अपनी बात

जो कुछ नहीं करता वह मुर्तियां बनाने और खुद के प्रचार में लगा रहता हैं और जो देश बनाते हैं…

आज सरदार पटेल जिंदा होते, तो हम उनसे जरुर पूछते कि सरदार पटेल जी आपने अपनी जिंदगी में कितनी मूर्तियां बनाई और अपने प्रचार-प्रसार पर कितनी राशियां खर्च की? पर अफसोस वे अब इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए हमारे पास कभी नहीं आयेंगे, पर जहां तक हमें जानकारी है, कि उनके पास मूर्तियां बनाने और उसे स्थापित करने का समय ही कहां था, उनका तो ज्यादा समय किसानों की मदद करने, स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने और आजादी के बाद देसी रियासतों के विलयन में ही चला गया।

इसमें कहां कोई शक है कि सरदार पटेल एक निर्विवाद नेता रहे, सरदार पटेल तो आज भी राष्ट्रवादियों के हृदय में धड़कते हैं, जिन्होंने भारतीयता को प्रखरता से रखा, धर्म के मूल स्वरुप को पहचाना और अपने जीवनकाल में ही सोमनाथ मंदिर का उद्धार करने के लिए जो प्रण किया, उसे जमीन पर उतारने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी। जिसके पीछे मूल उद्देश्य सिर्फ यही था कि बरसो से जो इस सोमनाथ मंदिर को लेकर भारतीयों पर जो दाग लगे हैं, उन दागों को धो दिया जाय, और उन्होंने ऐसा करने में प्रमुख भूमिका निभाई।

जिसमें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु का कोई सहयोग नहीं मिला, क्योंकि पं. नेहरु की नजरों में सोमनाथ मंदिर सिर्फ एक सामान्य मंदिर था, पर सरदार पटेल की नजरों में इस मंदिर पर विदेशी आक्रमणकारियों के दाग दिखाई देते थे, और उन्होंने इस दाग को धोने में प्रमुख भूमिका भी निभाई, जिसमें उनका भरपूर सहयोग भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने दिया।

इसी सोमनाथ मंदिर के नव-निर्माण के दौरान भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने, देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु को धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा सिखाई ही नहीं, बल्कि मूल पाठ भी पढ़ाया था। डा. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था कि धर्म निरपेक्षता का मतलब यह भी नहीं कि हम अपने जड़ से कट जाये।

आज एक बार फिर सरदार पटेल पुनः चर्चा में है, क्योंकि गुजरात की पृष्ठभूमि से आया एक व्यक्ति नरेन्द्र मोदी जो फिलहाल भारत का प्रधानमंत्री है, उसने सरदार पटेल की 182 मीटर ऊंची आदमकद प्रतिमा को गुजरात में नर्मदा नदी के किनारे स्थापित कराया है, जिसका उद्घाटन वे आज करेंगे। इस प्रतिमा का नाम दिया गया है – स्टैच्यू ऑफ यूनिटी।

सूत्र बताते है कि इस मूर्ति का निर्माण राम वी सुतार की देखरेख में संपन्न किया गया है, और यही राम वी सुतार मुबंई में लगनेवाली शिवाजी की प्रतिमा की डिजाइन भी तैयार करने में जुट गये हैं, और महाराष्ट्र सरकार की माने तो यह प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को भी पीछे छोड़ देगी, यानी हमारे देश में मूर्तियों के बीच एक प्रतियोगिता की लगभग शुरुआत हो चुकी हैं, और देश के करोड़ों नागरिकों के टैक्स के रुप में आया पैसा इस प्रकार की प्रतिमाओं में फूंकने का काम अब केन्द्र और राज्यों की सरकारें करेंगी।

हम आपको बता दे कि स्टैच्यू आफ यूनिटी के निर्माण में करीब 2989 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लार्सन एंड टूब्रो कंपनी की माने तो इस प्रतिमा पर कांसे की परत चढ़ाने को छोड़कर, सारा काम देश में ही हुआ है। यह प्रतिमा निर्माण की आधारशिला खुद नरेन्द्र मोदी ने 31 अक्टूबर 2013 को रखी थी, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे और अब चूंकि वे प्रधानमंत्री है, उन्होंने इसे पूरा कर, अपने मन की कर ली।

अब सवाल उठता है, देश के स्वघोषित एकमात्र कर्मशील प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से, सरदार पटेल की सबसे ऊंची प्रतिमा स्थापित करनेवाले व्यक्ति से, कि सरदार पटेल ने तो सोमनाथ मंदिर का उद्धार इसलिये कराया था, कि उन्हें इसमें विदेशी आक्रांताओं के चिह्न दिखाई पड़ते थे, उसे वे मिटाकर एक नये भारत के निर्माण की आधारशिला उन्होंने रखनी चाही थी, जिसमें उन्हें देश के गौरवशाली राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद का सहयोग भी मिला।

पर, क्या बता सकते है कि जिस पार्टी से आप आते हैं, उसी भारतीय जनता पार्टी ने करीब सत्तर वर्षों से अयोध्या में मुगल आक्रमणकारी बाबर द्वारा विध्वंस किये गये राममंदिर के स्थान पर भव्य राम मंदिर निर्माण का सपना आम जनता को दिखाती रही, आज आपकी ही पार्टी की सरकार उत्तर प्रदेश और आप केन्द्र में मौजूद है, आप ये भी नहीं कह सकते, कि आप अल्पमत में हैं, और आप किसी पार्टी के रहमोकरम पर सरकार चला रहे हैं, आपने अयोध्या में राममंदिर बनाने के लिए कौन से कदम उठाए, अरे छोड़िये कदम उठाने को, चुनाव में तो उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत कई स्थानों पर चुनावी रैलियां कर डाली, अयोध्या में रामलला का दर्शन करने कितनी बार पहुंचे?  

अरे यहीं आपकी हरकत बता देती है कि आपके दिल के अंदर क्या चल रही है, दरअसल न तो आपको राम से प्यार है और न ही आपको देश से प्यार है, आपको तो सिर्फ और सिर्फ अपने नाम और काम से प्यार है और कुछ बचा तो सिर्फ और सिर्फ गुजरातियों से प्यार है, यानी देश के पहले प्रधानमंत्री आप है, जिसे पहले स्थान पर अपना नेम-फेम और दूसरे नंबर पर गुजरात नजर आता है, बाकी देश को तो आप गैस कनेक्शन, मुफ्त भोजन, मुफ्त आवास और विभिन्न प्रकार के सपने दिखाने का ठेका लेकर भिखमंगों की श्रेणी में ला खड़ा किया और गुजरातियों के हाथों में पूरा देश थमाने का काम किया।

हद तो तब हो गई कि चीन के राष्ट्रपति का जब भारत दौरा हुआ तो आपने उन्हें अपने होम स्टेट गुजरात का दौरा करा दिया, बुलेट ट्रेन भी जो चला रहे हैं, वे गुजरात को ही समर्पित है, राफेल का भी सौदा जो आपने किया है, वो गुजरातियों को ही समर्पित किया है, क्या हम भारतवासी इतने मूर्ख है, जो आपके हृदय के भाव को नहीं जानते।

आपने सरदार पटेल की आदमकद विश्व की उंची प्रतिमा बनाकर, कोई देश का उद्धार नहीं किया है, इसमें भी आपकी घोर राजनीति छिपी है, चूंकि आप जानते है कि गांधी भी गुजरात के है, पर गुजरात के पोरबंदर में जन्मे विश्ववंद्य महात्मा गांधी की प्रतिमा बनवायेंगे तो आपके ही पार्टी के अंदर इसका भारी विरोध होगा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों के क्रोधाग्नि के आप शिकार होंगे, दूसरा कांग्रेस को आप औकात बताने चाहते थे।

एक बिहार में लोकोक्ति है – ‘उसी की जूती, उसी का सर’। आपने ये लोकोक्ति चरितार्थ कर दिया, कांग्रेसियों के साथ, जब आपने कांग्रेस पार्टी के शीर्षस्थ और दिवंगत नेता सरदार पटेल को अपनाकर, हाथों-हाथ उन्हें कांग्रेस से यह कहकर छीन लिया कि कांग्रेसियों ने सरदार पटेल को वो सम्मान कभी नहीं दिया, जिसके वे हकदार है, पर सच्चाई यह भी है कि आप अपने ही जीवित नेता लालकृष्ण आडवाणी और डा. मुरली मनोहर जोशी को सम्मान नहीं देते तो आप अन्य को क्या सम्मान देंगे? आप कह सकते है कि हमने अपने प्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी को मरणोपरांत ऐसा सम्मान दिया कि उनके शव के राख को पूरे देश में पीतल के कलशों में भेजा, क्या ये सम्मान नहीं था?

तो मेरा साफ कहना है कि प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद जैसे ही अटल बिहारी वाजपेयी गंभीर बीमारियों के शिकार हुए, आपके राहों का एक बड़ा कांटा आराम से खुद-ब-खुद निकल गया, नहीं तो इसमें कोई दो मत नहीं कि अगर अटल बिहारी वाजपेयी जीवित होते तो उनकी भी हालत लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की तरह होती, पूर्व में यहीं हालात कभी बलराज मधोक और मदन लाल खुराना के भी हुए थे, इसलिए कांग्रेस पर ये ब्लेम लगाना कि उसने सरदार पटेल को नजरंदाज किया, पूर्णतः गलत है, ऐसे भी ‘जिनके घर शीशे के हो, वे दूसरों के घर पर ढेला नहीं मारते’।

इसमें कोई दो मत नहीं कि आप राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी हो चुके हैं, आपके सामने राहुल गांधी का टिक पाना संभव भी नहीं, क्योंकि जो तिकड़म आप जानते हैं, वो कोई नही जान सकता, आप तो ऐसा गेम चलते है कि ‘सांप भी मर जाये और लाठी भी नहीं टूटे’ और इसी के आधार पर आप सब को ठिकाने लगा रहे हैं, पर ये मत भूलिये, इस दुनिया में कई धुरंधर आये और कई धुरंधर चले गये, पर जिंदा वहीं रहा, जिसने सर्वोच्च पद पर जाने के बाद भी घटिया स्तर की राजनीति का शिकार नही हुआ। जिंदा वहीं रहा, जिसने सभी को प्यार किया, प्रांतीयता की आड़ में देश को दांव पर नहीं लगाया, किसी को नीचा दिखाने के लिए पद का दुरुपयोग नहीं किया। हमारा मानना है कि सरदार पटेल की आदमकद प्रतिमा लगाने से कही बेहतर था, कि उनकी सोच को धरातल पर लाया जाता, आप ला भी सकते थे, परंतु हमें लगता है कि ईश्वर ने ये सौभाग्य आपको नहीं सौंपा।

स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि किसी भूखे को धार्मिक आख्यान सुनाना महापाप है, उसे प्रवचन सुनाना महापाप है, भूखों के लिए पहली प्राथमिकता धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि रोटी होता है, भोजन होता है। नंगों के लिए उसकी पहली प्राथमिकता, कपड़ा हैं। भूमिहीनों के लिए उसकी पहली प्राथमिकता घर होता है। ठीक इसी प्रकार, हर व्यक्ति के लिए उसकी पहली प्राथमिकता अलग-अलग है। क्या आप भारत के प्रधानमंत्री पद पर पहुंचने के बाद, कभी चिन्तन किया, कि हम भारतीयों के लिए पहली प्राथमिकता क्या है?  क्या सचमुच हमारी पहली प्राथमिकता 2989 करोड़ रुपये खर्च कर सरदार पटेल की प्रतिमा का अवलोकन करना है, अगर आपकी नजरों में यही सही है, तो आपको ये सब मुबारक।