अपनी बात

जो दलबदलू मामले को लटका दिया, वो विक्रमादित्य आयोग की अनुशंसा लागू करेगा?

जो व्यक्ति दलबदलू विधायकों को साढ़े तीन सालों में सजा तक नहीं दिला सका, आज भी उन्हें बचाने के लिए तथा सरकार को जीवन दान दिलाने के लिए अपनी ओर से हरसंभव प्रयास कर रहा है, भला हम या यहां की जनता कैसे विश्वास कर लें कि वो जस्टिस विक्रमादित्य आयोग की अनुशंसा को लागू कराने के लिए ईमानदारी से प्रयास करेगा?

ज्ञातव्य है कि झारखण्ड भारत का सबसे निराला राज्य है। यहां सत्ता के सर्वोच्च या महत्वपूर्ण शिखर पर बैठा कौन सा नेता क्या बोल देगा और क्या कर देगा? आप उस पर विश्वास नहीं कर सकते। ज्ञातव्य है कि झारखण्ड विधानसभा में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति पदस्थापित हैं, इस पदस्थापना/प्रोन्नति के खेल में झारखण्ड विधानसभा के प्रथम विधानसभाध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी, कांग्रेस पार्टी के आलमगीर आलम और झामुमो के शशांक शेखर भोक्ता तक दोषी हैं।

जब झारखण्ड विधानसभा में नियुक्ति और प्रोन्नति को लेकर बवाल हुआ तो तत्कालीन राज्यपाल ने इस नियुक्ति घोटाले को लेकर सेवानिवृत्त न्यायाधीश लोकनाथ प्रसाद की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया, जैसे ही इस आयोग ने अपना काम शुरु किया, किसी ने इन्हें सहयोग देना जरुरी नहीं समझा, नतीजा इन्होंने इस आयोग से स्वयं को अलग कर लिया, त्याग पत्र दे दिया, और फिर जस्टिस विक्रमादित्य की अध्यक्षता में नये सिरे से आयोग का गठन हुआ, जिसने अपनी रिपोर्ट कब की सौंप दी, पर इसे जिन्हें जमीन पर उतारना हैं, वे इसे उतारने में हिचकिचा रहे हैं, ऐसा क्यों हो रहा है, जरा इसे समझने की जरुरत हैं।

जस्टिस विक्रमादित्य ने झारखण्ड विधानसभा में गलत ढंग से नियुक्तियों/प्रोन्नतियों के लिए पूर्व विधानसभाध्यक्षों को जिम्मेवार ठहराते हुए, बहाल कर्मचारियों/अधिकारियों को बर्खास्त करने, उनसे वसूली करने की अनुशंसा कर दी है, जबकि दोषी स्पीकरों के खिलाफ भी कार्रवाई की अनुशंसा कर दी हैं, ऐसे में क्या झारखण्ड विधानसभाध्यक्ष दिनेश उरांव जस्टिस विक्रमादित्य आयोग द्वारा की गई अनुशंसाओं को कब और कैसे लागू करेंगे, उसे अक्षरशः जमीन पर कैसे उतारेंगे या वे इसे भी आगामी विधानसभा चुनाव 2019 तक खींच कर ले जायेंगे, जैसा कि वे दलबदलू विधायकों के मामले में कर रहे हैं, अगर ऐसा होता हैं तो समझ लीजिये ये भी एक रिकार्ड ही होगा, झारखण्ड विधानसभा के लिए। अंततः अगर आप किसी आयोग की अनुंशसाओं को लागू नहीं करवा पाते तो ऐसे आयोग के गठन की आवश्यकता ही क्यों? बंद करिये, ऐसे लफ्फाजी कार्यों को, इससे जनता स्वयं को ठगा हुआ महसूस करती है, क्योंकि जब भ्रष्टाचारियों को बचाना ही हैं तो फिर बेवजह के आयोगों के गठन और उस पर बेतहाशा खर्च क्यों? जब परिणाम सभी को मालूम हैं।

हालांकि रांची से प्रकाशित एक अखबार ने इस बात को प्रकाशित किया है कि राज्यपाल द्रौपदी मूर्मु ने विधानसभाध्यक्ष दिनेश उरांव को अपने यहां बुलाकर, जस्टिस विक्रमादित्य आयोग के रिपोर्ट के हवाले से सवाल पूछा है कि वे आयोग की अनुशंसाओं का कैसे अनुपालन करेंगे, अगर अनुपालन में कोई दिक्कत या अड़चन हो तो, उन्हें बताएं। राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के इस सवाल से जहां आम जनता में एक आशा की किरण का संचार हुआ हैं, वहीं स्पीकर दिनेश उरांव, जस्टिस विक्रमादित्य आयोग की अनुशंसाओं को लागू कर पायेंगे, इस पर आज भी जनता को संशय हैं, और इस संशय के जन्मदाता, कोई दुसरा नहीं, बल्कि स्वयं स्पीकर ही है।