जागिये झारखण्ड के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री, रांची के उपायुक्त, हो सकें तो रेड क्रॉस सोसाइटी की सुधि लीजिये

यह नई ब्लड डोनेशन अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस वातानुकूलित बस है। जो लगभग पांच महीनें से सरकारी बाबुओं की लापरवाही से मामूली सरकारी कागज़ों की वजह से धूल फांक रही है। यह बस की क़ीमत लगभग 90 लाख बताई जाती है, जो शायद दान में दी गई है, वह भी उस प्रतिष्ठित संस्था को जिनके अध्यक्ष ख़ुद एक आईएएस यानि के उपायुक्त है, जिसके संरक्षक राज्यपाल हैं, वह भी भारत की सबसे पुरानी साहसिक- ऐतिहासिक-प्रतिष्ठित और चर्चित संस्था “रेड क्रॉस सोसाईटी” को। ये कहना है लहू बोलेगा संस्था के नदीम खान का।

नदीम खान आगे कहते हैं कि इस देशव्यापी संस्था का ब्रांच लगभग सभी शहरों में मौजूद है। झारखंड की राजधानी रांची के रेड क्रॉस सोसाईटी की स्थिति तो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण-चिंताजनक है। एक तो रांची में जहां रेड क्रॉस सोसाईटी का बड़ा कैंपस में कार्यालय है, उसका सदुपयोग कभी हुआ ही नहीं है। रेड क्रॉस सोसाईटी, रांची का कार्यालय भी झारखंड या रांची की बागडोर संभालने वाले इलाके यानि के सबसे पॉश-प्रशासनिक -राजनैतिक मोराबादी इलाके में है, वह भी उपायुक्त रांची के सरकारी बंगले के निकट है, तब जाकर इसकी यह स्थिति है।

रेड क्रॉस सोसाईटी रांची की अभी की स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण-लापरवाह-ग़ैर जवाबदेह है। एक तो ब्लड डोनेशन बस से ही प्रतीत होती है, दूसरी की यहां रक्तदान शिविर बेहद कम होता है तो स्टॉक में कम ही या नहीं ही रहेगा, तीसरा यह कि यहां रक्तदान निःशुल्क लिया जाता है और जब उसी रक्तदान करने वालों को ब्लड लेना हुआ तो 1200 रुपये में बेचा जाता है, भले ही आप उसे सभ्य भाषा में प्रोसेसिंग चार्ज ही क्यों न बोले।

चौथा की यहां एक ही ब्लड कंपोनेंट (हॉल ब्लड) मिलेगा, बाकी कोई भी ब्लड कंपोनेंट सालों साल से नही है। पांचवा यहां मात्र एक डॉक्टर और एक टेक्निकल स्टाफ़ के सहारे है जबकि नॉन टेक्निकल स्टाफ नौ है। छठां यहां दो पीस चेयर के सहारे रक्तदान होता है। सातवां एक भी प्रचार-प्रसार की सामग्री नहीं, साथ ही रक्तदाता को एक भी गिफ़्ट (कीरिंग, टीशर्ट, टोपी) भूल कर भी नही मिलती। आठवां यहां मनपसंद लोगों को लेकर या बुलाकर सदस्य बनाया जाता है जिनमें न ही ब्लड डोनर और न ही रक्तदान संगठन के लोग शामिल होते है अपवाद छोड़ कर माना जाए, बल्कि मूलभावना के विपरीत।

इन्हीं लोगों को जोड़कर हास्यास्पद तरीके से लोकतांत्रिक चुनाव होता है, जिसमें शायद इसी का नतीज़ा होता है कि 10 सदस्यीय टीम जीतकर आती है और वही होता है जिसकी उम्मीद की जा सकती है, हुआ भी वही कि अधिकतर निर्वाचित लोग सालों पहले ही छोड़ चुके है, कुछ तो कुव्यवस्था को ठीक करने की उम्मीद से नाउम्मीद होने के बाद छोड़ दिए, अब केवल स्टाफ़ जो कि कार्यकारी अध्यक्ष एवं सचिव और वह ख़ुद यहां के स्टाफ़ भी है उनके भरोसे बस चल रहा है।

नदीम खान बड़े ही दुखी मन से कहते हैं कि वे उम्मीद सहित मांग करते हैं कि राज्यपाल, मुख्यमंत्री झारखंड, स्वास्थ्य मंत्री झारखंड और अध्यक्ष उपायुक्त रांची इन सभी मुद्दों पर एवं रेड क्रॉस सोसाईटी एवं झारखंड में रक्तदान पर ध्यान दें, ताकि इसका सही लाभ गरीबों-वंचितों को मिल सकें, नहीं तो ऐसी संस्था से क्या लाभ?