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में कार्यरत महिलाओं के साथ भी दुर्व्यवहार हुआ, और इन महिलाओं को न्याय तो दी नहीं, उलटे उन महिलाओं को ही महिला आयोग द्वारा दोषी ठहरा दिया गया, यानी किस प्रकार कनफूंकवों ने राज्य के विभिन्न एंजेसियों को अपने इशारों पर नचवाया, वो साफ दिखा।

यहीं नहीं राज्य में पहली बार देखा गया कि राज्य का तत्कालीन पुलिस महानिदेशक भाजपा के प्रवक्ता के रुप में नजर आया और बाद में जब वह अवकाश प्राप्त किया तो उसने भाजपा ज्वाइन भी कर ली, यानी किस प्रकार से यहां आइपीएस से जुड़े पुलिस अधिकारियों ने संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन किया, वो अपने आप में ही निराला है, यही नहीं ये पहली सरकार थी कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के ट्विटरों और उनके फेसबुक को अपने चेहरे चमकाने के लिए प्रयोग किया, जो सैद्धांतिक लोगों को नागवार गुजरा, पर ये चिन्ता मुख्यमंत्री रघुवर दास को कहां?

समस्याएं और इनके द्वारा किये गये घोषणाओं पर नजर डालें तो एक भी घोषणाओं और समस्याओं को इस रघुवर सरकार ने पूरा नहीं किया, और अब चूंकि झारखण्ड फिर से विधानसभा चुनाव के चौखट पर खड़ा हैं, क्या राज्य की जनता ऐसे व्यक्ति पर विश्वास कर, फिर से उसे सत्ता सौपेंगी, क्या फिर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू चलेगा, या हेमन्त के नेतृत्व में विपक्ष अपनी ताकत दिखायेगा, राजनीतिक पंडितों की मानें तो फिलहाल, जितना भी रघुवर जोर लगा लें, इस बार अगर विपक्ष एकता के सूत्र में बंधकर चुनाव लड़ गया, तो रघुवर दास की हालत पतली होनी तय है।