सर्वत्र जागरण की हो रही थू-थू, रांची के अखिलेश की प्रतिज्ञा, वह जागरण में कभी काम नहीं करेगा

वरिष्ठ पत्रकार गुंजन सिन्हा ने एक पत्रकार को संबोधित करते हुए लिखा है कि  जागरण के अपराध के लिए पीसीआई या कोर्ट से कोई लाभ नहीं, जनता को इसका बहिष्कार करना चाहिए। अखबारों पर नियंत्रण जनता का होना चाहिए, विज्ञापन का पैसा हो या कीमत, चुकाती जनता है, लेकिन कंटेंट पर उसका कोई अधिकार नहीं, आप जो चाहें जैसे चाहें उसे ही ठगें वाह, और इस अखबारी निरंकुश ऐय्याशी के खिलाफ, समाज में जहर अफवाह बीमारियाँ फैलाने के खिलाफ जनता कार्रवाई न करे तो कौन करेगा?

याद है किसी जमाने में एक आज अखबार हुआ करता था। अब भी शायद दस पांच कॉपी छपता है ताकि उसका बिल्डिंग बिजनेस निरंकुश चले बनारस में। वही हाल जागरण का भी बहुत जल्द होगा – पटना से बायकाट शुरू कराइए। महिला संगठनों को खुल कर उन सभी चैनल्स अखबारों के खिलाफ आन्दोलन करना चाहिए जो ऐसी घटिया झूठी खबरनवीसी करते हैं। 

अख़बार के नाम पर कलंक जागरण ने छापा है कि कठुआ में बलात्कार हुआ ही नहीं – ऐसे सम्पादक और रिपोर्टर जो सच को झुठलाते हैं वे लतख़ोर हैं । जागरण शुरू से एक कलंकित अख़बार है। हर दंगे में इसकी भूमिका दंगा फैलाने वाली रही है जिसके कारण हमेशा भर्त्सना हुई, लेकिन वे बेशर्म हैं और यही बेशर्मी उनका व्यापार है लेकिन उसे ख़रीदने वाले और उस दंगाई अख़बार को पढ़ने वाला एक बड़ा वर्ग है। दंगा रैबिड इन लोगों का उत्साह भर्त्सना से और बढ़ता है। एडिटर्ज़ गिल्ड, प्रेस काउन्सिल सब में वैसे ही कायर हैं । कोई ऐक्शन नही लेंगे। इसका बहिष्कार ही उपाय है।

संजय मिश्र कहते हैं कि गुंजनजी कम से कम ईटीवी में रहते आपने रिपोर्टरों को बेशक पूरी आजादी दे रखी थी, दबावमुक्त रखा था उन्हें,  लेकिन आपके इस पोस्ट पर जिस तरह का प्रवचन चल रहा,  सभी जिस तरह राजा हरिश्चंद्र बन गए हैं, और आप चुप लगाए बैठे हैं,  सवाल उठना लाजिमी है। क्या जागरण छोड़कर इंडिया के बाकि सारे मीडिया घराने पत्रकारिता की आत्मा की रक्षा कर रहे, यहां किसी किताब की चर्चा हो रही,  कृपया पत्रकार अखिलेश अखिल की लिखी किताब का जिक्र भी करवा दीजीए, मेरा यकीन है कि प्रवचन करने वाले चेहरा छुपा कर भाग जाएंगे,  इंडिया का एक बड़ा संकट है पत्रकारिता की बड़ी फौज का बेइमान हो जाना। चाहे वो जागरण में हो या फिर दूसरी जगहों पर।

जरा पूछ दीजीए ना इन्हें कि पत्रकारिता की कौन सी मर्यादा के निर्वाह के लिए कई पत्रकारों को हाई-कोर्ट ने ऐसी की तैसी कर दी है। हाल में, जानते हुए कि कठुआ पीड़िता की न तो तस्वीर लगा सकते न ही उसका नाम ले सकते,  फिर किस बेइमानी के तहत ऐसा दुष्कर्म कर रहे थे वे पत्रकार, किसको भड़काने की कोशिश थी वो, भद्रपुरुष गुंजनजी आप तो अक्सर लिखते रहते कि सही मायने में इस देश में पत्रकारिता नहीं हो रही। अखबार तो अखबार है, कोई भी विवेकशील इंसान रेप का समर्थन नहीं कर सकता, लेकिन जागरण अखबार ने कठुआ रेप कांड पर बलात्कारियों के बचाव में खबर छाप कर पूरे देश को शर्मिंदा किया है।

एक पत्रकार प्रवीण ने लिखा है कि पत्रकारिता की भी मिट्टी पलीद कर दी है। कोई अखबार/पत्रकार ऐसा भी कर सकता है, यह सोच कर ही हैरानी होती है। हैरान करनेवाली बात यह भी है कि उसी अख़बार समूह का उर्दू दैनिक इंकलाब इसके उलट खबर छापता है। यह क्या तमाशा है भाई ? 1992 में अयोध्या कांड के समय भी गलत, भड़काऊं और पूर्वाग्रही रिपोर्टिंग के लिए प्रेस काउंसिल ने जागरण की भर्त्सना की थी, लेकिन अखबार ने उससे कुछ नहीं सीखा। पत्रकारिता के इतिहास में जागरण का नाम काले अक्षरों में लिखा जायेगा। एक पत्रकार के रूप में वे शर्मिंदा है। जागरण के संपादक को इसके लिए सार्वजनिक रूप से क्षमा मांगनी चाहिए। एडिटर्स गिल्ड और प्रेस काउंसिल को ऐसी खबरों का संज्ञान लेना चाहिये।

इधर रांची के ही एक युवा पत्रकार अखिलेश कुमार सिंह ने दैनिक जागरण द्वारा प्रकाशित घटियास्तर की रिपोर्टिंग पर भीष्म प्रतिज्ञा ली कि वह पत्रकार है। वह शपथ लेता है कि जागरण जैसे अखबार में रोजगार के लिए कभी काम नहीं करेगा। कठुआ में नाबालिग के साथ दुष्कर्म की मोटिवेटेड खबर छाप अखबार ने नीचता की हद पार कर दी।

ये कोई पहली बार जागरण ने ऐसा किया हैं, ऐसा नहीं है। इस अखबार का कोई सम्मान नहीं है। आज भी झारखण्ड के कई इलाकों में आदिवासी समुदाय इस अखबार को बहिष्कार किये हुए है। कई स्थानों पर तो इसकी प्रतियां बहुतायत में जलाई गई है। रांची में तो कई आदिवासी युवाओं ने रांची स्थित जागरण कार्यालय में 2 जून 2017 को जाकर उसी के एक कथित बड़े पत्रकार की जमकर क्लास ली, जिसका फेसबुक लाइभ भी किया गया जो आज भी सोशल साइट पर उपलब्ध हैं, जिस पर कई लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

पूरे देश की बात तो मैं नहीं कह सकता पर झारखण्ड में इसकी कोई प्रतिष्ठा नहीं, ये सरकार का मुख पत्र माना जाता है, और जो सीएमओ से उसे आदेश मिलता है, उस आदेश का मनोयोग से यह अखबार पालन करता है, जिसका इनाम भी उसे विज्ञापन के रुप में मिलता  रहता है, जबकि सामान्य जनता के हितों पर इसका कोई ध्यान नहीं रहता तथा दूसरे के इज्जत से खेलने में उसे परम आनन्द की प्राप्ति होती है।