कोरोना का जब भी इतिहास लिखा जायेगा, हेमन्त सोरेन व झारखण्ड की चर्चा के बिना वह इतिहास अधूरा रहेगा

कभी भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान इलाहाबाद में कहा था कि अगर विकास देखना है तो झारखण्ड जाइये। शायद उनका मानना था कि तत्कालीन झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने राज्य में विकास की नदियां बहा दी है, पर सच्चाई क्या था? वह झारखण्ड की जनता जानती थी, शायद यही कारण रहा कि जब झारखण्ड की जनता को जनादेश देने का समय आया, तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चहेते रघुवर दास की राजनीतिक कैरियर पर ही सदा के लिए, उसने विराम लगा दिया।

यह तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वक्तव्य था, अपने चहेते के लिए, पर आज राज्य की जनता जब राज्य में मुख्यमंत्री का पद हेमन्त सोरेन को दे चुकी है और हेमन्त सोरेन ने जिस प्रकार से राज्य की जनता की सेवा में खुद को लगा दिया, आज राज्य की जनता खुद कह रही हैं कि श्रम और श्रमिकों का सम्मान कैसे किया जाता हैं, यह देखना हो तो देर मत करिये, झारखण्ड पहुंचिये।

जहां का मुख्यमंत्री स्वयं श्रमिकों का सम्मान करने के लिए रेलवे स्टेशन व एयरपोर्ट तक पहुंच जाता है, वह स्वयं श्रमिकों से बात करता है कि आपको कही रास्ते में तकलीफ तो नहीं हुई, और मुख्यमंत्री द्वारा किये जा रहे स्वागत व आवभगत को देखते ही, जहां दूसरे राज्यों से आनेवाले श्रमिकों के आंखों में आंसू छलक जाते हो, यह दृश्य देखना है,तो आपको झारखण्ड आना ही होगा।

यह मुख्यमंत्री कोरोना से भी नहीं डरता, क्योंकि वो जानता है कि एक जनप्रतिनिधि को विपरीत परिस्थितियों में कैसे जनता की सेवा करनी है, जबकि इसी राज्य में स्वयं को आदिवासी कहलवानेवाला तथा केन्द्र में महत्वपूर्ण पद प्राप्त करनेवाला व्यक्ति भी मंत्री पद संभाल रहा हैं, जरा पूछिये उससे कि झारखण्ड के किस कोने में, कहां पर आपके दर्शन हो रहे हैं, या अब तक आपने क्या किया है? जवाब नहीं मिलेगा, सच्चाई यह है कि ये लोग कोरोना से खुद इतने डरे है कि ये जनता की सेवा क्या करेंगे?

आज देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि देश में सिर्फ झारखण्ड ही एक ऐसा राज्य हैं, जहां का श्रमिक प्लेन से अपने राज्य पहुंच रहा है, जहां सबसे पहले श्रमिक रेल द्वारा अपने राज्य पहुंचे, जहां श्रमिकों का स्वागत करने के लिए अधिकारियों का दल, स्टेशनों/एयरपोर्टों पर पहुंचा हुआ था और सभी मजदूरों के हाथों में बूके व खाने-पीने के सामान हाथों में मौजूद थे।

यहीं नहीं चाहे लेह-लद्दाख में ठंड से ठिठुरते श्रमिक हो या भीषण गर्मी से तड़पते हैदराबाद के श्रमिक हो, चाहे मुंबई हो या बेंगलूरु हो, सबकी इस व्यक्ति ने सुध ली और सबको यथासंभव सम्मान दिया, यही कारण रहा कि आज सर्वत्र दो शब्द सबके जुबान पर हैं, एक हेमन्त जिसने राज्य के श्रमिकों को सम्मान के साथ अपने राज्य में लाने का काम किया, और दूसरा झारखण्ड जिस राज्य में श्रम एवं श्रमिक की महत्ता को पहली बार पहचाना गया, जो इतिहास बन गया। हमारा मानना है कि जब भी कोरोना का इतिहास लिखा जायेगा, तो हेमन्त सोरेन बरबस याद आ जायेंगे, क्योंकि इनके बिना इतिहास अधुरा रहेगा।