अपनी बात

हम ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसन्द नहीं करते, कहनेवालों को आई अक्ल, देवेन्द्र ने दिया इस्तीफा

तीन पहिये की सरकार अपने बोझ तले जब दबेगी तब दबेगी, फिलहाल आपने आधुनिक चाणक्य यानी अमित शाह को तो कही का नहीं छोड़ा, इसे स्वीकार कीजिये। अरे जब बहुमत नहीं हैं, तो तीन-पांच करने की जरुरत क्या है? छोड़ दीजिये उनलोगों के लिए जो तीन-पांच कर, येन-केन-प्रकारेण महाराष्ट्र की सत्ता संभालने के लिए उतावले हैं, क्योंकि जनता भी तो देख लें कि जिन्हें उन्होंने बहुमत दिया, उन्होने अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए कौन-कौन से हथकंडे अपनाएं, पर आपने जनता के बीच उन्हें गिराने के बजाय, खुद ही गिर जाने में ज्यादा दिमाग लगा दी।

नतीजा सामने हैं, जिन्हें आज सर झूका कर खड़ा रहना चाहिए था, आपने उन्हें सर उठा कर खड़ा होने का मौका दे दिया। शरद पवार और कांग्रेस की राजनीति को जाननेवाले क्या ये नहीं जानते कि वे अब तक क्या करते रहे हैं? अरे पहली बार हिन्दुत्व की राजनीति करनेवाली शिव सेना नंगी हो गई, नंगा हो गया, उसका एकबाल, पर आपको उससे क्या मतलब, आपने भी इस बहती गंगा में हाथ धोने का कुत्सित प्रयास किया, और आप बोल नहीं सकते कि आपने सत्ता प्राप्ति के लिए गलत तरीके नहीं अपनाएं।

चलिये आज संविधान दिवस है, संविधान की लाज आपने रख ली, आपने हार्स ट्रेडिंग की जगह इस्तीफे की पेशकश कर दी

ऐसे भी आज संविधान दिवस है, खुशी है कि आपने (महाराष्ट्र के भाजपाई मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस ने) कम से कम आज संविधान की लाज रख ली, और बिना किसी किन्तु-परन्तु के, बिना हार्स ट्रेडिंग को हवा दिये, अपना इस्तीफा सौंपने का ऐलान कर दिया। हालांकि इसके ठीक चार दिन पहले जिस प्रकार से आपने केन्द्र सरकार व राज्यपाल के सहयोग से सत्ता संभाली थी, उससे यही लगा था कि देवेन्द्र फड़णवीस ने सत्ता प्राप्त करने के लिये गलत तरीके का इस्तेमाल किया, जो नहीं होने चाहिए।

ऐसे आप इसे गांठ बांध लीजिये कि जब भी देश में लोकतंत्र की दुहाई दी जायेगी, तो अटल बिहारी वाजपेयी का नाम हमेशा शिखर पर होगा, क्योंकि लोग जानते थे अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार के दौरान बाजार सजी हुई थी, पर सत्ता को बचाने के लिए खरीदार (अटल बिहारी वाजपेयी) उस बाजार में नहीं था, कभी इनकी सरकार एक वोट से भी गिरी है, इसे भी मत भूलिये, पर सत्ता बरकरार रखने के लिए उन्होंने कोई समझौते नहीं किये।

महाराष्ट्र की राजनीति को लेकर चार दिन पहले अमित शाह को आधुनिक चाणक्य कहनेवालों की बोलती हुई बंद

क्योंकि समझौते वहीं करते है, जो कमजोर या स्वार्थी होते हैं, पर जिस प्रकार चार दिन पहले रात के अंधेरे में दिमाग लगाकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रुप में आपने अहले सुबह इंट्री ली, कहने को तो उस दिन अमित शाह को लोगों ने आधुनिक चाणक्य कहकर, खूब उनकी तारीफदारी कर दी, पर विद्रोही24.कॉम के जो नियमित पाठक है, उन्हें पता है कि विद्रोही24.कॉम ने उस दिन क्या लिखा था?

विद्रोही24.कॉम ने उस दिन साफ लिखा था कि (पढ़िये विद्रोही24.कॉम में, 23 नवम्बर को लिखा आर्टिकल – अमित शाह को ‘चाणक्य’ बतानेवालों याद रखो, सत्ता को खाक में मिलाने के लिए चाणक्य ने कभी रात का सहारा नहीं लिया) ये जो भी कुछ हो रहा है, वह भाजपा के लिए ठीक नहीं है, और इससे भाजपा की प्रतिष्ठा धूमिल होगी, क्योंकि येन-केन-प्रकारेण सत्ता को प्राप्त करने की स्थितियां बताती है कि आप रसातल की ओर जाने के लिए पहला कदम बढ़ाया।

सुप्रीम कोर्ट का चला डंडा तो अक्ल आई ठिकाने

चलिये, देर आये दुरुस्त आये, सर्वोच्च न्यायालय ने आपके उपर शिकंजा कसा, आप संभल गये। हालांकि आपको कल तक का समय एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने दिया था, आप जोर-आजमाइश कर सकते थे, फिर भी आपने एक दिन पहले बिना किसी किन्तु-परन्तु के इस्तीफे की घोषणा कर दी, निश्चय ही यह एक सुखद संदेश है, उन सभी के लिए जो भाजपा से प्यार करते हैं, या उनके लिए जिन्हें भारतीय संविधान पर ज्यादा भरोसा है, आपने कम से कम दोनों का सम्मान तो रख लिया पर जो चार दिन पहले गलतियां की, उसके लिए भी अच्छा रहेगा कि आप सार्वजनिक रुप से बिना किन्तु-परन्तु के माफी मांगे, और एक बेहतर विपक्ष की भूमिका में आये।

काश अटल जी के दिखाये रास्ते पर चलते तो ये दिन देखने की नौबत ही नहीं आती

और जब वक्त आये तो वक्त का सम्मान करते हुए सत्ता को प्राप्त कीजिये, लेकिन ईमानदारी के साथ, बिल्कुल अटल बिहारी वाजपेयी की तरह, जिन्होंने कभी संसद में ही शरद पवार को इंगित करते हुए कहा था, हालांकि उस दिन और उस समय शरद पवार अटल बिहारी वाजपेयी के सामने नहीं थे, अटल जी ने कहा था कि हम ऐसी सत्ता को चिमटा से भी छूना पसन्द नहीं करते। आपको भी शरद पवार को ये कहने का मौका मिला था कि मि. शरद पवार हम आपकी तरह ऐसी सत्ता को चिमटा से छूना पसन्द नहीं करते, पर आपने अटल फार्मूले की जगह अमित शाह का फार्मूला लगा दिया और फिर क्या हुआ, आप शरद पवार के सामने बौने हो गये, और उस दिन शरद पवार ही नहीं, बल्कि पूरा विपक्ष अटल बिहारी वाजपेयी के सामने बौना था।