अपनी बात

विद्रोही24 की बातें हुई सच, डुमरी में बेबी देवी जीतीं, CM हेमन्त सोरेन झारखण्ड की राजनीति के सुपर हीरो हुए साबित, BJP के 3-3 EX-CM भी AJSU कैडिंडेट को जीत नहीं दिलवा पाएं

विद्रोही24 ने तो 28 अगस्त को ही ‘डुमरी में केवल टाइगर ही टाइगर दिख रहा, मतलब टाइगर आज भी जिन्दा है, केवल औपचारिकता मात्र बाकी है, जनता ने एक तरह से निर्णय कर लिया है, यहां कोई टक्कर ही नहीं है’ नामक हेडिंग से समाचार प्रकाशित कर दिया था कि डुमरी में झामुमो प्रत्याशी बेबी देवी की जीत सुनिश्चित है।

अगर आप विद्रोही24 के नियमित पाठक है तो आप पांच सितम्बर का भी विद्रोही24 देखिये, जिसमें हमने स्पष्ट रुप से लिख दिया था, हेडिंग थी – ‘डुमरी में चला मुख्यमंत्री का जादू, झामुमो प्रत्याशी बेबी देवी की जीत सुनिश्चित, मात्र औपचारिकता बाकी’ और लीजिये अब परिणाम भी आ गया। डुमरी से झामुमो प्रत्याशी बेबी देवी अपने निकटतम प्रतिद्वंदी एनडीए गठबंधन की आजसू प्रत्याशी यशोदा देवी को पराजित कर चुकी है।

जब टाइगर जगरनाथ महतो के निधन के बाद डुमरी विधानसभा सीट खाली हुई। तभी से विद्रोही24 की नजर उक्त सीट पर गड़ी हुई थी। आम जनता ने एक तरह से प्रण कर लिया था कि इस बार जगरनाथ महतो के नाम पर बेबी देवी को वोट देकर जीता देना है। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतता गया, आजसू ने अपना पांव फैलाना वहां शुरु किया, पर वो पांव अंगद के नहीं थे कि उसे उठाया न जा सकें। डुमरी की जनता के प्रेम और राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के भागीरथी प्रयास ने विपक्षियों की एक न चलने दी और हेमन्त सोरेन ने जीत का स्वाद भी चख लिया। डुमरी की जीत ने एक तरह से सिद्ध कर दिया कि झारखण्ड में अगर कोई राजनीति का सुपर हीरो है तो वो हेमन्त सोरेन ही है, दूसरा कोई नहीं।

हेमन्त सोरेन को झारखण्ड के राजनीति का सुपर हीरो मैंने ऐसे ही नहीं कह दिया। जरा डुमरी विधानसभा के उपचुनाव पर नजर डालिये। आजसू की यशोदा देवी को जीत दिलाने के लिए भाजपा की ओर से तीन-तीन पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, रघुवर दास, एक केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, एक केन्द्रीय राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास, प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी, प्रदेश संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह, प्रदेश महामंत्री आदित्य साहू और आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो जैसे दिग्गज लगे थे, जबकि डुमरी में झामुमो की प्रत्याशी को जिताने के लिए अकेले हेमन्त सोरेन लगे थे, इनके सहयोगी के रुप में इंडिया गठबंधन के अन्य लोग भी थे, पर उन सब की राजनीतिक ताकत डुमरी में कितनी हैं, सभी जानते हैं।

चलिये, जो होना था, वो हो गया, पर क्या भाजपा डुमरी के इस चुनाव परिणाम से कुछ सीखेगी या फिर हेकड़ी दिखायेगी। भाजपा को मानना ही होगा कि उसकी झारखण्ड में पकड़ ढीली हो रही है। उसकी जो भी यहां ताकत हैं वो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर हैं, न कि भाजपा के प्रदेशस्तरीय नेताओं को लेकर। बाबूलाल मरांडी जो संकल्प यात्रा लेकर निकले हैं, उसका क्या परिणाम निकला? उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद एनडीए का यह पहला चुनाव था, जो वो हार चुके हैं।

खुद बाबूलाल मरांडी के प्रदेश अध्यक्ष बने हुए कई महीने बीत गये, पर अभी तक बाबूलाल मरांडी ने नया अपना संगठन खड़ा नहीं किया, बल्कि पुराने नक्कारा लोगों को लेकर ही घिसटते चले आ रहे हैं। आश्चर्य है कि इसमें कई पुराने लोग ऐसे नक्कारे हैं, कि वे जब तक रहेंगे, भाजपा का कभी भला नहीं हो सकता। बताया जाता है कि ये पुराने लोग संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह के चहेते हैं। जिसे हटाने की हिम्मत बाबूलाल मरांडी को भी नहीं हैं, इसलिए वे पुरानी टीम को लेकर ही घिसट रहे हैं, और नतीजा सबके सामने हैं।

जबकि दूसरी ओर हेमन्त सोरेन ने भाजपा के सारे दांव-पेंच को समझकर, मतलब भाजपा कहां तक किस स्तर तक जा सकती है, उससे लड़ने का खांचा तैयार कर लिया है, और वे उसका जवाब भी दे रहे हैं। लगातार संघर्ष करने के कारण, उनमें और निखार भी आया है। कौन सा चुनाव कैसे जीतना है, फिलहाल झारखण्ड में उनके जैसा जानकार कोई नहीं हैं। उनके सत्ता में आने के बाद झामुमो ने सिर्फ एक सीट गंवाई है, उसके लिए उन्हें दोषी भी नहीं ठहराया जा सकता, पर बाकी सीटों पर जिस प्रकार अपने और अपने सहयोगी दलों को जीताने का उन्होंने कमान संभाला हैं, उसकी तारीफ तो करनी ही होगी।

जरा देखिये हाजी हुसैन अंसारी का निधन हो गया। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने बिना किन्तु-परन्तु के उनके बेटे को मंत्री बना दिया और उन्हें भारी मतो से जीतवा भी दिया। ठीक इसी प्रकार जगरनाथ महतो का निधन हुआ, बिना किन्तु-परन्तु के उन्होंने जगरनाथ महतो की पत्नी बेबी देवी को मंत्री बना दिया और फिर उन्हें भी जीतवा कर ही दम लिया। मतलब मंत्री भी बना देना और उन्हें जीत भी दिलवा देना, ये ताकत तो फिलहाल हेमन्त सोरेन छोड़कर, झारखण्ड में किसी के पास नहीं। यहां तो भाजपा में कई नेताओं को देखा, जो मुख्यमंत्री भी बने और वहां से हटने के बाद उनके पास, उनके स्वागत में भी गिनती के लोग ही पहुंचे। ताजा उदाहरण तो भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का ही हैं।

बधाई हेमन्त सोरेन जी को। बधाई झामुमो को। बधाई झामुमो के कार्यकर्ताओं के परिश्रम को। जिन्होंने डुमरी की जीत हासिल की। नहीं तो, ये भाजपा और आजसू वाले, इतना उधम मचाते कि आप ठीक से सो नहीं पाते। लेकिन आज स्थिति उलट गई है। भाजपा और आजसू के नेताओं को आज नींद नहीं आयेगी। करवटें बदलते रहेंगे और खुद को कोस भी नहीं पायेंगे। डुमरी की ये जीत निश्चय ही 2024 में झामुमो और इंडिया गठबंधन के लिए टॉनिक का काम करेगा, जबकि भाजपा और आजसू के लोगों की नींद उड़ाने का काम करेगा।