भाजपा के लिए इससे बड़ा सुखद समाचार दूसरा कोई हो ही नहीं सकता, यशवंत ने भाजपा छोड़ दी

यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे लोग जब देश-समाज सेवा के बारे में बोलते हैं, तो ऐसा लगता है कि ये सच्चे देशभक्तों और समाजसेवियों को मुंह चिढ़ा रहे हैं। कल सुनने को मिला कि यशवंत सिन्हा ने खुद को भाजपा से अलग कर लिया, जबकि उनका बेटा आज भी भाजपा में है, और मंत्री पद का परम आनन्द प्राप्त कर रहा है। आप कहेंगे कि इसमें क्या हुआ? उनका बेटा न भाजपा में है, यशवंत सिन्हा नहीं न है।

हम आपको बता देते है कि यशवंत सिन्हा जैसे चालाक लोग पूरी दुनिया में भरे-पड़े हैं, धनबाद में ही एक ऐसा दबंग परिवार है, जिसका पूरा परिवार किसी न किसी दल से जुड़ा जरुर हैं, कोई भाजपा से जुड़ा है, तो कोई सपा से जुड़ा है, तो कोई राजद से जुड़ा है, तो कोई बसपा से जुड़ा है, उसका मूल कारण भी देश या समाज सेवा नहीं है, बल्कि शासन किसी का भी रहे, हमें सत्ता सुख का परम आनन्द प्राप्त करना है।

जरा यशवंत सिन्हा से पूछिये कि आप तो बहुत बड़े-बड़े पदों पर रहे हैं, देश के लिए क्या किया? उत्तर होगा किया न, पूरे देश में ठेका प्रथा की शुरुआत की। ट्रेड यूनियनों को सदा के लिए देश के विभिन्न श्मशान घाटों पर ले जाकर उनका दाह संस्कार करा दिया। पूरे देश में कामगारों-मजदूरों-डाक्टरों-इंजीनियरों-पत्रकारों तथा काम करनेवाले श्रमिकों की कमर तोड़ दी और मालिकों-गद्दारों के आगे उन्हें सिर्फ दूम हिलानेवाला बनाकर छोड़ दिया, जिसका खामियाजा आज पूरा देश भुगत रहा हैं।

पूरे देश में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ऐसी इमेज बिगाड़ी की भाजपा दस सालों के लिए सत्ता से बाहर हो गई, आज तो इसी पर एक लोकोक्ति भी बन गई, कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने चूना लगाया और आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को वर्तमान वित्त मंत्री अरुण जेटली चूना लगाने को तैयार है, वो दिख भी रहा है, सर्वविदित है।

हमें अच्छी तरह याद है कि ये वहीं यशवंत सिन्हा है, जो चंद्रशेखर सिंह के प्रधानमंत्रीत्व काल में हुए लोकसभा चुनाव में पटना संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे थे, ये हमारे तत्कालीन वार्ड न. 10-11 में एक व्यक्ति के साथ, दोपहर के समय, बालेश्वर नाथ सिंह के आवास पर पहुंचे। 100-100 की गड्डी पलंग पर रखी थी, बालेश्वर नाथ सिंह ने कहा कि पंडित जी, ये यशवंत सिन्हा जी है, इनके लिए अपने वार्ड में काम करना है, मैंने कहा ये तो पूरा वार्ड भाजपाई है, इनको कौन वोट देगा? संभव नहीं, और न पैसे के लिए यहां कोई इनका काम करेगा? अब वो 100-100 की गड्डी किसके पास रहा? भगवान जाने, हालांकि उस वक्त यशवंत सिन्हा की पटना संसदीय सीट पर कैसी हार हुई? सभी अच्छी तरह जानते हैं, जमानत तक नहीं बची थी।

बाद में ये इधर-उधर देख तथा बड़ी सोच-समझकर, चूंकि बिहार में भाजपा मजबूत स्थिति में होती चली जा रही थी, साथ ही भाजपा को भी एक यशवंत सिन्हा टाइप आदमी की तलाश थी, दोनों को एक दूसरे में बहुत कुछ नजर आया, इकरार हुआ, प्यार हुआ और लीजिये यशवंत सिन्हा भाजपा के हो गये,। भाजपा ने इन्हें बिहार विधानसभा में विरोधी दल का नेता बनाया, खूब इनकी चर्चा हुई, बढ़िया बोलते है, देखते-देखते लोकसभा चुनाव जीत गये, केन्द्र की राजनीति में आ गये, अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने मंत्रीमंडल में महत्वपूर्ण स्थान दिया, चमकते चले गये, पर देश को इन्होंने क्या दिया, वो इस देश में रह रहा, काम कर रहा श्रमिक अच्छी तरह से जानता है। यशवंत सिन्हा ऐसा नहीं कि ये बहुत लोकप्रिय और देश के कर्णधार है, अगर वे खुद अपने को धाकड़ नेता मानते है, तो हम चुनौती देते है, बिना किसी दल के वे चुनाव लड़ जाये, अरे ये हजारीबाग से ही लड़ जाये, इनकी जमानत जब्त हो जायेगी, ये कितने महान है, सभी जानते हैं।

और अब बात बिहारी बाबू के नाम से प्रचलित शत्रुघ्न सिन्हा की, ये स्वयं अपने छाती पर हाथ धरकर बताये कि जितना प्यार बिहार की जनता ने इन्हें दिया, इन्होंने बिहार की जनता को, पटना की जनता को क्या दिया? हमें याद है कि एक फिल्म बनी थी, जिसमें इन्होंने मुख्य रोल अदा किया था, और उस फिल्म में नेता बने विलेन को इन्होंने ठन ठन तिवारी नाम देकर खुब गरियाया था। उस वक्त लोगों ने यह बात ताड़ने में देर नही लगाई कि इस फिल्म में शत्रुघ्न सिन्हा ने ठन ठन तिवारी के नाम से पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दूबे को टारगेट किया, कहा जाता है कि बिंदेश्वरी दूबे ने उनके सपने कैंसर अस्पताल को जमीन पर उतरने नहीं दिया था, पर शत्रुघ्न सिन्हा बताये कि बिंदेश्वरी दूबे के बाद, तो उनके मनोनूकुल कई मुख्यमंत्री आये और गये, वर्तमान में नीतीश कुमार तो उनके मुरीद है, फिर भी वे अपने सपनों को बिहार के हित में क्यों नहीं पूरा करते? किसने रोक रखा है?

जबकि किशोर कुणाल जैसे व्यक्तित्व ने धर्म और अध्यात्म के सहारे बिहार को कहां से कहां पहुंचा दिया, जाकर पटना का महावीर मंदिर देखिये, महावीर आरोग्य संस्थान जाकर देख लीजिये। अरे सुलभ शौचालय के प्रणेता बिदेश्वरी पाठक को ही जाकर देख लीजिये, यानी जिसे जो करना है, देश या समाज हित मे करना है, उसे रोका किसने है? और जिन्हें सिर्फ राजनीतिबाजी करनी हैं, और इस राजनीतिबाजी द्वारा अपना और अपने परिवार के भविष्य को सुदृढ़ करना हैं तो फिर उन्हें दिक्कत कहां है? जिस दल में पहले रहे या हैं या जिस दल ने आपको उचाइयां दी, उसकी बेशर्मी से कब्र खोदते रहे और स्वयं को महान बनाने का सपना देखते रहे।