अपनी बात

अविश्वसनीय नीतीश ने मोदी-शाह को दिया जवाब, मंत्रिमंडल विस्तार में भाजपा को नहीं मिला स्थान

बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन ने आठ नये मंत्रियों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिला दी। नीतीश मंत्रिमंडल में नरेन्द्र नारायण यादव, अशोक चौधरी, श्याम रजक, बीमा भारती, राम सेवक सिंह, लक्ष्मेश्वर राय, संजय झा और नीरज कुमार को शामिल कर लिया गया। ये सारे के सारे जदयू कोटे से हैं। नीतीश मंत्रिमंडल के विस्तार के दौरान भाजपा की ओर से एक भी सदस्य को शामिल नहीं किया गया।

जिस दिन नीतीश मंत्रिमंडल के विस्तार की घोषणा हुई थी, उसी दिन राजनैतिक पंडितों को इस बात का पता चल गया था, कि नीतीश मंत्रिमंडल का विस्तार, दरअसल नीतीश मंत्रिमंडल का विस्तार न होकर पीएम मोदी के मंत्रिमंडल का एक प्रकार से जवाब है। जिसमें पीएम मोदी ने नीतीश कुमार की बातों को उतना तवज्जों नहीं दिया, जितना वे चाहते थे, नीतीश चाहते थे कि जदयू के पास 16 सांसद है, इसलिए जदयू के कोटे से कम से कम तीन लोग मंत्री होने चाहिए, पर भाजपा एक, वह भी सांकेतिक तौर से ज्यादा कुछ भी देने को तैयार नहीं थी।

लीजिये, फिर क्या था, अपनी आदत से मजबूर, नीतीश कुमार ने एक प्रकार से सबक सिखाने का फैसला किया और जितनी उनकी औकात थी, उन्होंने अपनी औकात दिखा दी, भाजपा विधायकों को अपने आज के मंत्रिमंडल विस्तार में जगह नहीं दी, अगर आज के मंत्रिमंडल विस्तार का विजूयल देखे, तो नीतीश के चेहरे की मुस्कान और भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी के चेहरे पर छाया सन्नाटा सब कुछ बता देता है, कि भाजपा और जदयू में अब क्या चल रहा हैं?

ये अलग बात है कि न तो भाजपा और न ही जदयू इस मैटर को ज्यादा उछाल रहे हैं, जबकि समझ तो सभी रहे हैं, तथा मीडिया में बड़ी ही सावधानी से इस बात को कह रहे हैं कि एनडीए में कोई दरार नहीं हैं, जो लोग नीतीश के स्वभाव को जानते हैं, वे अच्छी तरह जानते हैं कि वे अपने इगो के लिए कुछ भी कर सकते हैं, ये इगो का ही परिणाम था कि वे 2014 में भाजपा से अलग हुए और जिनके खिलाफ लड़कर सत्ता संभाली, फिर उन्हीं के साथ मिलकर चुनाव भी लड़ें और जीते भी, और फिर उन्हें भी ठेंगा दिखाया और फिर भाजपा के साथ सत्ता संभाल ली।

सच तो यह है कि वे पीएम मोदी को फूटी आंख भी देखना पसंद नहीं करते, जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, और बिहार के बाढ़ पीड़ितों के लिए जो आर्थिक मदद उन्होंने मुहैया कराया, और कैसे उन्होंने लौटाया, सभी को पता है। यहीं नहीं बिहार में जब भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो रही थी, सभी नेताओं को खुद ही रात्रि भोज पर आमंत्रित किया था और बाद में खुद ही मना कर दिया, और ऐसा कर उन्होंने बिहार की संस्कृति को किस प्रकार मटियामेट किया, लोग खूब जानते हैं।

इनका मकसद बिहार बढ़े कभी नहीं रहा, इनका मूल मकसद रहा कि उनका इगो कैसे फले-फूले, जो भी इनके इगो को टच करता हैं, वे उन्हें सबक सिखाना नहीं भूलते, चाहे जीतन मांझी हो या शिवानन्द तिवारी हो या शरद यादव ही क्यों न हो, लालू और मोदी को तो समय-समय पर इगो को लेकर बताने की भरपूर कोशिश इन्होंने की, पर दुर्भाग्य कहिये या सौभाग्य पीएम मोदी के आगे इनकी कुछ भी नहीं चलती।

एक बार ये पीएम मोदी का सीडी लेकर, लालू प्रसाद के साथ पटना से दिल्ली तक का दौड़ लगाते थे, और लोगों को सुनाते थे कि देखिये पीएम मोदी आपको पन्द्रह लाख देने का वायदा किये थे, उनसे पूछिये कि उस वायदे का क्या हुआ? कभी बिहार के लोगों को डीएनए टेस्ट के लिए उत्प्रेरित किया था तथा उसे पीएम मोदी को भेजने का आह्वान किया था, और फिर बाद में पीएम मोदी के साथ गलबहियां भी खेलने लगे, मतलब ये किस प्रकार की राजनीति करते हैं, कब ये किससे खुश हो जायेंगे और कब ये किससे दुखी हो जायेंगे, किसी को पता नहीं रहता, पर जिनकी इनसे स्वार्थसिद्धि होती हैं, वे बड़े ही मनोयोग से इनके सामने खड़े होकर, इनकी स्तुति गाते है, जिसके फलस्वरुप उन नेताओं को कुछ न कुछ अवश्य प्राप्त हो जाती है।

रही बात, पटना के पत्रकारों की, तो हमने तो अपनी आंखों से देखा है कि कई संपादक पद तक पहुंचे लोग, नीतीश कुमार का चरण स्पर्श कर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं, ऐसे हालात में उनके इस रवैये पर, नीतीश कुमार को पटना में रहकर आइना कौन दिखायेगा? सभी जय-जय कर रहे हैं, क्योंकि उनकी मजबूरी हैं, रहना पटना में हैं, नौकरी अखबार में करनी है, और जहां इधर फोन घुमा, सब क्रांति किया हुआ इनका निकल जायेगा? इसलिए अब मन और पीठ गहरा करके, बिहार के इस महापुरुष के इगो का अब नया खेल देखिये और इसमें पीएम मोदी किस प्रकार इनके इगो को ठिकाने लगाते हैं, फिलहाल ये रोमांचक दृश्य देखने को अभी से तैयार रहिये।