अपनी बात

बिना फार्म भरे रांची प्रेस क्लब के सदस्य बन गये पद्मश्री बलबीर, शरण, हरिनारायण और नीलू

अगर कोई लड़का बिना मैट्रिक का फार्म भरे, मैट्रिक की परीक्षा पास कर जाये, तो आपको कैसा लगेगा? आप आश्चर्य अवश्य करेंगे, कि भला बिना मैट्रिक का फार्म भरें, कोई मैट्रिक की परीक्षा कैसे पास कर सकता है? ठीक उसी तरह जैसे बिना मैट्रिक का फार्म भरे, कोई लड़का मैट्रिक की परीक्षा पास नहीं कर सकता, वैसे ही कोई भी पत्रकार बिना सदस्यता फार्म भरे, किसी भी संस्थान का सदस्य कैसे बन सकता है?  ये सवाल मैं, इसलिए उठा रहा हूं कि कल ही जो रांची प्रेस क्लब की ओर से जो सदस्यता सूची निकाली गई, उन सदस्यता सूची में पद्मश्री बलबीर दत्त, वी पी शरण, हरिनारायण सिंह और दिलीप श्रीवास्तव नीलू के भी नाम है। ये वे चार लोग हैं, जिन्होंने रांची प्रेस क्लब की सदस्यता के लिए फार्म ही नहीं भरा था।

जिन कोर कमेटी के लोगों ने सदस्यता फार्म की जांच की थी, उनमें से कई लोगों जैसे – वरिष्ठ पत्रकार गिरिजा शंकर ओझा और वरिष्ठ पत्रकार किसलय ने विद्रोही 24. कॉम को बताया कि सदस्यता फार्म की जांच के दौरान, उन्होंने इन चारों के नाम के फार्म नहीं देखे थे, क्योंकि इन चारों ने 10 नवम्बर तक सदस्यता के लिए अपना फार्म नहीं जमा कराया था, जबकि फार्म जमा करने की अंतिम तिथि 10 नवम्बर, सदस्यता फार्म की जांच की तिथि 17 नवम्बर तथा सदस्यता सूची जारी करने की तिथि 20 नवम्बर तक थी।

बताया जाता है कि जैसे ही सदस्यता फार्म की जांच की तिथि समाप्त हुई और 880 लोगों के नाम की सूची के लिस्ट तैयार हुए तथा जब इन चारों के नाम इस सदस्यता सूची में नहीं दिखाई पड़े, तो कई लोगों के कान खड़ें हो गये, हाथ-पांव ढीले पड़ गये, ये कैसे हो गया?  अध्यक्ष का ही नाम गायब कैसे हो गया?  भला बलबीर दत्त पद्मश्री प्राप्त किये हुए है, उनके बिना सदस्यता सूची कैसे जारी होगी?  यानी जितने लोग, उतने तरीके की बात, पर किसी ने नैतिकता पर ध्यान नहीं दिया, और न ही ध्यान दिया, उन लोगों ने जिनसे नैतिकता की आशा की जा रही थी?

इधर आनन-फानन में 24 नवम्बर को रांची प्रेस क्लब की बैठक बुलाई गई। चारों लोगों के नाम जो छुट गये है, उनको कैसे इस 880 की सूची में घुसाया जाय, दिमाग लगाया गया, और लीजिये चारों लोग जिन्होंने 10 नवम्बर तक फार्म ही नहीं भरे थे, उन्हें अनैतिक तरीके से घुसा दिया गया और देर सायं तक सूची भी जारी कर दी गयी।

अब सवाल उठता है, क्या ये चारों व्यक्ति जिन्होंने स्वयं रांची प्रेस क्लब का बॉयलॉज बनाया, क्या ये स्वयं के द्वारा बनाये गये बॉयलॉज से ऊपर है, ये इन चारों को स्पष्ट करना चाहिए। क्या जिन्हें पद्मश्री की उपाधि राष्ट्रपति द्वारा प्रदान कर दिया जाता है, उन्हें नैतिकता का पालन न करने की छूट दे दी जाती है। क्या देश में ऐसा कोई प्रेस क्लब है, जहां बिना फार्म जमा किये, सदस्य बना दिये जाते है, अगर ऐसा है तो उस स्थान का नाम बताने की कोर कमेटी के लोग कृपा करें।

जो पत्रकार स्वयं नैतिकता का पालन नहीं करता, और अनैतिक तरीके से प्रेस क्लब की सदस्यता ग्रहण करता हो, उससे कैसे आशा की जा सकती है कि वह भविष्य में प्रेस क्लब से जुड़े लोगों के सम्मान की रक्षा करेगा? होना तो ये चाहिए था कि इन्हें उनलोगों का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए था, जो नये हैं, जोशीले है, पत्रकारिता का मार्ग अपना रहे हैं, उनके लिए संघर्ष करना था, पर ये लोग यह न करके, स्वयं के लिए अनैतिक रुप से रांची प्रेस क्लब से जुड़े रहने के लिए मार्ग ढूंढ रहे थे, और जिनसे आशा की जा रही थी कि वे अंत-अंत तक इनका विरोध करेंगे, उन्होंने भी जाकर, उन अधर्मियों के साथ बैठकर झक-झूमर गाने लगे।

सूत्र तो बता रहे है कि जो सदस्यता सूची तैयार की गई है, उनमें भारी गड़बड़ियां है, ऐसे-ऐसे लोगों को कोर कमेटी के मेम्बरों द्वारा सदस्य बना दिया गया है, जो कहीं से भी पत्रकार नहीं है, और जो सही मायनों में पत्रकार हैं, पर कोर कमेटी की आंखों में सूई की तरह चूभते हैं, उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है, यानी जो मेरे नैना का तारा, वहीं सदस्य हमारा का नारा बुलंद करते हुए, इन अनैतिक तरीकों को अपनानेवाले लोगों द्वारा सदस्यता सूची तैयार कर दी गई।

अब चूंकि सदस्यता सूची तैयार हो गई है, और हमें नहीं लगता कि जो गलत तरीके से सदस्य बने हैं, वे नैतिकता के आधार पर या इज्जत जाने के भय से, सत्य का मार्ग अपनायेंगे। इसी से स्पष्ट हो गया कि रांची प्रेस क्लब अपने जन्मकाल से ही भ्रष्ट व अनैतिक तरीका अपनाने का मार्ग स्वयं के लिए प्रशस्त कर लिया है, इसलिए जो ईमान के पक्के हैं, जिन्होंने पत्रकारिता को अपना धर्म समझ रखा है, उनके लिए अब संघर्ष ही एकमात्र रास्ता है, संघर्ष छोड़ना नहीं चाहिए। लड़िए, तब तक लड़िए, जब तक सम्मान के नाम पर, नैतिकता के नाम पर चादर ओढ़नेवालों की यहां से विदाई न हो जाये। सफलता मिलेगी या न मिलेगी, यह हमारे हाथ में नहीं हैं, पर संघर्ष करना हमारे हाथ में हैं।