अपनी बात

क्या बकते हो? साहेबगंज को गंगा पुल की नहीं बल्कि बंदरगाह की जरुरत हैं समझे, चलो अब खुश हो जाओ

2 दिसम्बर 2015 को टेंडर निकलता है। 6 अप्रैल 2017 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी साहेबगंज शिलान्यास करने आते हैं, सभा करते हैं, भाषण में कहते है कि 3 साल में साहेबगंज में गंगानदी पर फोर लेन पुल बनकर तैयार हो जायेगा, जिस मंच से वे भाषण करते हैं, लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हैं, उस मंच के बैकड्रॉप में नया भारत, नया झारखण्ड लिखा है। साथ ही लिखा है झारखण्ड सरकार के बहुआयामी योजनाएं राष्ट्र को समर्पित एवं साहेबगंज में गंगा नदी पर फोरलेन पुल का शिलान्यास।

लोग कहते है कि तीन साल बीत गये, तो टेंडर  स्वीकृत हुआ और ही पुल के लिए एक ईंट तक जोड़ा गया। अरविन्द गुप्ता गंगा पुल निर्माण संघर्ष समिति के संस्थापक और केन्द्रीय अध्यक्ष हैं। आज वे विद्रोही24.कॉम को बताते है कि उनके यहां की प्राथमिकता है गंगापुल। इससे कम उन्हें स्वीकार्य नहीं, क्योंकि जैसे ही गंगापुल बन जायेगा, साहेबगंज का इलाका सीधे बिहार, बंगाल नार्थईस्ट, साथ ही साथ नेपाल, भूटान आदि देशों से जुड़ जायेगा और फिर इस इलाके में विकास की एक नई अध्याय लिखनी शुरु हो जायेगी।

अगर आप भूले नहीं हो, तो आपको याद होगा, इसी शिलान्यास कार्यक्रम में प्रधानमंत्री की सेवासुश्रुषा में, वह भी सवा घंटे के कार्यक्रम में नौ करोड़ फूंक डाले गये थे, जिस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने सवाल उठा दिये थे, जिस पर राज्य सरकार की छीछालेदर भी हुई थी। कल यानी 12 सितम्बर को फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रहे हैं, वे इस बार साहेबगंज नहीं जायेंगे, रांची से ही सारा काम कर लेंगे। वे रांची में नयेनये बने विधानसभा भवन का उद्घाटन करेंगे, साथ ही साहेबगंज में बंदरगाह का ऑनलाइन उद्घाटन करेंगे। भाजपाइयों का कहना है कि इस बंदरगाह से साहेबगंज में क्रांति हो जायेगी, झारखण्ड का साहेबगंज बहुत आगे निकल जायेगा, ऐसा कि जैसे चेन्नई, कोलकाता और मुंबई हो गया।

लेकिन जो साहेबगंज की जनता है, वो जानती है कि यह बंदरगाह किसके लिए बना है और इसका असली फायदा कौन उठायेगा? पर वो बोलने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि वर्तमान में चल रही जो सरकार हैं, वो किसके लिए सोचती है, उसे पता है, आज साहेबगंज की जनता दुखी है, वो पूछना चाहती है, प्रधानमंत्री से। हे प्रधानमंत्री जी बंदरगाह का उद्घाटन करने के लिए ही सिर्फ 6 अप्रैल 2017 को साहेबगंज आये थे क्या? कि और भी कुछ के लिए आये थे? जब और कुछ के लिए आये थे, तो उस गंगा पुल का क्या हुआ? थोड़ा बताइये। कहीं ऐसा तो नहीं कि गंगा पुल के शिलान्यास का बहाना बनाकर साहेबंगज में बंदरगाह बनाना ही मूल मकसद था, ताकि आपको चाहनेवाली बड़ीबड़ी कंपनियां और कारपोरेट जगत के लोग इसका सही फायदा उठा सकें।