घोर आश्चर्य, एक गवाह का दावा उसे मिल रहा मजीठिया, दूसरे ने कहा उसे मालूम नहीं

झारखण्ड के रांची से प्रकाशित सन्मार्ग के प्रसार प्रबंधक अनिल कुमार ने श्रम न्यायालय में 26 अक्टूबर 2016 को बयान दिया है कि वे 15 दिसम्बर 2010 से सन्मार्ग में काम कर रहे है, तथा उन्हें मजीठिया बेज बोर्ड के आलोक में वेतन मिल रहा हैं। उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा कि उन्हें वर्तमान में सभी प्रकार के भत्तों के साथ कुल 42 हजार रुपये वेतन महीना मिल रहा हैं। मूल वेतन 15,800 रुपये और गृह भत्ता 5,600 रुपये हैं।

इधर सन्मार्ग के स्टेट कार्डिनेटर देवेन्द्र कुमार शर्मा ने श्रम न्यायालय को 4 सितम्बर 2017 को बयान दिया कि वे अक्टूबर 2009 से कार्यरत हैं। उन्हे मजीठिया वेज बोर्ड का वेतन नहीं मिल रहा है, और इसकी जानकारी भी उन्हें नहीं हैं, तथा वेतन नकद लेते हैं। अन्य कर्मचारियों की जानकारी नहीं हैं। ये दोनों पदाधिकारी उस मामले में अपना बयान दर्ज करा रहे थे, जिसमें सन्मार्ग में ही कार्यरत पूर्व कर्मी पत्रकार सुनील कुमार सिंह ने श्रम न्यायालय में एक शिकायतवाद दर्ज कराया था।

कमाल हैं, संस्थान एक। एक को मजीठिया और दूसरे को मजीठिया नहीं। क्या एक ही संस्थान में एक जिम्मेदार पदाधिकारी को मजीठिया वेज से भुगतान और दूसरे को अन्य प्रकार से भुगतान संभव हैं। सर्वप्रथम ये मामला सन्मार्ग में कार्यरत एक पत्रकार सुनील कुमार सिंह ने तब उठाया, जब उन्होंने अपना हक मांगने को की कोशिश की और ऐसा देख सन्मार्ग प्रबंधन ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया था, बाद में वे श्रम न्यायालय में गये, और वहां अपनी समस्याएं रखी। श्रम न्यायालय में चार साल तक मामला चला और बाद में कोर्ट ने दिसम्बर में उनकी याचिका खारिज कर दी।

इसी बीच सुनील कुमार सिंह के श्रम न्यायालय में किये गये केस के दौरान सन्मार्ग प्रबंधन ने दो गवाहों को अपनी ओर से प्रस्तुत किया, जिसमें एक गवाह ने बताया कि उसे मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन मिलता है, जबकि दूसरे ने कहा कि मजीठिया वेज बोर्ड से भुगतान नहीं होता। अब सवाल उठता है कि किन परिस्थितियों में सन्मार्ग प्रबंधन की ओर से गवाहों ने श्रम न्यायालय के समक्ष झूठ बोला।

इधर पिछले 10 जनवरी 2016, 2 मार्च 2017, 30.03.2017 और 08 जून 2017 को यहां कार्यरत पत्रकारों एवं अन्य कर्मचारियों ने भविष्य निधि, ईएसआई तथा वेतनवृद्धि को लेकर मीटिंग की तथा अपनी मांगे प्रबंधन के समक्ष रखी, पर अभी भी इन पत्रकारों एवं कर्मचारियों को ये सुविधा स्थानीय प्रबंधन ने नहीं दी हैं, और जब इस संबंध में श्रमायुक्त से पत्र गया तो उन सभी से दबाव देकर एक पत्र पर हस्ताक्षर करा लिये गये, कि उन्हें सारी सुविधा प्रदान कर दी गई है और प्रबंधन ने इन लोगों से लिखित बधाईयां भी ले ली, पर सूत्र बताते है कि आज तक इन कर्मचारियों को वह सुविधा प्राप्त नही हुई हैं, और वे हार-पछता कर काम करने को विवश है।

इधर इस संबंध में विद्रोही24.कॉम ने इसी सन्मार्ग में कार्यरत रहे वरिष्ठ पत्रकार नवल किशोर सिंह से बातचीत की, तब उनका कहना था कि जिनके लिए वे संघर्ष कर रहे थे, उन्हीं लोगों ने उन्हें साथ नहीं दिया, उनकी मजबूरियों को हम समझ सकते हैं? इधर जिन-जिन पत्रकारों के कानों में ये बात गई है कि सन्मार्ग मे कार्यरत एक अधिकारी ने श्रम न्यायालय को लिखित गवाही दी है कि उन्हें मजीठिया मिलता है, ये सुनकर आश्चर्य में पड़ गये हैं, क्योंकि मजीठिया वेज पूरे झारखण्ड क्या? पूरे भारत में गिने-चुने अखबारों में ही मिल रहा हैं, झारखण्ड में तो किसी अखबार व चैनल में लागू नहीं है?