जय शाह मामले पर भाजपा की नींद उड़ी, इधर कौवा, कौवे का मांस खाने को तैयार

वायर वेबसाइट ने भाजपाइयों की नींद उड़ा दी है। उक्त वेबसाइट में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जयशाह के खिलाफ प्रकाशित खबर ने पूरे देश में राजनीतिक भूचाल ला दी है। भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों के नेताओं के आ रहे बयान से भाजपा को लगता है कि भाजपा के लिए गुजरात में राजनीतिक संकट पैदा हो सकता है, इसलिए जयशाह ने वायर वेबसाइट के मालिक और समाचार लेखिका के खिलाफ 100 करोड़ रुपये के मानहानि का मुकदमा ठोकने का ऐलान किया है।

इधर कांग्रेस के बड़े नेताओं और वामपंथी नेताओं के भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और उनके बेटे जय शाह के खिलाफ आ रहे बयान से भाजपा के नेता घबरा गये हैं। घबराहट का ही परिणाम है कि देश के विभिन्न राज्यों के भाजपा मुख्यालयों में प्रेस कांफ्रेस आयोजित हो रहे है। झारखण्ड के रांची में भी इस मुद्दे पर नगर विकास मंत्री सी पी सिंह और भाजपा सांसद महेश पोद्दार ने प्रेस कांफ्रेस आयोजित कर इस पूरे मामले में भाजपा का पक्ष रखा और इस पूरे प्रकरण पर सफाई दी।

 

इन दोनों नेताओँ ने इस पूरे समाचार को भ्रामक और बेबुनियाद बताया। इनका यह भी कहना था कि चूंकि गुजरात में विधानसभा चुनाव होने को हैं, इसलिए विपक्षी नेताओं और उक्त वेबसाइट ने इसे मुद्दा बनाया है। जिसे लेकर जय शाह ने कानून का जो सहारा लेने की कोशिश की है, वह कतई गलत नहीं है। इन दोनों नेताओं ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पर विपक्षी नेताओं द्वारा हो रहे प्रहार की भी तीखी आलोचना की।

दूसरी ओर जय शाह मामले में, आज अखबारों की संदिग्धता भी उजागर हुई। ज्यादातर अखबारों ने इस प्रकार से खबरों को लगाया है, जिससे लगता है कि प्रथम दृष्टया वायर वेबसाइट ही दोषी हैं। ज्यादातर अखबारों ने वायर ने क्या समाचार प्रकाशित किया, इसे प्रमुखता नहीं दी, बल्कि जयशाह ने 100 करोड़ का मानहानि की मुकदमा ठोकी, इसे ही प्रमुखता प्रदान कर दी।

आमतौर पर ऐसे मामले में, अगर आप किसी का पक्ष नहीं ले सकते तो कम से कम न्यूट्रल तो जरुर रह सकते हैं, पर यहां निष्पक्षता का घोर अभाव देखा गया। यहां के तथाकथित अखबारों ने इस प्रकार से समाचार को प्रकाशित किया, जैसे लगता हो कि वायर ने यह खबर डालकर बहुत बड़ी गलती कर दी, जबकि कई बुद्धिजीवियों का मानना है कि वायर की पत्रकारिता पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता, रही बात मानहानि के मुकदमें की तो कोई भी व्यक्ति, जिसे लगता है कि उसके साथ गलत हुआ, वह स्वतंत्र हैं, अदालत जाने को, पर इतना उसे भी मालूम होना चाहिए कि अदालत वहां भी सत्य को ही प्रतिष्ठित करेगी, पर यहां अखबारों की भूमिका हमेशा की तरह संदिग्ध ही रही, कहा जाता है कि कौवा, कौवे की मांस नहीं खाता, पर यहां तो कौवा, कौवे की मांस खाने को बेकरार दिखा।