अपनी बात

तो क्या बिना विमर्श के ही खाद्यान्न वितरण में डीबीटी लागू कर दिया रघुवर सरकार ने?

राज्य के खाद्य, सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामले विभाग के मंत्री सरयू राय ने अपने ही विभागीय सचिव विनय कुमार चौबे को खाद्यान्न वितरण में डीबीटी के अध्ययन पर विचार करने और इस संबंध में 10 अक्टूबर को विमर्श करने के लिए पत्र लिखा है। विमर्श का मूल कारण है खाद्यान्न वितरण में डीबीटी लागू करने के बाद उठ रही आशंकाओं पर। ये आशंकाएं ऐसे ही नहीं उभरी है।

मंत्री सरयू राय का कहना है कि सर्वप्रथम इस प्रकार की योजनाओं को भारत सरकार ने सितम्बर 2015 में तीन केन्द्र शासित प्रदेशों चंडीगढ़, पुड्डुचेरी और दादरा नगर हवेली में प्रारंभ किया था। सितम्बर 2016 में एक वर्ष पूरे हो जाने के बाद, जो इस संबंध में नीति आयोग ने इसका प्रभाव देखने के लिए अध्ययन कराया और जो जनवरी 2017 में नीति आयोग ने इस अध्ययन प्रतिवेदन को सार्वजनिक किया। जिसमें स्पष्ट लिखा है कि अब जब भी कभी डीबीटी किसी राज्य में लागू किया जाय, तो जो कठिनाइयां संभावित है, उन कठिनाइयों से लड़ने के लिए क्या प्लानिंग की गयी है, उस पर विचार करना बहुत ही जरुरी है।

ज्यादातर निजी संस्थाओं का मानना है कि गरीबों को राशन वितरण में डीबीटी ठीक नहीं है। कुछ तो अनाज के बदले नकद को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं मानते। भारतीय जनता पार्टी में ही एक ऐसा वर्ग है, जो इस योजना के शुरु करने पर सवाल उठा चुका है, पर कहा जाता है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास, केवल स्वयं की और फिर अपने कनफूंकवों की ही सुनते है, वे अन्य की बेहतरीन सुझावों को कूड़े में डाल देते हैं।

सूत्र बताते है कि नीति आयोग व केन्द्रीय खाद्य आपूर्ति विभाग द्वारा अध्ययन कराये जाने के बाद पता चला कि 50 प्रतिशत लोगो को या तो कुछ नहीं मिला या फिर उनको कम नकद राशि मिली। 17 प्रतिशत लोगों को ज्यादा रकम मिल गई। चंडीगढ़ और पुड्डुचेरीमें 60 फीसदी नागरिकों ने नकद हस्तांतरण के बजाय राशन दुकानों से अनाज को ही प्राथमिकता दी। झारखण्ड के पड़ोसी राज्य छतीसगढ़ की बात करें तो वहां लगभग 96 प्रतिशत लोगों ने अनाज को ही प्राथमिकता दी।

4 अक्टूबर को नगड़ी में शुरु हुए अनाज के बदले नकद अभियान की कई एनजीओ ने भी कड़ी आलोचना की है। विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों का कहना है कि इससे गरीब परिवारों की खाद्य सुरक्षा पर संकट मंडराना शुरु हो जायेगा और वे फिर स्वयं को बेहतर स्थिति में नहीं रख पायेंगे। कुछ लोगों का मानना है कि इससे पोषण पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। कुछ लोगों का ये भी कहना है कि ज्यादातर ग्रामीण पढ़े-लिखे नहीं हैं, वे बैंकों और राशन दुकानों के चक्कर में वे अपने भोजन के अधिकार से वंचित हो जायेंगे।

अब सवाल उठता है कि जब नीति आयोग और केन्द्रीय खाद्य आपूर्ति विभाग ने जिन कठिनाइयों पर सभी का ध्यान आकृष्ट कराया, उस पर रघुवर सरकार ने क्या विमर्श किया और उन कठिनाइयों से निबटने के लिए, उसकी क्या प्लानिंग है? जब राज्य के खाद्य, सार्वजनिक वितरण, उपभोक्ता मामले मंत्रालय सभाल रहे सरयू राय स्वयं इस अनाज के बदले नकद हस्तांतरण पर सवाल उठा रहे हैं, तब ऐसे में राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास, किन कारणों से सरयू राय के विचारों को जानने की कोशिश नहीं की?  आखिर किस आईएएस अधिकारी के कहने पर भोजन के अधिकार को ही चुनौती दे दी गई और नीति आयोग तथा केन्द्रीय खाद्य आपूर्ति विभाग की चिंता को दरकिनार कर दिया गया?