स्थानीयता के नाम पर आजसू का जनता को उल्लू बनाने का प्रयास

आजसू के नेता झारखण्ड में रह रहे नागरिकों एवं युवा वर्ग को उल्लू समझते हैं। ये समझते है कि दुनिया की जितनी अक्लमंदी है, बस उन्हीं के अंदर आकर स्थापित हो गई है, और इसका लाभ सिर्फ वे ही उठा सकते हैं, बाकी जितने भी यहां के लोग हैं, मूर्ख हैं, और इन लोगों को बेवकूफ बनाना, उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। जरा देखिये, आजसू के लोग सत्ता सुख का परम आनन्द ले रहे हैं, ये परम आनन्द आज का नहीं है, जब से झारखण्ड का जन्म हुआ और जब से सरकार बनी, तब से लेकर आज तक यहीं एकमात्र पार्टी है, जो हमेशा सत्ता से चिपकी रही, चाहे यहां किसी की भी सरकार क्यों न हो? पर जब भी झारखण्ड में गड़बड़ी नजर आई, वह इसके लिए स्वयं को दोष न देकर, वह दूसरे दलों पर तोहमत लगाकर, खुद को बाइज्जत बरी करती रही।

जरा देखिये, इन दिनों आजसू की छात्र विंग, आजसू छात्र संघ स्थानीय व नियोजन नीति में संशोधन की मांग को लेकर अनशन पर बैठी है। अनशन को पद्मश्री मुकुन्द नायक ने भी समर्थन दिया है। आजसू के प्रवक्ता देवशरण भगत कहते है कि अगर अनशन पर बैठे छात्रों को कुछ हुआ तो सरकार की सेहत पर भी असर पड़ेगा। अरे भाई अनशन पर बैठे छात्रों की सेहत की इतनी ही चिंता है तो आपके एक विधायक तो मंत्री बने हैं, उन्हें आप क्यों नहीं कहते कि स्थानीय व नियोजन नीति को लेकर सरकार पर दबाव डाले, भले ही वे सरकार से हटे या न हटे, कम से कम गीदड़ भभकी ही दिखा दे कि अगर स्थानीय व नियोजन नीति पर संशोधन नहीं किया तो वे सरकार से हट जायेंगे या उनकी पार्टी अपना समर्थन वापस ले लेगी, ऐसा तो आप करते नहीं, और लीजिये युवाओं को आगे बढ़ाकर, अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रहे हैं, ये तो गलत बात है न।

आपका सेहत, सेहत और बच्चों के सेहत से खिलवाड़, क्या राजनीति हैं। छात्रों को भड़काओं और अपने घर के युवाओं को घर में बैठाओ, यह कहकर तुम्हें क्या हैं?  हम हैं न, राजनीति की विरासत तो आखिरकार तुम्हे ही संभालना है, इसलिए जिनको अपनी सेहत या अपना कैरियर तबाह करनी है, उन्हें आंदोलन करने दो, और हमें राजनीतिक रोटी सेंकने दो। रही बात पत्रकारों और अखबारों की, तो उन्हें उनका हिस्सा दे दिया गया हैं, वे अपने अखबारों में प्रमुखता से स्थान दे देंगे, जिससे वे अपनी राजनीति चमका सकें।