राजनीति

पत्थलगड़ी पर ग्रामीणों को मिला झारखण्ड के सभी दलों का साथ, भाजपा की नींद उड़ी

पत्थलगड़ी पर कांग्रेस, झामुमो, झाविमो, भाकपा, माकपा, भाकपा माले, यहां तक की भाजपा की महत्वपूर्ण सहयोगी आजसू भी ग्रामीणों के साथ हैं, पर भाजपा की विचारधारा इन सबसे अलग है। भाजपा के लोग, यहां तक की मुख्यमंत्री इन दिनों पत्थलगड़ी में लगे ग्रामीणों और कार्यकर्ताओं को देश विरोधी करार दे रहे हैं, यही नहीं, इन्हें देश-विरोधी करार देकर, इन्हें कुचलने की बात भी कह रहे हैं, मुख्यमंत्री रघुवर दास के इस प्रकार के बयान ने आग में घी डालने का काम किया है, इससे एक बात साफ हो गया कि पत्थलगड़ी को लेकर ग्रामीणों और सरकार के बीच जो दरारें आयी हैं, वह दरारें और चौड़ी होंगी, पता नहीं ऐसी सलाह, मुख्यमंत्री रघुवर दास को कौन देता है? जिससे स्थिति और बिगड़ने की संभावना बलवती हो गई।

मुख्यमंत्री रघुवर दास कल खूंटी में थे, वहां उन्होंने कह दिया कि राष्ट्र विरोधी ताकतें भोले-भाले आदिवासियों को बहका रही है, जो ऐसा कर रहे हैं, उनकी कुंडली खंगाली जा रही हैं, इनसे कड़ाई से निबटने का निर्देश दिया गया है, मुख्यमंत्री ने यहां तक कह दिया कि स्कूल, अस्पताल व समाज सेवा के नाम पर आदिवासियों की कितनी जमीन ली गई, जल्द पता चलेगा, यानी उनका इशारा मिशनरियों की ओर था, आप कह सकते है कि मुख्यमंत्री ने उस लोकोक्ति को बल प्रदान किया, कि “काम का न काज का ढाई मन अनाज का।”

इधर जो लोग पत्थलगड़ी के बारे में जानते हैं, वे इसे किसी प्रकार से गलत नहीं मानते, वे कहते है कि जिन इलाकों में पत्थलगड़ी हो रही हैं, वहां किसी को भी आने-जाने से रोक नहीं हैं। हां, शक होने पर ग्रामीण पूछताछ करते हैं, ऐसे में इसमें गलत क्या है? पत्थलगड़ी तो राजा-महाराजा के जमाने से चली आ रही हैं, किसी ने रोक नहीं लगाया, आज इस पर रोक क्यों? आदिवासियों का कहना है कि संविधान में प्रदत्त अधिकारों को ग्रामीणों को जानकारी देना किसका काम है, अगर यह काम सरकार नहीं करेगी, और दूसरे लोग ऐसा कर, ग्रामीणों को जागरुक करेंगे, तो वह असंवैधानिक कैसे हो गये? देशद्रोही कैसे हो गये?

पत्थलगड़ी का मामला सीधे संविधान से जुड़ा है, भारत में रहनेवाले प्रत्येक ग्रामीणों को अधिकार है कि वह संविधान, प्रथा, सीएनटी-एसपीटी एक्ट, पांचवी अनुसूची, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों व ग्रामसभा के महत्व को जाने, क्योंकि अगर वे इसकी जानकारी नहीं रखेंगे तो वे समाप्त हो जायेंगे, और कोई नहीं चाहेगा कि वह अपने अस्तित्व को चुनौती देनेवाले लोगों के हां में हां मिलाये, जब गांवों में विकास नहीं होगा, जब गांवों में शिक्षक पढ़ाने से कतरायेंगे, जब गांवों में स्वास्थ्य सेवा प्रभावित होंगी, बिजली नहीं रहेगी, तो पत्थलगड़ी का कार्यक्रम होने से कोई रोक नहीं सकता।

ग्रामीण बताते है कि जब से बड़े पैमाने पर पत्थलगड़ी होना शुरु हुआ हैं, राज्य सरकार की नींद उड़ी हैं, उसका मूल कारण है कि सरकार को लग रहा हैं कि गांवों में उनके शासन के पांव उखड़ने लगे हैं, गांव के लोग जाग रहे हैं, और वे अपने हक के लिए लड़ना जान गये हैं, सीएनटी-एसपीटी को लेकर ग्रामीणों का आंदोलन और इस मुद्दे पर सरकार का पीछे हटना, उसी की एक कड़ी हैं, साथ ही एक नई राजनीतिक चेतना ने भाजपाइयों की नींद उड़ा दी हैं, कि अब उन्हें कोई उल्लू नहीं बना सकता।

ग्रामीण बताते है कि भाड़े पर भीड़ लाकर या पुलिस-प्रशासन से गाड़ी जब्त कराकर उसमें ठूंस-ठूंस कर किराये की भीड़ लाकर, उन्हें कार्यकर्ता बताकर, संबोधित करने से भाजपा को अब सत्ता नहीं मिलनेवाली, जनता सब कुछ जान गई हैं, मुख्यमंत्री कितना भी कार्यकर्ता सम्मेलन कर लें, इस बार भाजपा की विदाई का संकल्प ग्रामीणों ने ले लिया हैं, और इस निर्णय को न तो मोदी बदल सकते हैं और न ही अमित शाह।

इधर कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और छत्तीसगढ़ के प्रभारी अरुण उरांव तो साफ कहते है कि रघुवर सरकार को ग्रामीणों से टकराने के बजाय, उनकी जनभावनाओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए, नहीं तो राज्य में एक नई नक्सलवाद का जन्म हो जायेगा, फिर सरकार कुछ भी करती रह जायेगी, इस आग को फिर नहीं बुझा पायेगी। वे यह भी कहते है कि जिन इलाकों में पत्थलगड़ी हो रही हैं, वहां विकास की अगर किरण नहीं पहुंची तो उसके लिए किसे दोषी ठहराया जाये, जबकि जब से झारखण्ड का निर्माण हुआ, उसमें एक-दो सालों को छोड़कर ज्यादा इन्हीं लोगों का शासन रहा, सरकार अपने किये पापों को जो दूसरों पर मढ़ने की कोशिश कर रही हैं, वह पूर्णतः गलत है।