अपनी बात

कभी रोटी बैंक का संस्थापक पं. रामदेव को बतानेवाला प्रभात खबर अब विजय पाठक का नाम क्यों जप रहा, सामाजिक सहयोग से चलनेवाले कार्य का श्रेय एक व्यक्ति-विशेष को क्यों?

दिनांक 10 अप्रैल 2017, प्रभात खबर डिजिटल देखिये। आप गुगुल में सर्च करेंगे। आपको मिल जायेगा। आपकी सुविधा के लिए हमने इस पर भी उसके फोटो शॉट डाल दिये हैं। राजभवन में काम करनेवाले बड़े-बड़े अधिकारियों से अनुरोध हैं कि इस खबर या गुगुल में सर्च करके उस खबर को निकाल कर राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन के समक्ष भी रख दें ताकि राज्यपाल को भी पता लग जाये कि प्रभात खबर कितना निष्पक्ष हैं और कैसे-कैसे लोगों को झारखण्ड गौरव सम्मान उनके हाथों से दिलवा दिया है।

ठीक इसी प्रकार का अनुरोध झारखण्ड विधानसभा में कार्यरत अधिकारियों से भी कि वे भी ऐसा करें और झारखण्ड विधानसभाध्यक्ष रबीन्द्र नाथ महतो तक पहुंचा दें ताकि उन्हें भी पता चलें कि प्रभात खबर उनके हाथों से कैसे-कैसे लोगों को सम्मान दिलवा दिया। दरअसल ऐसे लोग सम्मान के हकदार ही नहीं हैं, जो समाज से सहयोग भी लें और फिर बाद में ये कहें कि वो यह काम खुद के पैसे से कर रहा है और अखबार सब कुछ जानते हुए, झूठ को सच और सच को झूठ में परिवर्तित कर गलत को प्रतिष्ठित कर दें।

ऐसा करने से निश्चय ही समाज में रह रहे उन प्रतिष्ठित व्यक्तियों को आघात लगता है, जो समाज को नई दिशा दे रहे होते हैं, क्योंकि इस प्रकार के कार्यक्रम को देखने के बाद तो उन्हें यही लगता है कि सही काम कर रहा हैं कोई और, तथा उसका श्रेय ले जा रहा हैं कोई और? आखिर ऐसा करने से प्रभात खबर के लोगों को क्या मिलता है, भगवान जाने?

अगर आपने विद्रोही24 में कल छपी खबर “प्रभात खबर ने ऐसे व्यक्ति को राज्यपाल और स्पीकर के हाथों झारखण्ड गौरव सम्मान दिलवा दिया, जो उसके योग्य है ही नहीं, संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को ऐसे कार्यक्रमों से बचना चाहिए” पढ़ा है तो ये खबर आपको पढ़ना जरुरी है, और अगर नहीं पढ़ा है, तो पहले आप कल की लिखी खबर पढ़ लें तो आपको इसे समझने में और आसानी होगी।

जब खबर लिखने के बाद पं. रामदेव पांडेय से विद्रोही24 ने दुबारा बातचीत की, तो उनका कहना था कि कभी प्रभात खबर ने भी रोटी बैंक चलाने के लिए, अपने अखबार में उनकी प्रशंसा करते हुए खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था, पर कल वो कैसे भूल कर बैठा, समझ नहीं आ रहा। रोटी बैंक की स्थापना विजय पाठक ने कभी की ही नहीं, वो तो उनके द्वारा चलाया जा रहा रोटी बैंक ही लपक लिया, क्यों लपका, मैंने कल ही आपको बता दिया था।

दूसरी बात रोटी बैंक वो अपने खर्च पर नहीं चलाता, बल्कि सामाजिक सहयोग से चलता है, ये पूरा रांची जानता है। उन्होंने यह भी कहा कि मालूम तो प्रभात खबर को भी हैं, पर किसके कहने पर प्रभात खबर ने तिकड़म लगाकर उसको राज्यपाल व विधानसभाध्यक्ष से सम्मान दिलवा दिया, उसको इससे क्या फायदा मिला, भगवान जाने।

अब प्रभात खबर ने 10 अप्रैल 2017 को क्या लिखा। आप स्वयं देखिये और पढ़िये … हेडिंग था – घर जैसा स्वादिष्ट रहता है रोटी-कपड़ा बैंक का भोजन। सब हेडिंग था – रिम्स में मुफ्त भोजन बांटते हैं पंडित रामदेव। रिम्स के गेट नंबर एक के पास रोज लगी रहती है लाइन, इंतजार करते हैं लोग। रोज रात के आठ बजे से नौ बजे तक रिम्स परिसर में बंटता है खाना। इसके बाद समाचार विस्तार से दिया गया था।

रांचीः रात के आठ बज रहे हैं। रिम्स के गेट नंबर-एक के पास काफी भीड़ लगी है। यहां खड़े लोगों की निगाहें गेट के पास टिकी हुई है। पूछने पर कतार में खड़े कुछ लोगों ने बताया कि हमलोगों के बीच बंटने के लिए खाना आ रहा है। थोड़ी देर बाद कुछ लोग वहां दो पहिया वाहन से पहुंचते है। वाहन आते ही लोग कतारबद्ध होकर खड़े हो जाते है। इसके बाद शुरु हो जाता है खाना बांटने का सिलसिला। यह कतार वैसे लोगों की है, जो मरीज का इलाज कराने दूर-दराज गांवों से आये हैं। यहां ये लोग खाना खाते भी हैं और मरीज के लिए ले भी जाते हैं।

भोजन का मैन्यू बदलता रहता है। कभी खिचड़ी, कभी रोटी-सब्जी, कभी दाल-भात आदि दिये जाते हैं। यहां पंडित रामदेव द्वारा मुफ्त में भोजन बांटा जाता है। भोजन बांटने का कार्य उनका बेटा मंगल व भतीजा धनराज करता है। पंडित रामदेव का मरीजों के परिजनों के साथ एक रिश्ता बन गया है। पंडित रामदेव के रोटी-कपड़ा बैंक को रिम्स में सभी लोग जानते-पहचानते हैं।

फोन भी करते है। यदि भोजन लाने में थोड़ी देर हो जाये, तो लोग फोन भी कर देते हैं। यही नहीं, यदि एक ही तरह का भोजन आने लगता है, तो लोग मैन्यू बदलने की भी मांग करते हैं। घर में बनाते हैं भोजनः रांची में रोटी-कपड़ा बैंक की शुरुआत पंडित रामदेव पांडेय ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर की है। ये अपने घर पर शुद्ध शाकाहारी भोजन बनवाते है। इसमें लहसुन, प्याज, बैगन, मसूर दाल नहीं डाला जाता है। पंडित रामदेव पहले इस भोजन को स्वयं के मंदिर में भोग लगाते हैं। इसके बाद रिम्स में भोजन बांटा जाता है। यह खाना रोगी भी खाते हैं।

आप भी कर सकते हैं सहयोगः आप भी इस कार्य में सहयोग कर सकते हैं। जन्मदिन, पहली नौकरी, स्मृति दिवस आदि पर लोग ऐसा सहयोग कर सकते हैं। पैकेट बंद कच्चा सामान, भोजन व फल भी आकर दे सकते हैं। पूरा परिवार लगा है इस कार्य मेः इस कार्य में पंडित रामदेव समेत उनका परिवार लगा रहता है। उनका बेटा मंगल व भतीजा धनराज भी पूरे तन-मन से इस कार्य में लगा रहता है। इनका कहना है कि गरीबों की सेवा करने से संतुष्टि मिलती है।

क्या कहते हैं पंडित रामदेवः पंडित रामदेव कहते हैं कि चूंकि रिम्स में कई लोग ऐसे आते हैं, जिन्हें भोजन नहीं मिलता है। रात आठ बजे के बाद यहां के होटलों में खाना नहीं मिलता है। 19 जनवरी से हमने यह कार्य शुरु किया है। कुछ विशेष दिनों में खास खाना भी देते हैं। कपड़े भी देते हैं। मेरा प्रयास रहता है कि कोई भी व्यक्ति भूखा न जाये।

गढ़वा के कमलेश प्रजापति का बयान – खाना काफी अच्छा रहता है। एकदम घर जैसा। परिजन का इलाज कराने के लिए कई दिनों से रिम्स में हैं। रात में खाना नहीं मिलता था। किसी से पता चला कि यहां रोज आठ बजे खाना मिलता है, तो हम समय से चले आते हैं। गढ़वा की शारदा देवी कहती है – मैं गढ़वा से आयी हूं। पता चला कि यहां खाना बंटता है। खाना काफी स्वादिष्ट रहता है। हम रोज समय से खाना लेने आ जाते हैं। रोज अलग-अलग तरह का खाना मिलता है।